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ज्ञान

April 26, 2014 By Amit Leave a Comment

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मन की प्रेरणा से किसी विषय या वस्तु की सत्यता को परखने की अभिलाषा में बुद्धि की प्राप्त जानकारीयों को एकत्रित कर विचारों का मंथन करने से मानसिकता विवेक के रूप में उस विषय या वस्तु की गहराई से जांच करके उसकी सत्यता को प्रकट करती है वह ज्ञान है । ज्ञान की उत्पत्ति विवेक के द्वारा होती है परन्तु ज्ञान को सरलता पूर्वक प्राप्त नहीं किया जा सकता उसके लिए बुद्धि में जानकारियाँ प्राप्त करने की क्षमता व मन पर अधिकार करके इन्द्रीओं को वश में करना और दृढ इच्छा शक्ति एंव भरपूर आत्म विश्वास का होना आवश्यक है । कमजोर मन प्रेरणा या कामना का श्रोत हो सकता है परन्तु इन्द्रीओं के वशीभूत होकर उन्हें आनन्द प्राप्त करवाने की सोच उसे किसी भी कार्य करने में बाधा उत्पन्न करती है यह चंचलता त्याग करने पर ही मन स्थिर होता है तथा विवेक से सहयोग के लिए कार्य करता है ।

आत्म विश्वास की कमी होने पर इन्सान किसी भी कार्य में सफल नहीं हो सकता क्योंकि कमजोर इच्छा शक्ति उसे अपने कार्यों की सफलता में बाधक होती है । बुद्धि में जानकारियाँ प्राप्त करने की भावना से ही इन्सान विद्या के पीछे भागता है जिससे बौधिक स्तर विकास करता है जिसके लिए इच्छा शक्ति का दृढ होना अनिवार्य है जिससे ज्ञान प्राप्त करना सरल हो जाता है । संसार का निर्माण और उसकी साज सज्जा एंव सभी प्रकार की सुख सुविधाएं इन्सान के ज्ञान द्वारा ही उपलब्ध हुई हैं । संसार को आदिकाल से निकाल कर उसे आधुनिक बनाने का कार्य इन्सान के ज्ञान से ही संभव हुआ है ।

इन्सान ने प्रथ्वी का सीना चीर कर उसमे से अनेक धातुओं को प्राप्त किया तथा सभी प्रकार के पदार्थ एंव रसायन प्राप्त किए जिनके द्वारा वह विभिन्न प्रकार के अविष्कार करके इस संसार को नया रूप दे सका । एक सदी पूर्व ही इलैक्ट्रानिक उपकरण तथा मोबाईल फोन, कम्प्यूटर, इंटरनेट, वायुयान, टी वी, वाहन वगैरह सभी परीलोक की कथाओं से अधिक नहीं थे । जिन वस्तुओं का साधारण जीवन में उपयोग करते हैं वे सभी पहले इन्सान की सोच से बाहर थी । इन सभी उपकरणों व संसाधनों को इन्सान ने अपने ज्ञान से प्राप्त किया है । इन वस्तुओं एंव उपकरणों व संसाधनों का प्रकृति से कोई लेना देना नहीं है । इन्सान ने संसार में अपने ज्ञान द्वारा असंभव को संभव कर दिखाया इसलिए इन्सान को संसार का निर्माता कहना गलत नहीं होगा ।

जिस ज्ञान के द्वारा इन्सान सभी कार्यों को अंजाम देता है वह सभी इन्सान प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि प्रकृति ने मस्तिक के निर्माण में किसी भी इन्सान में अंतर नहीं किया । जब दूसरे इन्सान अपने ज्ञान का विस्तार करके आविष्कारों को अंजाम दे सकते हैं तो जो सिर्फ बैठ कर उनकी उपलब्धिओं को देखते हैं या उनका वर्णन करते हैं उन्हें यह ज्ञान प्राप्त क्यों नहीं हो सकता । इसका कारण लाचारी से देख कर खुद को असहाय समझने वाले इंसानों की सोच का है जो ज्ञान को पुस्तकों या शिक्षकों के पास तलाश करते हैं क्योंकि ज्ञान सिर्फ पुस्तक से प्राप्त होने वाला विषय नहीं है यदि पुस्तकों के द्वारा ज्ञान प्राप्त होता जिसे पढ़कर नए अविष्कार किए जा सकते तो लेखक स्वयं अविष्कार करके संसार में सम्मान प्राप्त कर लेता । पुस्तक अविष्कार के बाद लिखी जाती है तथा पुस्तकों से सिर्फ विद्या प्राप्त होती है जो ज्ञान प्राप्त करने में सहायक की भूमिका निभाती है । ज्ञान प्राप्त करने के लिए मन की प्रेरणा, बुद्धि की जानकारियाँ एंव विवेक का मंथन आवश्यक होता है जितना विश्वास शिक्षकों पर करके ज्ञान की खोज में इन्सान भटकता है यदि अपने विवेक पर विश्वास करे तो परिणाम अच्छे निकलते हैं ।

धर्म शास्त्री या ईश्वर भक्ति से अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त नहीं होता विवेक द्वारा विचारों के मंथन से ज्ञान की प्राप्ति होती है ज्ञान किसी भी प्रकार का हो वह सदा निर्माता होता है फिर वह चाहे मशीनों पर हो या जीवों, ग्रहों, ईश्वर या रसायनों वगैरह पर हो । सभी प्रकार का ज्ञान संसार को नई रोशनी प्रदान करता है । ज्ञानी इंसानों ने सृष्टि की खोज करके उसके रहस्यों का पता लगाया । ज्ञान के द्वारा इन्सान सृष्टि के कण कण की खोज में लगा हुआ है तथा उससे प्राप्त पदार्थों का प्रयोग करके नए रास्ते तलाश कर रहा है । इस तलाश और नव निर्माण में सहायक होने वालों को संसार सदा सम्मान देता है यदि कोई अपने ज्ञान से संसार की सेवा करेगा तो इंसानियत उसका सम्मान करेगी और उसे प्रणाम करेगी ।

मन

April 11, 2014 By Amit 2 Comments

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इन्सान के शरीर में मुख्य अंगों के संग पाँच मुख्य इन्द्रियां भी हैं जिनके द्वारा इन्सान को विभिन्न प्रकार के आनन्द की अनुभूति होती है तथा इन सभी को इंसानी मस्तिक के तंत्रिका तंत्र द्वारा संचालित किया जाता है एवं जब इन्सान का मानसिक तंत्र शरीर के अंगों तथा इन्द्रियों के आनन्द प्राप्ति अथवा इनसे प्रेरित होकर सक्रिय होता है वह मानसिक किर्या इन्सान का मन कहलाती है । मन मानसिक तंत्र की दूसरी किर्या है तथा मन के रूप में कार्य करते समय मानसिक तन्त्र बुद्धि द्वारा जानकारियां एकत्रित करने के स्थान पर इन्द्रियों तथा शरीर के लिए आनन्द प्राप्ति की किर्या में लिप्त रहता है । मन इन्सान के जीवन की सबसे जटिल पहेली होती है क्योंकि इन्सान को जीवन में सफलता एंव असफलता प्राप्त होने में मन का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान होता है तथा मन की कार्यशैली को समझकर व उसपर अधिकार करके उचित संचालन द्वारा ही जीवन में सफलता प्राप्त होती है ।

मन बाल्यावस्था में धीमी गति से किर्याशील होता है तथा समय के साथ मन की गति में तीव्रता उत्पन्न होती रहती है इसलिए अधिक तीव्र गति होने पर मन की गति को चंचलता का नाम दिया जाता है । मन की किर्या बुद्धि के विपरीत होती है क्योंकि बुद्धि का आरम्भ तीव्रता से होता है तथा समय के साथ गति धीमी होती रहती है क्योंकि मन की गति बुद्धि की तीव्र गति को मुख्य रूप से प्रभावित करती है अर्थात मन जितना अधिक तीव्र गति से दौड़ता है बुद्धि उतनी ही धीमी गति प्राप्त कर लेती है तथा मन की गति शांत होने पर बुद्धि की गति तीव्र हो जाती है । बुद्धि को गतिशील रखने के लिए मन पर अधिकार करके उसे शांत रखना आवश्यक है जिसे आरम्भ से ही अधिकार में करने से सफलता प्राप्त होती है यदि आरम्भ में ना रोका जाए व गति प्राप्त होने पर रोकने का प्रयास किया जाए तो मन पर अधिकार नहीं किया जा सकता अथवा मन हमेशा के लिए कुंठित अवस्था में पहुंच जाता है ।

मन सदैव एक जैसा प्रभाव नहीं रखता एवं सदा एक जैसा कार्य नहीं करता क्योंकि मन की अन्य किसी मानसिक शक्ति से युति होने पर मन का कार्य तथा प्रभाव दोनों में अंतर आ जाता है किसी भी मानसिक शक्ति की सकारात्मक तथा नकारात्मकता का प्रभाव भी मन के कार्यों में विभिन्न परिवर्तन उत्पन्न कर देता है । मन की स्थिति इन्द्रियों के साथ कार्यरत होने पर भी सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करती है जिनका परिणाम भी पृथक होता है । सकारात्मक प्रभाव में मन इन्द्रियों का उपयोग इस प्रकार करता है कानों द्वारा सत्संग सुनना, नासा द्वारा सुगंध, नेत्रों द्वारा मनोहर दृश्य, मुख द्वारा धार्मिक कथन तथा काम इन्द्रियों के वशीभूत किसी से प्रेम प्रदर्शित करना । मन का नकारात्मक प्रभाव कानों से अश्लील वाक्य सुनना पसंद करता है तथा नासा द्वारा नशे की दुर्गन्ध, नेत्रों द्वारा अश्लील दृश्य, मुख द्वारा अपशब्द तथा काम इंद्री के लिए बलात्कार जैसा घृणित कार्य होता है ।

मन का कल्पना शक्ति से सम्बन्ध यदि नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है तो इन्सान अन्य इंसानों को लूटने तथा भयंकर अपराधिक षडयंत्र की रुपरेखा अपनी कल्पनाओं द्वारा सक्रिय करता है । मन का प्रभाव सकारात्मक होने पर किसी अध्यात्मिक कार्य अथवा किसी अविष्कार को उत्पन्न करने की कल्पना को साकार करके समाज की भलाई करके समाज में प्रतिष्ठित होकर सम्मानित होने के कार्य करता है । भावना से नकारात्मक होने पर मन किसी के प्रति द्वेष रखना तथा उसका सर्वनाश करना एंव अपने प्रति भी किसी प्रकार का सम्मान प्राप्त करने के स्थान पर सदैव गलत कार्यों को अंजाम देता है । मन का भावना से सकारात्मक सम्बन्ध किसी को सुख प्रदान करने के लिए तन, मन, धन से उसपर न्यौछावर हो जाना जैसे कार्य करता है जिसका प्रमाण देश पर शहीद होने वाले जवानों ने प्रस्तुत किया है ।

बुद्धि से मन का सकारात्मक सम्बन्ध इन्सान को उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है तथा जीवन में बुलंदी प्राप्त करके समाज में सम्मानित तथा प्रतिष्ठित जीवन व्यतीत करना तथा अपने परिवार को सम्मान प्राप्त करवाता है । नकारात्मक प्रभाव बुद्धि को भ्रमित करना मन का सर्वप्रथम कार्य है तथा मन के वशीभूत इन्सान अपना जीवन बर्बाद कर लेता है क्योंकि बुद्धि जीवन में प्रगति का द्वार है जिसके बंद होने पर जीवन का सर्वनाश निश्चित है । स्मरण शक्ति बुद्धि की जानकारियों को एकत्रित करती है जिस पर मन का नकारात्मक प्रभाव कोई भी जानकारी एकत्रित करने से वंचित करता है तथा सकारात्मक प्रभाव स्मरण शक्ति को एकाग्रचित होकर भंडारण में सहयोग प्रस्तुत करता है ।

मन का सबसे अधिक प्रभाव विवेक पर होता है क्योंकि मन के नकारात्मक प्रभाव में इन्सान अहंकारी हो जाता है तथा उसका विवेक जागृत नहीं होता व इन्सान अज्ञान के अँधेरे में जीवन व्यतीत करता है । मन की सकारात्मक उर्जा तथा एकाग्रता विवेक को जागृत करके उससे ज्ञान प्राप्ति का कार्य करवाती है । विवेक का मन के साथ सार्थक सम्बन्ध रखने वाले इंसानों ने ही संसार का निर्माण किया है जिसमे मन का इच्छा शक्ति के साथ सकारात्मक सम्बन्ध होना आवश्यक है क्योंकि इच्छा शक्ति कमजोर हो तो इन्सान ज्ञान अवश्य प्राप्त कर लेता है परन्तु ज्ञान से उत्पन्न अविष्कारों को सार्थक करने के प्रयास नहीं कर सकता ।

मन इन्सान के जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानसिक तंत्र है जिसके द्वारा इन्सान किसी भी प्रकार का कार्य करने में सक्षम हो सकता है क्योंकि मन यदि चंचल हो तो सम्पूर्ण मानसिक तंत्र किसी भी प्रकार के कार्य नहीं कर सकता तथा मन प्रेरणा श्रोत बनकर इन्सान से किसी भी प्रकार का तथा कैसा भी कार्य करवाने की क्षमता रखता है । जिन इंसानों ने संसार के महत्वपूर्ण अविष्कार किए वें सभी मन की प्रेरणा द्वारा ही सम्पन्न कर सके इसलिए मन को अधिकार में करके सार्थक प्रयास किये जा सकते हैं इसके लिए एकाग्रचित होना आवश्यक है । एक संतुलित तथा सकारात्मक किर्या का मन इन्सान को किसी भी बुलंदी पर पहुंचा सकता है ।

बुद्धि

April 8, 2014 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

buddhi

   संसार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण जीवन है तथा जीवन संचालन के लिए अनेकों प्रकार के कार्यों को करना आवश्यक होता है जिसके लिए पृथ्वी पर उपलब्ध प्रत्येक प्राणी आवश्यकता अनुसार कार्य करता है वह चाहे उदर पूर्ति हो अथवा सन्तान उत्पन्न करना सभी प्रकार के प्राणियों में इन्सान के अतिरिक्त यह कार्य करने से उनका जीवन निर्वाह हो जाता है । इन्सान संसार में एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसे अपने जीवन निर्वाह के लिए अनेकों प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं क्योंकि इन्सान स्वयं उपार्जन करके ही अपनी उदर पूर्ति करता है वह दूसरे प्राणियों की तरह प्राप्त भोजन से संतुष्ट नहीं हो सकता । सभी प्राणी अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करते हैं तथा कार्य संचालन सभी प्राणियों का मस्तिक करता है जिसमे उनका मानसिक तंत्र सक्रिय होकर उन्हें कार्य करने के लिए प्रेरित करता है तथा कार्य सम्पन्न करवाता है । मानसिक तंत्र में विभिन्न प्रकार की किर्याएं होती हैं जिनको पृथक नामों से पुकारा जाता है जिनमे मस्तिक तंत्र की सर्व प्रथम तथा सर्वाधिक आवश्यक किर्या बुद्धि कहलाती है ।

संसार में इन्सान तथा अन्य प्राणियों के मानसिक तंत्र में अंतर होता है क्योंकि इन्सान का मानसिक तंत्र सात प्रकार की किर्याएँ करता है परन्तु अन्य प्राणियों का मानसिक तंत्र सिर्फ तीन प्रकार की किर्याएँ करता है । इन्सान के मानसिक तंत्र की सातों किर्याएं इस प्रकार हैं बुद्धि, मन, विवेक, कल्पना शक्ति, भावना शक्ति, इच्छा शक्ति तथा स्मरण शक्ति एंव अन्य प्राणियों के मस्तिक की तीन किर्याएं बुद्धि, मन तथा स्मरण शक्ति होती है क्योंकि अन्य प्राणियों का कल्पना, भावना, इच्छा शक्ति तथा विवेक से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं होता इसलिए उनका जीवन सीमित दायरे में व्यतीत होता है । इन्सान के अतिरिक्त सभी प्राणियों का मानसिक तंत्र जन्म के समय से ही पूर्ण विकसित होता है परन्तु इन्सान जन्म के समय अल्प बुद्धि तथा विकासशील मानसिक तंत्र वाला प्राणी है ।

इन्सान के जन्म के समय उसका मानसिक तंत्र अत्यंत अल्प कार्यरत होता है तथा उसमे सर्वप्रथम सक्रिय होने वाली किर्या बुद्धि होती है जिसका कार्य संसार की सभी जानकारियों को एकत्रित करना है । इन्सान का मस्तिक बुद्धि के द्वारा ही सभी प्रकार की जानकारियों को एकत्रित करता है तथा जानकारियां प्राप्त होने से ही मस्तिक का विकास आरम्भ होता है । बाल्यावस्था में बुद्धि तीव्रता से आस पास की सभी जानकारियों को एकत्रित करती है तथा समय के साथ बुद्धि की तीव्रता में गतिरोध उत्पन्न होने लगते हैं एंव बुद्धि द्वारा जानकारियों को एकत्रित करने की गति धीमी होने लगती है क्योंकि जानकारियां एकत्रित होने पर अन्य मानसिक शक्तियाँ सक्रिय होकर अपना अपना प्रभाव प्रदर्शित करने लगती हैं जिनसे प्रभावित होकर बुद्धि के कार्य में गतिरोध उत्पन्न होते हैं । मानसिक तंत्र की अन्य शक्तियों का उचित प्रकार से उपयोग ना किया जाए अथवा उन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने दिया जाए तो वें इन्सान की बुद्धि का कार्य लगभग समाप्त करके उसे भ्रष्ट कर देती हैं ।

आदिकाल में संसार सिर्फ वनस्पति तथा प्राणियों की शरण स्थली मात्र था उसे आधुनिक काल तक पहुँचाने एंव संवारने का श्रेय इन्सान को जाता है क्योंकि संसार की प्रत्येक वस्तु इन्सान द्वारा निर्मित है जिसे इन्सान ने समय समय पर आवश्यकता अनुसार अपने बुद्धि कौशल द्वारा प्राप्त किया है । इस ब्रह्मांड में इन्सान ने जल, थल तथा वायु मंडल सभी स्थानों पर अपना प्रभाव तथा अधिपत्य स्थापित करके स्वयं को संसार का निर्माण कर्ता प्रमाणित किया है संसार के सभी कार्य इन्सान के मस्तिक द्वारा ही सम्पन्न हो सके हैं । संसार में इन्सान ने आवश्यकता तथा अपनी कामनाओं के आधार पर नित्य नए से नए आविष्कारों को जन्म दिया है तथा पृथ्वी पर असंख्य प्रकार की वस्तुओं का निर्माण कर भौतिक सुखों का अम्बार लगा दिया है ।

किसी भी नये तथा अद्भुत कार्य को करने से पूर्व उसकी सभी प्रकार की जानकारियां एकत्रित करना अनिवार्य होता है तथा व्यतीत समय की जानकारियों में संशोधन करके भविष्य की आधुनिक वस्तुओं का निर्माण किया जा सकता है । प्रत्येक इन्सान सभी प्रकार की आनन्द प्रदान करने वाली वस्तुओं का आलिंगन प्राप्त करने की कामना करता है परन्तु किसी भी नवनिर्माण में सहायक बनने का साहस नही जुटा पाता । संसार में मात्र कुछ इंसानों के प्रयासों के कारण ही आधुनिक उपकरणों का निर्माण हुआ है तथा समय समय पर होता रहता है आविष्कारकों के अतिरिक्त सभी इन्सान सिर्फ उपकरणों का उपयोग करते हैं । आविष्कारक इन्सान भी साधारण श्रेणी से ही उत्पन्न होते हैं तथा इसी संसार में शिक्षा ग्रहण करके अपनी बुद्धि के बल पर चमत्कार करते हैं क्योंकि वें अपनी बुद्धि के विकास के समय किसी प्रकार की अन्य बातों पर ध्यान नहीं देते एंव अपनी मंजिल प्राप्ति के प्रयास में मग्न रहते हैं ।

जीवन निर्वाह के लिए आजीविका उपार्जन करना आवश्यक है तथा उपार्जन के लिए तीव्र बुद्धि की आवश्यकता होती है क्योंकि बुद्धि द्वारा जितनी अधिक जानकारियां एकत्रित होंगी मस्तिक उतनी ही तीव्र गति से कार्य करता है जिससे जीवन निर्वाह के कार्यों में सरलता उत्पन्न होती है परन्तु बुद्धि विकास के लिए शिक्षा प्राप्ति आवश्यक है । प्रत्येक कार्य का समय निर्धारित होता है जिस प्रकार भोजन, आराधना, निद्रा वगैरह सभी का समय निश्चित है उसी प्रकार बुद्धि विकास के लिए शिक्षा ग्रहण करने का समय बाल्यावस्था से यौवन अवस्था तक निर्धारित होता है वैसे इन्सान जीवन भर जानकारियां जुटाता है परन्तु सर्वाधिक बुद्धि विकास का उचित समय यही होता है । समय व्यतीत होने पर जीवन भर पश्चाताप से उचित होता है कि प्रत्येक समय बुद्धि के विकास का ध्यान रखना तथा नित्य नई जानकारियां एकत्रित करके संसार के निर्माण में सहायक बनने का प्रयास करना ।

बुद्धि मानसिक विकास एवं जीवन संचालन का मुख्य आधार है इसलिए जीवन सरल बनाने के लिए बुद्धि का सदैव किर्याशील होना अनिवार्य है । मानसिक विकास के कार्य में अवरोध उत्पन्न होने का कारण इन्सान का ध्यान भटकना होता है क्योंकि किसी जानकारी को प्राप्त करते समय एकाग्रचित ना होने से वह जानकारी स्मरण शक्ति द्वारा एकत्रित नहीं करी जाती क्योंकि स्मरण शक्ति एक समय पर एक ही कार्य करती है तथा अन्य किसी विघ्न के कारण स्मरण शक्ति कार्य करना बंद कर देती है इसलिए बुद्धि द्वारा जानकारी प्राप्त करते समय एकाग्रचित होना अत्यंत आवश्यक है । एक सशक्त बुद्धिमान इन्सान ही जीवन में अपनी अभिलाषाएँ पूर्ण करने में सक्षम होता है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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