
किसी विषय की कार्यशैली तथा उसकी समस्या के समाधान पर होने वाले वार्तालाप के दौरान किसी इन्सान के द्वारा उस विषय पर अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने तथा अन्य विकल्प प्रस्तुत करने को उसके द्वारा प्रस्तुत तर्क कहलाता है । तथा यदि कोई इन्सान इस विषय पर अपना कथन प्रस्तुत करता है और अपने कथन को बार बार दोहरा कर उचित प्रमाणित करने का प्रयास करता है तो वह प्रयास उसके द्वारा करी गई बहस कहलाती है । तर्क और बहस में यही अंतर होता है कि बुद्धिमान होना अथवा खुद को प्रमाणित करने की कोशिश अर्थात जैसे किसी विषय के कार्यों की समस्या समाधान के अनेक प्रकार के तरीके होते हैं जो इन्सान विभिन्न प्रकार के आसान तरीके प्रस्तुत कर समस्या का समाधान करने में मदद करता है वह विद्या का माहिर बुद्धिमान इन्सान होता है । परन्तु जो इन्सान समस्या समाधान पर अपना कथन कहकर उचित प्रमाणित करने का पुरजोर प्रयास करता है वह बहस करके अपने आप को बुद्धिमान प्रमाणित करना चाहता है जबकि वह बहस करने वाला नादान अल्प बुद्धि होता है ।
तर्क करना एक प्रकार की विद्या होती है जिसमे माहिर होने के लिए उस विषय की तर्क विद्या का विद्वान् बनना होता है उस विषय की सम्पूर्ण जानकारी और उस विषय की त्रुटियाँ व समस्याएँ एंव समस्या समाधान करने का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक कार्य होता है । धर्म शास्त्र, अर्थ शास्त्र, राजनीति शास्त्र, वास्तु शास्त्र, भूगर्भ ज्ञान, नक्षत्र ज्ञान, आयुर्वेद ज्ञान, इतिहास, सामुद्रिक शास्त्र जैसे अनेक प्रकार के विषय संसार में उपलब्ध हैं जिस विषय का ज्ञान प्राप्त करके उसमे महारथ हासिल हो जाए इन्सान उस विषय का शास्त्री हो जाता है । परन्तु वह कितना भी अधिक विद्वान् हो जाए दूसरे विषय पर अपना तर्क प्रस्तुत नहीं कर सकता क्योंकि दूसरे विषय पर तर्क प्रस्तुत करने के लिए उसकी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त होनी चाहिए जो सरल कार्य नहीं है इसलिए तर्क विद्या के विद्वान् भी किसी दूसरे विषय पर अपना तर्क प्रस्तुत करके अपमानित होना पसंद नहीं करते ।
किसी भी विषय का अधूरा ज्ञान दुःख का कारण होता है क्योंकि अधूरे ज्ञान से इन्सान कार्य सम्पन्न नहीं कर सकता तथा वह कार्य में उलझ कर रह जाता है । जो इन्सान अधूरे ज्ञान से ही अपने आप को विद्वान् समझने लगते हैं और शेखी बघारने के लिए खुद को विद्वान् प्रमाणित करना चाहते हैं इसके लिए वें दूसरे इंसानों के मध्य होने वाले वार्तालाप के दौरान अपना सुझाव प्रस्तुत करके उस पर बहस करने पर उतारू हो जाते हैं जिसके कारण उन्हें अपमानित होना पड़ता है । परन्तु अधूरे ज्ञानी इंसानों की बहस करने की आदत उन्हें बार बार किसी के भी वार्तालाप में हस्तक्षेप करने के लिए उकसाती है ऐसे इन्सान अपने सम्मान में होने वाली हानि की परवाह भी नहीं करते ।

बहस एक रबड़ की भांति कार्य करती है जैसे रबड़ खींचने पर अपना आकर बढ़ाना शुरू कर देती है उसी प्रकार बहस करने पर वह भी अपनी लम्बाई बढ़ाना शुरू कर देती है । अत्याधिक खींचने पर रबड़ कमजोर होकर आखिर में टूट जाती है और दोनों तरफ खींचने वालों को चोट लगती है चाहे एक तरफ कम हो और दूसरी तरफ अधिक लगे परन्तु चोट अवश्य लगती है । रबड़ की तरह बहस अधिक करने पर किसी प्रकार रुक जाती है परन्तु दोनो तरफ के इंसानों को आक्रोशित करके पीड़ा अवश्य पहुंचाती है । जिस प्रकार रबड़ खींचते समय यदि एक तरफ से छोड़ दी जाए तो दूसरी तरफ खींचने वाले को अधिक चोट लगती है परन्तु छोड़ने वाले को किसी प्रकार का कष्ट नहीं होता । इसी प्रकार बहस होते समय कोई इन्सान बहस छोड़ कर हट जाए तो दूसरे इन्सान को अत्याधिक पीड़ा पहुंचती है क्योंकि मन में तैयार किए हुए सारे कथन उसके मन में ही रह जाते हैं जिससे उसका मन पीड़ित हो जाता है ।
बुद्धिमान इन्सान बहस के अंजाम को जानते हैं और बहस करने वाले की आदतों तथा उसकी बुद्धि की सीमा पहचानते हैं कि बहस करने वाला इन्सान सीमित बुद्धि की वजह से अपने निर्णय पर स्थिर रहकर बहस करता रहेगा क्योंकि उसकी बुद्धि दूसरे कारणों को समझने की शक्ति नहीं रखती है । इसलिए बुद्धिमानी का परिचय देते हुए वें बहस शुरू होते ही कोई बहाना बना कर वहाँ से हट जाते हैं क्योकि बुद्धिमान इन्सान को ज्ञात रहता है कि बहस को समाप्त करना और बहस करने वाले इन्सान को सबक सिखाने का इससे सरल एंव उचित उपाय और कोई नहीं हैं ।
जो इन्सान वार्तालाप में तर्क प्रस्तुत करते हैं समाज उन्हें विद्वान् मानकर उनका सम्मान करता है इसलिए तर्क और बहस के मध्य जो अंतर होता है उसे पहचान कर वार्तालाप में दखल देना बुद्धिमानी का परिचय है बहस करके किसी को पीड़ा पहुंचाना नादानी का कार्य होता है ।