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श्रद्धा

April 3, 2016 By Amit Leave a Comment

प्राकृति संचालक, महान विभूति, महान हस्ती अथवा कोई मार्ग दर्शक जिनसे किसी प्रकार की प्राप्ति होने की आशा होती है उनके प्रति जब कोई अपनी भावनाओं के वशीभूत खुद को समर्पित करते हुए सेवा एवं नमन करता है उसे इन्सान की श्रद्धा कहा जाता है । श्रद्धा एक प्रकार का मूल्य है जिसे चुकाकर इन्सान अपनी इच्छित वस्तु या विषय को मुफ्त प्राप्त करना चाहता है क्योंकि अन्य किसी प्रकार का मूल्य चुकाकर प्राप्ति होने से इन्सान किसी प्रकार की श्रद्धा नहीं रखता ।

श्रद्धा इन्सान सर्वाधिक प्राकृति संचालक अर्थात ईश्वर के प्रति रखता है परन्तु इसके अतिरिक्त अनेक प्रकार के देवी देवताओं, साधू संतों, तांत्रिकों, धर्म गुरुओं यहाँ तक कि पीर व मजारों पर भी भरपूर श्रद्धा रखता है । इन्सान की श्रद्धा धर्म व धर्म से सम्बन्धित विभूतियों के प्रति होती है कभी-कभी इन्सान अपने परिवार के बुजुर्गों या किसी महान आविष्कारक, दार्शनिक अथवा गुरु, महान लेखक या कलाकार के प्रति भी रखता है । श्रद्धा उत्पन्न होने के अनेक कारण होते हैं जैसे भय, लोभ, दिखावा, विश्वास, प्रेम इत्यादि एवं श्रद्धा करने वालों के दो प्रकार हैं उदारवादी तथा कट्टरवादी ।

इन्सान के जीवन में सर्वाधिक महत्व भय का है क्योंकि भय इन्सान की मानसिकता को प्रभावित करके उसकी बौद्धिक क्षमता स्थिर एवं कुंठित करता है तथा असफलता का कारण बन जाता है । भय इन्सान को जीवन निर्वाह से आरम्भ अनेक प्रकार की समस्याओं, बिमारियों, सन्तान की परवरिश, शिक्षा, विवाह, आमदनी वगैरह के प्रति सदैव सताता है जिसके निवारण के लिए इन्सान सदैव सहायता करने वालों की तलाश करता रहता है । इन्सान को जिनसे मुफ्त सहायता प्राप्त होने की आशा होती है वह उनको अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करके उनसे प्राप्ति की आशा करता रहता है । इन्सान अधिकतर ईश्वर के प्रति अपनी श्रद्धा भय के कारण ही करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है जो संसार का संचालन कर्ता है वह उनकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर उन्हें किसी प्रकार का वरदान देगा अथवा उनकी समस्याएँ अवश्य निपटा देगा तथा उन्हें जीवन भर सुखी रखते हुए भय मुक्त रखेगा । इन्सान भय के कारण मन्दिरों, आश्रमों एवं साधू संतों तथा कभी-कभी तांत्रिकों के चरणों में अपनी श्रद्धा प्रकट करके खुद को संतावना देता रहता है कि जीवन सुधरने वाला है ।

लोभ इन्सान का ऐसा विकार है जो उससे किसी भी प्रकार का कार्य करवाने की क्षमता रखता है । लोभ के वशीभूत इन्सान अधिक से अधिक प्राप्त करने के प्रयास में प्रत्येक उस कार्य करने को तत्पर रहता है जहाँ उसे मुफ्त एवं अधिक प्राप्त हो सके । मुफ्त प्राप्ति का साधन इन्सान ईश्वर, देवी देवताओं तथा संसार की अध्यात्मिक शक्तियों को समझता है इसलिए उन्हें लुभाने के लिए अपनी श्रद्धा प्रकट करके प्रसन्न करने का भरसक प्रयास करता है । यदि इन्सान को परिवार के किसी सदस्य से या किसी सामर्थ्यवान से मुफ्त प्राप्ति अथवा अपनी समस्याओं का समाधान दिखाई पड़ता है तो लोभ के वशीभूत उनपर अपनी श्रद्धा प्रकट करने का प्रयास अवश्य करता है ।

श्रद्धा का दिखावा करना भी संसार में पूर्ण प्रचिलित है जिसमे तिलक लगाना, प्रतिदिन मन्दिरों में दिखाई पड़ना, अपनी धार्मिक यात्राएं बखान करना एवं धर्म के विषय में अनेकों प्रकार के भाषण देकर खुद को धार्मिक प्रमाणित करने का प्रयास करना । श्रद्धा का दिखावा खुद को धर्म के विषय में विद्वान् प्रमाणित करके सम्मान प्राप्ति अथवा किसी प्रकार का स्वार्थ सिद्ध करना होता है । धर्म शास्त्रियों, साधू संतों एवं तांत्रिकों का कार्य भी खुद को दैविक शक्तियों की श्रद्धा से प्राप्त कृपा एवं अद्भुत शक्तियों से परिपूर्ण दिखाकर नादानों को लूटने का प्रयास ही होता है तथा उनका दिखावा इतना सशक्त होता है कोई भी साधारण इन्सान इनके सुदृढ़ जाल में सरलता से फंस जाता है ।

साधारण इन्सान मन्दिरों, साधू संतों, तांत्रिकों एवं धर्म गुरुओं व शस्त्रियों को आलोकिक व अध्यात्मिक शक्तियों के मालिक होने का विश्वास करते हुए उनके प्रति अत्यधिक श्रद्धा रखते हैं । साधारण इन्सान की मान्यता है कि यें आलोकिक शक्तियों द्वारा इनके जीवन के सभी दुखों को दूर करके इनके जीवन को खुशियों से भर देंगें यह विश्वास साधारण इन्सान को इनके प्रति श्रद्धा रखने पर मजबूर कर देता है ।

इन्सान किसी देवी देवता की मूर्ति या साधू संत अथवा किसी महापुरुष को आलोकिक शक्तियों से परिपूर्ण मानकर व उनसे प्रभावित होकर पूर्णतया भावनात्मक समर्पण कर देता है तथा किसी भी प्रकार की अभिलाषा नहीं रखता तो यह इन्सान की भावनाओं से उत्पन्न प्रेम के कारण होने वाली श्रद्धा होती है प्रेम के कारण उत्पन्न श्रद्धा इन्सान की श्रद्धा का उत्कृष्ट एवं महानतम रूप है । प्रेम से उत्पन्न श्रद्धा में डूबकर इन्सान सिर्फ अपने ईष्ट के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित ही नहीं होता अपितु उसपर अपना सर्वस्य लुटा देता है ।

इन्सान के जीवन में श्रद्धा का मूल आधार धर्म एवं धार्मिक विषय हैं इसलिए ईश्वर, देवी देवताओं, साधू संतों व धर्म गुरुओं एवं शास्त्रियों जिस पर भी वह श्रद्धा रखता है उसे धर्म से जोडकर ही देखता है । जो अपनी श्रद्धा के प्रति उदारवादी होते हैं वें जिस पर श्रद्धा रखते हैं उसके विषय में यदि कोई तर्क करता है या त्रुटी प्रस्तुत करता है तो उस पर ध्यान देते हैं तथा त्रुटी मान भी लेते हैं । उदारवादी इन्सान धार्मिक विषयों की रुढ़िवादी प्रथाओं में संशोधन को स्वीकारते हैं तथा आवश्यकता अनुसार संशोधन करने के प्रयास भी करते हैं ।

कट्टरवादी इन्सान उदारवादी इंसानों के ठीक विपरीत होते हैं जो अपने धर्म व धार्मिक विषयों को पूर्णतया उचित मानते हुए किसी प्रकार का तर्क एवं संशोधन स्वीकार नहीं करते । कट्टरवादी इंसानों की दृष्टि में उनका धर्म एवं धर्म से जुड़े सभी विषय ईश्वर द्वारा उपहार स्वरूप भेंट किए हुए हैं जिनसे छेड़छाड़ करने से ईश्वर रुष्ट होकर उन्हें बर्बाद कर सकता है । कट्टरवादी अपनी श्रद्धा के वशीभूत मरने मारने पर भी उतारू हो जाते हैं परन्तु उदारवादी श्रद्धा के विषयों में किसी को कोई भी हानि करने के विषय में सोचते भी नहीं हैं ।

इन्सान द्वारा श्रद्धा का मुख्य कारण भय है क्योंकि संसार में अधिकतर इन्सान अभावग्रस्त या समस्या से पीड़ित हैं इसलिए वें पीड़ा मुक्त होने के लिए भय वश श्रद्धा रखते हैं । लोभ के कारण श्रद्धा रखने वालों की भी कोई कमी नहीं है जो अधिक प्राप्ति के लिए श्रद्धा रखते हैं । दिखावा करने वाले खुद को महत्वपूर्ण एवं सम्मानित प्रदर्शित करने के लिए श्रद्धा का ढोंग करते हैं । विश्वास के कारण श्रद्धा रखना भी स्वार्थ पूर्ति के लिए ही होता है । प्रेम के कारण श्रद्धा इन्सान की भावनाओं से उत्पन्न निस्वार्थ सेवा है ।

श्रद्धा इन्सान किसी पर भी एवं किसी भी प्रकार की रखता हो उसे वास्तविकता का ज्ञान होना आवश्यक है क्योंकि वास्तविकता समझे बगैर श्रद्धा रखने से सिर्फ इन्सान का धन एवं समय ही बर्बाद होता है । संसार में सच्चाई से पाखंड अधिक है तथा पाखंड के चक्रव्यूह में फंसकर इन्सान स्वयं घनचक्कर व मूर्ख ही बनता है । संसार में इन्सान को जो भी प्राप्ति होती है वह परिवार द्वारा तथा अपने कर्म के आधार पर प्राप्त होती है प्राप्ति के विषय पर सभी धर्म ग्रन्थों ने समझाने का भी भरपूर प्रयास किया है कि किसी भी प्रकार की प्राप्ति इन्सान सिर्फ अपने कर्मों द्वारा ही कर सकता है । किसी भी प्रकार की प्राप्ति की अभिलाषा से श्रद्धा करने का किसी भी प्रकार का कोई लाभ नहीं होता । श्रद्धा के पाखंड में किसी को फंसाकर लाभ अवश्य प्राप्त किया जा सकता है जिसे धूर्त इन्सान भलीभांति उपयोग कर रहे हैं एवं साधारण इन्सान चुपचाप लुट रहे हैं ।

विश्वास

May 31, 2014 By Amit Leave a Comment

vishwas

किसी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व अथवा करते समय सफलता पूर्वक सम्पन्न होने की सकारात्मक मानसिकता इन्सान के द्वारा किया जाने वाला विश्वास कहलाता है । विश्वास इस प्रकार की सकारात्मक मानसिकता है जिसके कारण इन्सान का जीवन किर्याशील है तथा जीवन के सभी कार्यों में सफलता प्राप्त करने का मुख्य आधार इन्सान का विश्वास होता है । इन्सान के जीवन में विश्वास की अल्पता अथवा समाप्ति होने पर उसका जीवन स्थिर हो जाता है तथा जीवन में अत्यंत अभाव पूर्ण स्थिति उत्पन्न हो जाती है क्योंकि इन्सान किसी भी कार्य को सफलता पूर्वक सम्पन्न होने के विश्वास के कारण ही अंजाम देता है । यदि किसी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व उसकी सफलता पर अविश्वास हो तो उस कार्य को कोई भी इन्सान नहीं करता अथवा औपचारिकता वश सम्पन्न करता है जिसके कारण वह कार्य अधिकतर असफल होते हैं या उसका परिणाम साधारण आता है क्योंकि कार्य की उचित सफलता कार्य करने वाले के उत्साह पर निर्भर करती है ।

इन्सान की मानसिकता में विश्वास के विभिन्न प्रकार होते हैं तथा विभिन्नता के अनुसार ही प्रभाव एंव परिणाम होते हैं । सर्वप्रथम इन्सान द्वारा अपनी क्षमता तथा बुद्धि कौशल पर किया गया विश्वास इन्सान का आत्म विश्वास कहलाता है जिसके विवेक तथा इच्छा शक्ति द्वारा उत्पन्न होने पर दृढ आत्म विश्वास होता है तथा मन, भावना एंव कल्पना शक्ति द्वारा उत्पन्न होने पर अंध आत्म विश्वास होता है । दृढ आत्म विश्वास इन्सान को जीवन में अपनी कामनाएँ पूर्ण करने तथा बुलंदी प्राप्त करवाने में सहायक होता है परन्तु अंध आत्म विश्वास के कारण इन्सान को जीवन में शत्रु तलाशने की कोई आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि अंध आत्म विश्वास के नशे में किये गए कार्य उसके पतन का कारण बन जाते हैं । इन्सान को जीवन में किसी भी कार्य के लिए आत्म विश्वास की आवश्यकता होती है इसलिए अपने विवेक द्वारा मंथन करने के पश्चात ही कार्य को अंजाम देना उचित होता है ।

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किसी अन्य इन्सान पर किया गया विश्वास भी इन्सान के जीवन में अत्यंत आवश्यक है क्योंकि विश्वास के बगैर किसी से कोई भी कार्य नहीं करवाया जा सकता परन्तु आत्म विश्वास की तरह अन्य पर विश्वास भी विवेक द्वारा संचालित होना आवश्यक है क्योंकि अन्य इन्सान पर विवेक रहित तथा मन, भावना एंव कल्पना शक्ति के बल पर किया गया विश्वास ही अंधविश्वास होता है । अन्य इन्सान पर विश्वास करने से ही जीवन के कार्य सुचारू रूप से सम्पन्न होते हैं तथा आपसी सम्बन्ध प्रगाढ़ होते हैं जो समाज में रहने के लिए आवश्यक हैं । किसी इन्सान पर अंधविश्वास होने का कारण उसके द्वारा आवश्यक सहायता प्रदान करना होता है जिससे जीवन में राहत का अहसास होता है परन्तु अंधविश्वास से ही विश्वास घात उत्पन्न होता है जिसके कारण जीवन बर्बाद हो जाता है । किसी पर अंधविश्वास करना अर्थात अपना जीवन संकट में डालना है क्योंकि कितना भी प्रिय इन्सान हो उसकी मानसिकता में सकारात्मकता कब नकारात्मकता में परिवर्तित हो जाए इसका अनुमान लगाना नामुमकिन होता है । अंधविश्वास की नकारात्मक मानसिकता का परिणाम जब प्रस्तुत होता है तब तक इन्सान का जीवन बर्बाद हो चुका होता है ।

जीवन में सफलता प्राप्ति के विश्वास के कारण ही प्रत्येक कार्य किए जाते हैं यहाँ तक की इन्सान अपनी सन्तान की परवरिश तथा शिक्षा एंव व्यवसाय अथवा सेवा कार्य के लिए अपना धन व्यय तथा परिश्रम उनके वृद्धावस्था के समय सेवा प्राप्ति होने के विश्वास के कारण ही करता है । सन्तान के प्रति अस्थिर विश्वास तथा सन्तान द्वारा त्याग कर पृथक होने का आभाष इन्सान से सन्तान के प्रति कर्तव्य पूर्ण करने में अवरोध उत्पन्न कर उसे औपचारिकता वश परवरिश करने को विवश करता है । स्त्री पुरुष का ग्रहस्थ जीवन विश्वास की डोर से बंधा होता है जिसे अविश्वास की आंधी का हलका सा झोंका भी उनकी ग्रहस्थी का तिनका तिनका बिखेर सकता है । जीवन में मित्र जैसा सम्बन्ध सदैव राहत पूर्ण होता है क्योंकि आवश्यकता के समय परिवार के अतिरिक्त मित्र ही सहायक होते हैं परन्तु मित्रों द्वारा विश्वास घात करने के अनेकों प्रमाण समाज में प्रस्तुत होते रहते हैं ।

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इन्सान अपने जीवन में अधिक समय तक जीवित रहने के विश्वास के कारण कार्यरत रहता है जिसमे उसे मृत्यु का आभाष तक नहीं होता यदि मृत्यु का समय निश्चित हो जाए तो वह संसार में किसी भी कार्य को करने में सक्षम नहीं हो सकता अथवा वह कार्य करना त्याग देगा । संसार विश्वास की बुनियाद पर स्थिर है प्रत्येक इन्सान अपना कार्य सफल परिणाम के विश्वास के कारण ही करता है तथा इन्सान द्वारा आधुनिक संसार का निर्माण उसके दृढ विश्वास का परिणाम है । जो इन्सान अपने जीवन में अपना आत्म विश्वास तथा अन्य इंसानों पर विश्वास दृढ ना करके अस्थिरता के सहारे जीवन व्यतीत करते हैं उनका जीवन दुविधापूर्ण तथा कष्टकारी होता है । संसार में विश्वासघाती इंसानों की कोई कमी नहीं है जिसमे कभी कभी परिवार के सदस्य भी हो सकते हैं परन्तु किसी के द्वारा विश्वास घात करने से सम्पूर्ण समाज पर अविश्वास नहीं किया जा सकता ।

विश्वास इन्सान के जीवन में अत्यंत आवश्यक है परन्तु किसी पर विश्वास करने से पूर्व विवेक द्वारा मंथन करने पर विश्वासघात होने के आसार लगभग समाप्त हो जाते हैं । किसी पर विश्वास करना हो या स्वयं पर आत्म विश्वास उसमे अंधापन नहीं होना चाहिए इसलिए उसमे विवेक का उपयोग करना अनिवार्य है इसलिए किसी भी विषय अथवा वार्ता एंव कार्य करने से पूर्व विवेक द्वारा मंथन करना अत्यंत आवश्यक है जिसका परिणाम सदा उचित प्राप्त होगा ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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