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भूत

June 22, 2014 By Amit Leave a Comment

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भूत अर्थात बीता हुआ जो समाप्त हो चुका हो यह संसार का सबसे अपवाद वाला विषय है क्योंकि किसी भी इन्सान के सामने इस विषय पर वार्ता शुरू होते ही उसने कभी भूत नहीं देखा फिर भी वह भूतों के विषय में ऐसे किस्से बखान करेगा कि लगेगा जैसे अभी भूत यहाँ आकर उनके बीच बैठने वाला है । संसार में इन्सान के रहने की जगह कम पड़ने के कारण इन्सान बहुमंजिला इमारतों में बस कर मुश्किल से गुजारा कर रहा है वहाँ भूत प्रेत जैसी चीजों के लिए रहने का स्थान तथा उनकी शरारतों के लिए सोचना किसी मजाक से कम नहीं होता । विज्ञान द्वारा भूत प्रेतों के अस्तित्व को नकारने के बाद भी समाज में इनके विषय को अलंकृत करके इनकी कहानियां बखान की जाती हैं यहाँ तक कि विदेशों में भी इनका वर्णन सुनने को मिलता है ।

भूतों पर सिनेमा उधोग कुछ अधिक ही मेहरबान है जो भूतों की शक्तियों का ऐसा रूप चित्रित कर पेश करता है कि देखने वालों के होश उड़ जाएँ । भूत प्रेत जैसी चीजों का संसार में अस्तित्व न होते हुए भी उन्हें इन्सान के दिमाग में वजूद मिलने का कारण इन्सान की मानसिक तंत्र की अद्भुत काल्पनिक शक्ति का होना है । इन्सान की सभी शक्तियों में कल्पना शक्ति वह अद्भुत शक्ति है जो अपने बल पर दूसरी दुनिया बसाने की ताकत रखती है क्योंकि कल्पना करते ही इन्सान का मानसिक तंत्र सभी इन्द्रियों को निषक्रिय कर उसके समक्ष ऐसी तस्वीर पेश करता है जैसे काल्पनिक विषय का दृश्य सामने प्रस्तुत हो एवं उसमें कल्पना करने वाले की सक्रिय भूमिका हो ।

बहुत से मनुष्य अपनी कल्पना शक्ति का निरंतर एवं अधिक प्रयोग करते हैं जिसके कारण कल्पनाओं की वस्तु भी उन्हें यथार्थ में दिखाई देती हुई महसूस होती है तथा उनके इसी प्रयास के कारण मस्तिक में नकारात्मक उर्जाओं का संचालन अधिक मात्रा में होने लगता है जिससे इन्सान का आत्म विश्वास कमजोर पड़ने लगता है । ऐसे इन्सान का कभी किसी ऐसे स्थान पर जाना हो जाए जहाँ किसी नकारात्मक उर्जा का घनत्व अधिक हो तथा वह उर्जा उसके मस्तिक पर अपनी पकड़ बना ले तो शत प्रतिशत मानसिक संतुलन में गडबडी उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण मस्तिक का इन्द्रियों पर संतुलन नहीं रहता और वह अजीब प्रकार से हरकतें करने लगता है । पैरों पर संतुलन ना होने से लडखडाना, हाथों पर संतुलन ना होने से हाथापाई करना, जिव्हा पर संतुलन ना होने से बडबडाना, आँखों पर संतुलन ना होने से घूरना या दृष्टि घुमाना जैसे कारणों को देख कर परिवार व आस पास के इन्सान उसे भूत प्रेत की चपेट में आया जानकर विभिन्न प्रकार के उलटे सीधे उपचार शुरू कर देते हैं जिससे कभी कभी मरीज की मानसिक व्यवस्था भयंकर रूप से खराब हो जाती है । ऐसे मरीजों के उपचार हेतु बहुत से पंडित, मौलवी, तांत्रिक ताक लगा कर बैठे रहते हैं जो उनके उपचार के नाम पर अच्छी प्रकार मूर्ख बना कर लूटते हैं ।

कभी कभी नकारात्मक उर्जा से पीड़ित इन्सान किसी पंडित, मौलवी, तांत्रिक या किसी मन्दिर पर जाकर अकस्मात ठीक होने लगता है इसका कारण वहाँ उपलब्ध होने वाली सकारात्मक उर्जा होती है क्योंकि हवन सामग्री व अगरबत्ती, धूपबत्ती, लोबान, फूल, घी, वगैरह पदार्थों के अधिक उपयोग से वहाँ के वातावरण में सकारात्मक उर्जाओं का घनत्व अधिक मात्रा में बढ़ जाता है तथा ऐसी ही किसी उर्जा के प्रभाव से मरीज की नकारात्मक उर्जा का प्रभाव कम होने पर उसका मानसिक संतुलन सुधरने लगता है । मरीज के ठीक होने पर उसे भूत प्रेत से मुक्ति जानकर वहाँ पर मौजूद पंडित, मौलवी, तांत्रिक या उस मन्दिर को श्रेय दिया जाता है एंव उसके गुणगान कर समाज में भ्रान्ति फैलाई जाती है । समाज में फैली इन भ्रांतियों के कारण ही भूत प्रेत का अस्तित्व संसार में है ।

बचपन से ही भूतों के किस्से सुना कर तथा भूत के नाम से डराकर इन्सान को भ्रम में डाल दिया जाता है । बच्चे के दूध ना पीने या किसी वस्तु को ना खाने पर माँ उसे भूत के नाम से डराकर मनाती है । शरारत करने पर बच्चों को भूत के नाम से डराया जाता है जिसके कारण बच्चों के मन में भूत नाम की किसी वस्तु का होना व उन्हें नुकसान पहुंचाना जैसे विषय पनपते हैं जो उम्र के साथ बढकर डरावने हो जाते हैं तथा बकाया कार्य सिनेमा, समाज, मित्र व परिवार पूरा कर देता है जिससे भूत का डरावना आकार मस्तिक में बन जाता है । इन्सान सदैव भूतों को इंसानी भूत के रूप में ही देखता है उसे जानवरों का भूत कभी नहीं सताता तथा ईश्वर को सर्वव्यापक अर्थात सभी जगह मौजूद मानने वाला इन्सान भूत को ईश्वर से शक्तिशाली समझ कर अपनी नादानी का परिचय देता है ।

भूतों की पनाहगार समझे जाने वाले श्मशान में वहां के कार्य कर्ता व उनके परिवार तथा उनके बच्चों को यदि भूत नहीं सताते तो भूतों का कौन सा नुकसान हमने किया है जो हमे सताएगें । भूत एक भ्रम है जो इन्सान के कमजोर आत्म विश्वास व गलत धारणा का परिणाम है तथा किसी के मानसिक संतुलन में आए विकार को भूत समझना नादानी है । जैसे डर व कल्पना और नकारात्मक उर्जा से मानसिक संतुलन पर प्रभाव पड़ता है वैसे ही दृढ इच्छा शक्ति व रसायनों से प्राप्त सकारात्मक उर्जा द्वारा इलाज संभव होता है इसके लिए पाखंड से बचना आवश्यक है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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