जीवन का सत्य

जीवन सत्यार्थ

  • जीवन सत्यार्थ
  • दैनिक सुविचार
  • Youtube
  • संपर्क करें

क्रोध

April 26, 2014 By Amit Leave a Comment

gussa

इन्सान के मन की इच्छाओं के विरुद्ध हुए किसी कार्य को देखकर या सुनकर विवेक का कार्यहीन होना तथा बुद्धि पर मन का अधिकार हो जाने पर इन्सान के रक्तचाप में बढ़ोतरी और मस्तिक की नसों में तनाव व इन्द्रियों का सजग होना क्रोध की अवस्था कहलाता है । क्रोध इन्सान का पांचवा मुख्य विकार है इससे इन्सान पूर्ण विकृत होकर साधारण इन्सान की श्रेणी में आता है । पहले तीन विकार मोह, लोभ, काम इन्सान को अधिक प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं तथा चतुर्थ विकार दिखावे के लिए प्रेरित करता है परन्तु पाँचवा विकार अर्थात क्रोध इन्सान को सर्वनाश की तरफ ले जाता है ।

क्रोध यदि मोह, लोभ या काम से सम्बन्धित हो तो जिस विषय, वस्तु, प्राणी, धन, जायदाद वगैरह से सम्बन्धित होता है उसे छीन लेने या उसे नष्ट करने के लिए उकसाता है । परन्तु अहंकार से सम्बन्धित होने पर क्रोध सिर्फ खुद को समाज में श्रेष्ठ प्रमाणित करने के लिए उत्पन्न होता है । क्रोध उत्पन्न होने के समय इन्सान की बुद्धि कार्य तो करती है परन्तु वह मन की इच्छाओं के वशीभूत होती है इसलिए उस समय बुद्धि के कुंठित होने की अवस्था होती है जिसके कारण इन्सान का विवेक कदापि कार्य नहीं करता तथा विवेकहीन होने के कारण क्रोधित अवस्था में किया गया फैसला या किसी कार्य के लिए लिया गया निर्णय सदा गलत होता है ।

यदि इन्सान लगातार क्रोध करने की अवस्था से गुजरता है तो उसका बौधिक विकास समाप्त हो जाता है कभी कभी तो अधिक क्रोध करने तथा निरंतर क्रोध करने से इन्सान पागलपन की अवस्था में पहुंच जाता है । ऐसी ही किसी भयंकर अवस्था के चलते क्रोध के समय किसी कार्य को अंजाम देते समय इन्सान किसी की हत्या करने पर भी उतारू हो जाता है या हत्या कर देता है जिसकी वजह से उसका जीवन संकट में आ जाता है । संसार में ऐसे कितने ही प्रमाण हैं जब इन्सान क्रोध वश किसी की हत्या को अंजाम दे देता है तथा उसका सम्पूर्ण जीवन कारावास में व्यतीत होता है । क्रोध के पश्चात पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त नहीं होता है ।

क्रोध करने वाले इन्सान को अपने स्वभाव के परिवर्तन का अहसास भी नहीं होता तथा वह अपने स्वभाव एंव व्यहवार को साधारण या उचित समझता है । क्रोधी इन्सान के परिवार के सदस्य एंव मित्र तथा सम्बन्धी या शुभ चिंतक उसके स्वभाव से परेशान होकर धीरे धीरे उसका साथ त्यागने लगते हैं । समाज में क्रोधी स्वभाव के इन्सान को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है इसलिए ऐसे इन्सान से कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहता । समाजिक व्यहवार तथा शुभ चिंतकों के सम्बन्ध समाप्त होने से क्रोधी इन्सान का पतन होना स्वभाविक कार्य है । जिससे कुंठित होकर क्रोधी इन्सान आत्म हत्या जैसे अपराध को भी अंजाम दे देता है क्योंकि उसमे अपने लिए भी अच्छा बुरा सोचने समझने की क्षमता नहीं रहती।

चालाक व चापलूस प्रवृति के इन्सान क्रोधी मनुष्य के स्वभाव का भरपूर अनावश्यक उपयोग करके लाभ प्राप्त करते हैं क्योंकि क्रोध में चापलूस सच्चा हमदर्द दिखाई देता है वह अपनी धूर्तता से उसे परिवार और मित्रों से दूर करके उचित प्रकार लूटता है । क्रोध करते समय इन्सान संसार का सबसे मूर्ख प्राणी होता है क्योंकि किसी भी समस्या का समाधान क्रोध करने से नहीं निकलता बल्कि क्रोध से समस्या की बढ़ोतरी होती है । समस्या निवारण सिर्फ विवेक द्वारा ही संभव होता है जो क्रोध में नष्ट हो जाता है । विवेक जागृत रखने के लिए क्रोध पर नियन्त्रण करना आवश्यक है ।

पांचों मुख्य विकार इन्सान के जीवन को संघर्ष पूर्ण एंव कष्टदायक बनाते हैं तथा इन पांचों विकारों के कारण ही इन्सान में दूसरे विकारों का आगमन होता है जैसे निराशा, चंचलता, स्वार्थ, घृणा, कुंठा, शक, बदतमीजी, धूर्तता वगैरह । इन विकारों को समाप्त करना मुश्किल है ना मुमकिन नहीं है परन्तु इन्सान अपने धैर्य से इन पर नियन्त्रण करके इन्हें संतुलित कर सकता है । संतुलित होने पर विकारों का अधिक बुरा प्रभाव नहीं होता तथा जीवन आराम से व्यतीत होता है ।

अहंकार

April 26, 2014 By Amit Leave a Comment

ghamand

इन्सान को यदि किसी प्रकार की अधिक प्राप्ति हो जाती है वह चाहे धन हो अथवा जमीन जायदाद, संसाधन, साजो सामान, वाहन, विद्या का प्रमाण पत्र, शरीरिक बालिष्ठ्ता, सौंदर्य या कोई अधिकारी पद तो वह खुद को श्रेष्ठ समझने लगता है । अपनी श्रेष्ठता को समाज की दृष्टि में महत्व पूर्ण प्रमाणित करने के लिए वह अनेक प्रकार के आडम्बर रचता है इसे इन्सान का अहंकार कहते हैं । अहंकार इन्सान में उत्पन्न होने वाला चतुर्थ विकार है तथा यह पहले इंसानी तीनों मुख्य विकारों से भिन्न प्रकार का है । इन्सान में प्रथम उत्पन्न होने वाले तीनों विकार मोह, लोभ व काम इन्सान को कुछ प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं जिससे वह अपनी कामनाओं की पूर्ति व आनन्द प्राप्ति के लिए अपने जीवन में अधिक से अधिक प्राप्त कर सके । परन्तु इन्सान में मनचाही वस्तुओं एंव विषय की प्राप्ति के बाद उसमे अहंकार उत्पन्न होता है ।

अहंकारी इन्सान समाज में अपनी व अपने धन या बुद्धि, पद, शरीरिक शक्ति, और परिवार की श्रेष्ठता साबित करने के लिए दिखावे वश अपना धन भी खर्च करता है । इन्सान को जिस प्रकार के विषय की प्राप्ति होती है वह दिखावा भी उसी प्रकार का करता है जैसे किसी विद्या में निपुणता प्राप्त होने पर वह अपने आप को संसार का विद्वान् इन्सान समझने लगता है । अपनी बुद्धि का लोहा मनवाने के लिए अहंकार के मद में दूसरों से बहस करना उसके अहंकार का परिचय होता है क्योंकि विद्वान् इन्सान वार्तालाप में अपने विचार व विषय पर अपना तर्क एंव दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं बहस करके किसी के मन को ठेस पहुंचाना विद्वानों का कार्य नहीं है ।

विद्वान् इंसानों ने संसार के आधुनिक निर्माण में सहायता प्रदान करी तथा संसार को आधुनिक उपकरणों से अलंकृत किया परन्तु उन्होंने मूर्खों के समान बहस करने में अपने समय को व्यर्थ नहीं गंवाया । शरीरिक बलिष्ठता प्राप्त होने पर अहंकारी अकड के साथ शरीर को अजीब प्रकार से मटकाते हुए चलते हैं जिससे समाज उन्हें बलशाली पहलवान एंव दबंग समझकर उनसे डर कर रहे । कमजोर को धमकाकर डराना और गरीब को सताना अहंकारी इन्सान की पहचान है परन्तु सच्चा बलशाली वही होता है जो निर्बल की रक्षा करे एवं गरीबों की सहायता करे ।

अपने सौंदर्य पर मुग्ध होकर दूसरों का तिरस्कार करने वाला अहंकारी होता है क्योंकि चमड़ी का सौंदर्य नश्वर है । सच्चा सौंदर्य इन्सान के गुण और व्यहवार में होता है जो जीवन भर उसे श्रेष्ठता का उपहार देते हैं । किसी उच्च पद पर आसीन होने पर यदि इन्सान अहंकार वश अपने मातहत कर्मचारियों एवं समाज के निरीह इंसानों का अपमान करता है तो यह उसकी मंद बुद्धि का परिचय होता है । उच्च पद पर आसीन इन्सान को आदर जब प्राप्त होता है वह अपना कर्तव्य पूर्णतया निभाए तथा सभी से न्याय करे एंव सभी से उचित व्यहवार करे । जितना बड़ा पद होता है उसकी गरिमा भी उतनी ही अधिक होती है जो इन्सान को छोटा अथवा बड़ा समझकर बुरा व्यहवार करता है उसको पद के कारण सामने ना कह कर पीठ पीछे अपशब्दों से पुकारा जाता है तथा उसकी आलोचना करी जाती है ।

जो इन्सान अधिक धन, जायदाद, संसाधन, वाहन एंव आभूष्ण वगैरह प्राप्त कर लेते हैं तथा खुद को श्रेष्ठ समझकर कीमती आभूष्ण, मोबाईल, वस्त्र एंव वाहन वगैरह के साथ अकड कर चलते हैं दरअसल वें चोरों और लुटेरों को लूटने की दावत देते हैं । महंगे संसाधनों को देखकर चोर उन्हें धनवान समझकर पीछे लग जाते हैं तथा कभी न कभी सफल भी हो जाते हैं । लुटने पर चोरों को कोसने वाला अपनी आदतों को सुधारना नहीं चाहता और अपनी मूर्खता के कारण लुटने पर शोर मचाता है । अपने धनवान होने पर खुद को श्रेष्ठ समझने वाले अहंकारी इन्सान को समाज सम्मान क्यों देगा उसने क्या समाज को विकास करने में सहयोग प्रदान किया है अथवा संसार के निर्माण में हिस्सा लिया है ।

अहंकारी इन्सान को चापलूस बहुत अधिक पसंद आते हैं जो उसकी चापलूसी करके उसको दीमक की तरह खोखला करते रहते हैं । आलोचकों की सत्य बोलने वाली कडवी वाणी उनके अहंकार को चोट पहुंचाती है इसलिए आलोचक उन्हें शत्रु के समान दिखाई देते हैं । अहंकारी इन्सान से सच्चे मित्र एंव शुभ चिंतक मानसिक तौर पर दूर हो जाते हैं क्योंकि अहंकारी को अपने वार्तालाप में किसी की मर्यादा भंग करने तथा उसे द्रवित करने वाले वचनों का ध्यान नहीं रहता । समाज प्रेम, त्याग, सेवा और व्यहवार को सम्मान प्रदान करता है अहंकार को सदा मुहं की खानी पडती है वह चाहे रावण का अहंकार हो या दुर्योधन का । अहंकार के उत्पन्न होने से विवेक नष्ट होता है एंव विवेकहीन इन्सान सम्मान पाने लायक नहीं होते । सम्मान पाने के लिए विवेक पूर्ण कार्यों की आवश्यकता होती है धन से सम्मान नहीं धोखा मिलता है ।

Recent Posts

  • सौन्दर्य – saundarya
  • समर्पण – samarpan
  • गुलामी – gulami
  • हीनभावना – hinbhawna
  • संयम – sanyam

जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

Copyright © 2022 jeevankasatya.com

 

Loading Comments...