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धोखा – dhokha

January 15, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

जो कार्य अपेक्षा के विपरीत किया जाए तथा हानिकारक हो वह धोखा (dhokha) कहलाता है । किसी की असावधानी का लाभ उठाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना धोखा (dhokha) है । किसी को भावनाओं के भंवर में फंसाकर स्वार्थ सिद्ध करना या किसी प्रकार का अनैतिक व नाजायज लाभ उठाना धोखा करना है । किसी का बौद्धिक शोषण करके लाभ कमाना या स्वार्थ सिद्ध करना धोखा (dhokha) कहलाता है । धोखा (dhokha) अर्थात दूसरों को मूर्ख बनाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना है चाहे वह किसी भी प्रकार किया जाए अपना लाभ तथा दूसरों की हानि करना है ।

धोखा (dhokha) करने के अनेक प्रकार हैं | परन्तु धोखे का आरम्भ सदैव असावधानी से होता है । विश्वासघात, बेवफाई, ठगी, षड्यंत्र जैसे अनैतिक कार्य सभी धोखे की श्रेणी में आते हैं । धोखा किसी एक को भी दिया जा सकता है तथा अधिक इंसानों अर्थात सामूहिक रूप से भी किया जाता है । धोखा करने वालों में एक इन्सान द्वारा भी धोखा (dhokha) किया जाता है तथा कई इन्सान मिलकर भी सामूहिक रूप से धोखा कर सकते हैं ।

धोखा (cheat) देने का सबसे पीड़ादायक एवं घ्रणित रूप विश्वासघात होता है । विश्वासघात अर्थात विश्वास की हत्या । साधारण धोखा (cheat) कोई भी कर सकता है परन्तु विश्वासघात सिर्फ वह कर सकता है जिस पर विश्वास होता है । विश्वास की हत्या होने से जो पीड़ा इन्सान के मन को होती है वह साधारण धोखे से बहुत अधिक होती है । विश्वासघात कोई अपना करता है तो पीड़ा और अधिक बढ़ जाती है । पराया इन्सान विश्वासघात करने के लिए सर्वप्रथम अपना विश्वास कायम करता है तथा विश्वास जब अधिक बढ़ जाता है वह किसी भी प्रकार का धोखा करने में सक्षम होता है । विश्वास अपने पर हो या पराये पर जब अधिक बढकर अन्धविश्वास बन जाता है तब विश्वासघात अवश्य होता है । अन्धविश्वास के अंधेपन का लाभ किसी भी इन्सान में लोभ उत्पन्न कर देता है इसलिए विश्वास को अन्धविश्वास बनने से रोकना अनिवार्य होता है ।

बेवफाई धोखे का सबसे घ्रणित रूप है । साथ निभाने एवं सुख दुःख बाँटने के कार्य को वफादारी कहा जाता है । वफादार के प्रति मन में प्रेम उत्पन्न होना स्वाभाविक प्रकिर्या है परन्तु वफादार जब अधूरा साथ देकर भाग जाता है या साथ छोडकर धोखा देता है उसे बेवफाई कहा जाता है । बेवफाई इन्सान के प्रेम को घृणा में परिवर्तित कर देती है । वफा की श्रेणी में गृहस्थी एवं मित्रगण आते हैं जो धोखा देकर बेवफा बन जाते हैं । गृहस्थी में स्त्री हो या पुरुष एक जीवन साथी अपने दूसरे जीवन साथी को धोखा देता है । सम्पूर्ण जीवन साथ निभाने वाले जब धोखा देते हैं तब इन्सान को अपना जीवन भी भार लगने लगता है ।

जिसके परिणाम स्वरूप अधिकतर हत्या करने अथवा आत्महत्या करने जैसे घ्रणित कार्य भी किये जाते हैं । बेवफाई का कारण असंतुष्टि होती है । यदि जीवन साथी किसी प्रकार से असंतुष्ट होता है तथा उसे किसी दूसरे की तरफ आकर्षण उत्पन्न हो एवं संतुष्टि का अहसास हो तो बेवफाई करना निश्चित हो जाता है । मित्र भी असंतुष्ट होकर ही साथ छोड़ते हैं बेवफाई का मुख्य कारण असंतुष्टि एवं आकर्षण से सम्बन्धित है इसलिए जीवन साथी हो या मित्रगण उनकी संतुष्टि का ध्यान रखना आवश्यक है तथा अन्य किसी आकर्षण से भी सावधान होना आवश्यक है ।

ठगी धोखा करने की ऐसी श्रेणी है जिसमे ठगी करने वाला इन्सान दूसरों को मूर्ख बना कर लूटता है । ठगी एक प्रकार से इन्सान का बौद्धिक शोषण है । ठगी करने वाले इंसानों की बुद्धि तीव्र नकारात्मक किर्याशील होती है जिससे वह अपने शिकार को सरलता से फंसा लेते हैं । ठगी के शिकार इन्सान बुद्धिमान होकर भी लुट जाते हैं क्योंकि उनकी बुद्धि में नकारात्मक सक्रियता ना के बराबर होती है । ठग ऐसा शिकार तलाशते हैं जो सीधा सादा परन्तु लोभी प्रवृति का होता है जिसे किसी भी प्रकार का लोभ दिखाकर फंसाया जा सकता है ।

ठग संगठन में मिलकर कार्य करते हैं परन्तु शिकार के समक्ष आवश्यकता अनुसार प्रस्तुत होते हैं बाकि साथी गुप्त तरीके से कार्य करते हैं । इन्सान ठगी का शिकार अपने लोभ या स्वार्थ पूर्ति हेतु होता है। यह ऐसा धोखा (cheat) है जिसका शिकार इन्सान लुटने के पश्चात अपनी मूर्खता याद करके पछताता रहता है ।

धोखे का सबसे भयंकर रूप षड्यंत्र होता है क्योंकि षड्यंत्र द्वारा धन, सम्पदा व भूमि हडपने से लेकर हत्या करने जैसे अपराध तक किए जाते हैं । अपने से लेकर पराये तक कोई भी इन्सान षड्यंत्रकारी बन सकता है । षड्यंत्र के कारण भी अनेक होते हैं जैसे लोभ, स्वार्थ. ईर्षा. घृणा या किसी प्रकार की अपराधिक मानसिकता होती है । षड्यंत्र धोखा देने की धीमी परन्तु जटिल प्रकिर्या है जिसमे दिन, सप्ताह, महीनों से लेकर वर्षों तक कितना भी समय लगे षड्यंत्रकारी चुपचाप गुप्त तरीके से अपनी साजिश को अंजाम देता रहता है । अधिकतर षड्यंत्र के शिकार इन्सान को जानकारी प्राप्त होने तक वह लुट चुका होता है अथवा बिना जानकारी मारा जाता है । षड्यंत्रकारी अपने शिकार की दिनचर्या, आदत तथा स्वभाव की गहन समीक्षा करके अपने कार्य की रुपरेखा बनाता है ताकि अपने कार्य को उचित प्रकार अंजाम दे सके ।

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धोखा किसी भी प्रकार का हो सरल या कठिन इन्सान की असावधानी के कारण होता है । धोखे से बचना कठिन कार्य नहीं है इसके लिए सर्वप्रथम सावधानी आवश्यक है तथा धोखे के कारण एवं उसकी प्रकिर्या को समझना भी आवश्यक है । विश्वासघात होने का कारण अन्धविश्वास है इसलिए विश्वास किसी अपने से करो या पराये से सावधानी आवश्यक है । बेवफाई से बचने के लिए जीवन साथी के स्वभाव में परिवर्तन व असंतुष्टि को समझना आवश्यक है तथा मित्रों की बेवफाई के लिए उनके स्वभाव के परिवर्तन का ध्यान रखना अनिवार्य है ।

ठगी सदैव किसी प्रकार का प्रलोभन दिखाकर करी जाती है | इसलिए जब कोई किसी प्रकार के प्रलोभन का आकर्षण उपलब्ध करवाता है | तो उसकी गहन समीक्षा करने के साथ यह समझना भी आवश्यक है कि कोई भी इन्सान बिना स्वार्थ किसी का भला नहीं कर सकता । जब कोई अपना या पराया अधिक मधुरता से तथा बनावटीपन से व्यवहार करता है तो सावधानी आवश्यक हो जाती है क्योंकि यह किसी प्रकार के षड्यंत्र का इशारा होता है । दूसरों के स्वभाव पर ध्यान देने से धोखे से सरलता से बचा जा सकता है । जब भी किसी के स्वभाव में किसी प्रकार का परिवर्तन आता है तो उसकी मानसिकता किसी ना किसी प्रकार से विचलित होती है वह चाहे परेशानी में हो अथवा किसी प्रकार का षड्यंत्र कर रहा हो । सावधानी एवं सतर्कता सबसे बड़ी सुरक्षा है ।

फरेब

July 26, 2014 By Amit Leave a Comment

किसी इन्सान की विवेकहीन भ्रमित बुद्धि का अनाधिकृत तरीके से लाभ उठाकर अथवा कमजोर सकारात्मक भावनाओं को भावनात्मक भाव में बहाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना फरेब कहलाता है । इन्सान में फरेब उत्पन्न होने का मुख्य कारण शिक्षा पद्धति में नैतिक शिक्षा की कमी और इन्सान में परिश्रम हीनता एंव बेसब्री होना है । जो इन्सान परिश्रम से घबराते हैं और दूसरे इंसानों के सुखों को देखकर वें भी संसारिक सुखों को अधिक से अधिक एंव जल्द से जल्द प्राप्त करना चाहते हैं तो उनकी लालसा सब्र का बांध तोड़कर उनमे स्वार्थ की भावनाएं उत्पन्न करती है तथा उन्हें फरेब द्वारा प्राप्त करने के लिए बाध्य करती है । फरेब द्वारा स्वार्थ साधना इन्सान की सदियों पुरानी आदत है परन्तु वर्तमान समय में बढ़ते संसाधन और आधुनिक उपकरणों की चमक की ओर आकर्षित होकर इन्सान में उन्हें प्राप्त करने की भूख ने आश्चर्य जनक रूप से उसे स्वार्थी बना दिया है जिसके कारण वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए फरेब करने का आसान रास्ता चुनता है । अल्प नैतिक शिक्षा, परिश्रम हीनता, बेसब्री, की वजह से परिवार के सदस्यों से लेकर समाज व देश के संचालक तक फरेब द्वारा अपना स्वार्थ सिद्ध करने में व्यस्त हैं ।

फरेब को बढ़ावा देने की शुरुआत इन्सान के परिवार और उसके सदस्यों द्वारा होती है । छोटे स्तर पर परिवार के सदस्यों से उनकी भावनाओं का लाभ उठाते हुए स्वार्थ वश फरेब करना बड़े अपराधिक कार्यो की शुरुआत होती है । परिवार के सदस्यों द्वारा उसकी कारगुजारिओं पर ध्यान ना देना अथवा मोह ममता के कारण गलती को अनदेखा करना उसे अपने फरेब की सफलता का विश्वास दिलाना है जिसकी वजह से उसमे अपनी स्वार्थी कामनाओं को पूरा करने का साहस बढ़ जाता है और वह अधिक से अधिक अपना स्वार्थ साधने की कोशिश करता है । यदि परिवार का कोई दूसरा सदस्य भी स्वार्थी और फरेबी हो तो सोने पे सुहागा होता है क्योंकि स्वार्थी को दूसरे स्वार्थी का साथ मिलने पर दोनों की गतिविधियों में दोगुनी बढ़ोतरी होती है । जिस परिवार को संभालना चाहिए वह ही उसके पतन का कारण बनता है ।

जिस प्रकार शक्कर खोर को शक्कर प्राप्त हो जाती है उसी प्रकार स्वार्थी इन्सान को दूसरे स्वार्थी इंसानों का साथ सरलता से प्राप्त हो जाता है जो उसके मन को अत्याधिक मोहित करता है । स्वार्थी इंसानों की महफिल में अपने अपने फरेब करने के तरीकों द्वारा मूर्ख बना कर लूटने के मसालेदार चटपटे किस्सों का वर्णन एंव किसी महारथी फरेबी की एतहासिक गाथा उसके फरेबी ज्ञान की बढ़ोतरी करने में किसी शिक्षक का कार्य करती है । स्वार्थी इंसानों को फरेब करने के नये नये तरीके सिखाने में हमारे बड़े पर्दे के चलचित्र बखूबी अपना महत्वपूर्ण कार्य करते हैं और छोटा पर्दा अर्थात टी वी भी इसी प्रकार के कार्यों को अंजाम देता है । बाकि रही सही कसर थिर्लर उपन्यास लिखने वाले लेखक बड़ी बारीकी से फरेब करने के सभी पहलूओं को समझाने और उनका ज्ञान वृद्धि करने में पूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं जिससे स्वार्थी इन्सान फरेब करने के तरीकों में P,H,D करके नित नये कार्यों को अंजाम देने में व्यस्त हो जाता है ।

वर्तमान समय में इन्सान के जीवन में फरेब करने वालों की कोई कमी नहीं है जरा सी चूक होते ही वह लुट चुका होता है या होती है इन्सान के सबसे नजदीकी भी उसे लूटने के लिए तैयार रहते हैं सिर्फ मौका मिलने का इंतजार होता है । सर्व प्रथम सन्तान माँ बाप की भावनाओं का फायदा उठाते हुए अपने स्वार्थ सिद्ध करती है जिस सम्मान की अपेक्षा इन्सान अपनी सन्तान से करता है वह सिर्फ दिखावे और स्वार्थ साधने के लिए सम्मान करती है । भाई बहन जैसे रिश्ते भी स्वार्थी होते जा रहे हैं जिनका भावनात्मक लाभ उठाने में फरेबी कोई कसर नहीं छोड़ते । पति पत्नी जैसे रिश्ते भी विश्वसनीयता खो चुके हैं शादी का पवित्र रिश्ता धन व काम की आग में जल रहा है तथा स्वार्थ एंव फरेब की कहानी बनकर समाज में हर तरह के गलत कार्यों को अंजाम दे रहा है । मित्रता वर्तमान समय में सिर्फ स्वार्थ पूर्ति का साधन बनकर रह गई है इसलिए मित्र का विश्वास सोच समझकर करना ही बुद्धिमानी है क्योंकि मित्र बन कर लूटना तथा हत्या जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देना साधारण कार्य हो गया है ।

समाज में धर्म के नाम पर भावनात्मक लूट इन्सान के फरेब की पराकाष्ठा है जिसमे साधू संत बनकर व बड़े बड़े धार्मिक संस्थान खोलकर साधारण इन्सान का भरपूर शोषण होता है । अपनी कामना पूर्ति की चाह में स्वार्थी इन्सान समाज को गुमराह करने का जाल फैलाए बैठे हैं तथा साधारण इन्सान भावनाओं में बहकर अपना शोषण करवाने उनके पास पहुंच जाता है । अत्याधिक शातिर व स्वार्थी इन्सान अपनी वाक् पटुता के बल पर देश की साधारण जनता को अपने फरेब के जाल में फंसा कर देश पर कब्जा जमा लेते हैं तथा पूरा देश अपनी इच्छानुसार लूटते हैं जिनके फरेब को उजागर होने पर भी कोई उनके विरुद्ध जाने का साहस नहीं करता ।

फरेब करने वाले पकड़े जाते हैं दंड के साथ उनका समाज में सम्मान भी समाप्त हो जाता है क्योंकि वह संसार में सबसे अधिक बुद्धिशाली नहीं हैं तथा कोई भी झूट अधिक दिन तक नहीं चल सकता परन्तु समाज में फरेब समाप्त करना नामुमकिन है क्योंकि फरेबी इन्सान बेशर्मी धारण कर अपने स्वार्थ सिद्ध करने के कार्यों में लिप्त हैं । स्वार्थी एंव फरेबी इंसानों से बचने के लिए अपने विवेक का उपयोग करना सफलतम कार्य है क्योंकि विवेक को धोखा देना बुद्धि के वश का कार्य नहीं है । अपनी भावनाओं को किसी के सामने उजागर करना अथवा अपने रहस्यों को प्रत्यक्ष करना अपने जीवन को संकट में डालना है क्योंकि शातिर घात लगाए कमजोरी मालूम होने का इंतजार करते हैं ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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