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हवा

April 26, 2014 By Amit 5 Comments

hawa

पृथ्वी पर जीवन का मूल आधार सर्वप्रथम वायु को दिया जाता है जिसके द्वारा पेड़, पौधे, पशु, पक्षी, इन्सान तथा सभी जीवित प्राणी जीवन प्राप्त करते हैं । वायु से प्राप्त आक्सीजन के द्वारा ही इन्सान का जीवन सुचारू रूप से किर्याशील है अन्यथा एक मिनट के सिमित समय में आक्सीजन प्राप्त ना होने पर इन्सान मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । इसलिए वायु के बगैर जीवन की कल्पना करना भी कठिन कार्य है । इन्सान के मस्तिक को भी आक्सीजन की पूर्ति ना होने पर वह कार्य करना बंद कर देता है तथा इन्सान कोमा के कारण बेहोश मरणासन्न अवस्था में जीवित रह जाता है । ऐसे कारण वायु की महत्वता को प्रमाणित करते हैं ।

इन्सान को जीवित रहने के लिए प्रतिदिन औसतन ३५० लीटर आक्सीजन की आवश्यकता होती है जिसे वह ८५०० से ९००० लीटर वायु का शोषण करके प्राप्त करता है । किसी मेहनत के कार्य तथा तीव्र गति से कार्य करते समय इन्सान की कोशिकाएं आक्सीजन की अधिक मात्रा का संचय करती हैं जिससे इन्सान की साँस तीव्रता से चलने लगती है । अपनी सांसो को व्यस्थित करने के लिए इन्सान को आराम की आवश्यकता पडती है तथा तेज सांसें लेनी पडती हैं ऐसी किर्याओं द्वारा इन्सान को वायु का महत्व समझना एंव उसका उपयोग सीखना आवश्यक है जिससे उसका जीवन संतुलित निर्वाह हो सके ।

आक्सीजन के अभाव से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता की अल्प मात्रा से शरीर को अनेक प्रकार की बिमारियों द्वारा ग्रसित करके जीवन को असंतुलित कर देती है । बीमार शरीर तथा असंतुलित जीवन इन्सान की सभी प्रकार की सफलताओं तथा बुलंदियों में अवरोधक का कार्य करता है । बिमारियों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए तथा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने के लिए नित्य प्राणायाम करके सफलता प्राप्त करी जा सकती है ।

प्राण अर्थात जीवन व याम अर्थात वायु प्राणायाम अर्थात जीवन प्रदान करने वाली वायु का उपयोग करना जिससे शरीर में आक्सीजन की मात्रा में वृद्धि होती है तथा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता प्रबल होकर बिमारियों का सर्वनाश कर देती है । प्राणायाम करने का उचित समय प्रभात की अमृत बेला को दिया जाता है क्योंकि प्रभात में वायु प्रदुषण रहित होती है तथा वातावरण शांत व स्वच्छ होता है ।

वायु का महत्व ज्ञात होने पर भी इन्सान वायु प्रदुषण की रोकथाम में सक्रिय भूमिका ना अपना कर स्वयं वायु प्रदुषण की वृद्धि करने में सहयोग करते हैं । सरकारें भी वाहन प्रदुषण के नाम पर वाहनों तथा कारखानों से मोटी रकम का जुर्माना वसूल करती अवश्य है परन्तु प्रदुषण रोकने का कार्य नहीं करती । समाज द्वारा धर्म व त्योहारों के नाम पर तथा शादी विवाह के मौकों पर भयंकर से भयंकर प्रदुषण करने वाले पटाखों का प्रयोग करना समाज का प्रदुषण के प्रति अपने कर्तव्य से विमुखता का प्रमाण है ।

पटाखों द्वारा होने वाला ध्वनी प्रदुषण तथा वायु प्रदुषण पर प्रतिबंध लगाने पर ना धर्म को किसी प्रकार की हानि होगी तथा ना समाज का किसी प्रकार का नुकसान होगा परन्तु वातावरण में प्रदुषण का प्रभाव कम होने से इन्सान के स्वास्थ्य में लाभ अवश्य होगा । प्रदुषण फ़ैलाने से रोकने के कार्य को अंजाम देने के नाम पर सभी इन्सान सिर्फ एक दूसरे का मुंह ताकते हैं एंव प्रदुषण की वृद्धि में लगे रहते हैं स्वयं को प्रदुषण की वृद्धि से रोक कर कम से कम उसका हिस्सा बनने से तो बचा जा सकता है । इन्सान को वायु का महत्व समझना होगा तभी इन्सान अपने जीवन को सुरक्षित कर सकेगा क्योंकि जीवन यदि जीना है तो वायु को स्वच्छ रखना भी आवश्यक है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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