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ईमानदारी

March 6, 2016 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार 11 Comments

कर्तव्य, मर्यादा व सत्य का पूर्ण निष्ठा से पालन करना ईमानदारी कहलाता है। जिस कार्य को उचित प्रकार व पूर्ण निष्ठा एवं सच्चाई से सम्पन्न किया जाए वह करने वाली इन्सान की ईमानदारी कहलाती है। कोई भी कार्य वह व्यापार हो या नौकरी अथवा किसी से किया गया वादा या किसी से लिया गया उधार एवं इन्सान के कर्तव्य व मर्यादाएं यदि पूर्ण निष्ठा व सच्चाई से किया जाए तब ही वह ईमानदारी से निभाया गया कर्तव्य कहा जाता है। किसी भी प्रकार का झूट या कर्तव्य परायणता में अभाव होने से वह ईमानदारी के क्षेत्र में नहीं आता। इन्सान ईमानदारी के विषय में अनेक प्रकार के वक्तव्य देता है परन्तु स्वयं ईमानदारी से परहेज करता है क्योंकि समाज में ईमानदारी के विषय में अनेकों प्रकार की भ्रांतियां हैं। ईमानदारी के विषय में समझा जाता है कि ईमानदार इन्सान का जीवन अत्यंत कठिनाई से तथा अभाव पूर्ण निर्वाह होता है जो वास्तव में मिथ्या है।

ईमानदारी का महत्व व ईमानदारी से होने वाला लाभ एवं ईमानदारी के कारण समाज द्वारा विश्वास तथा सम्मान प्राप्ति इन सब विषयों की समीक्षा करने एवं ईमानदारी की परिभाषा ज्ञात करने के पश्चात ही इन्सान ईमानदारी के प्रति जागरूक हो सकता है। ईमानदारी किसी प्रकार का भार नहीं है जिसे उठाने में शक्ति या साहस की आवश्यकता हो या कोई ऐसा बंधन नहीं है जिसका त्याग नहीं किया जा सकता। ईमानदारी मात्र कुछ नियम हैं जिनको सच्चाई व निष्ठा पूर्ण निभाने से इन्सान ईमानदार बन सकता है तथा समाज में ईमानदारी की छवि प्रस्तुत करी जा सकती है जिसके प्रभाव से इन्सान को प्रत्येक समय समाज में सम्मान तथा विश्वास कायम होने के कारण भरपूर सहयोग प्राप्त होता है। समाज व सम्बन्धी एवं मित्रगण किसी भी ईमानदार छवि के इन्सान को सदैव पूर्ण सहयोग देने को तत्पर रहते हैं। ईमानदार इन्सान पर बुरा समय या अभाव उत्पन्न होने पर उसे तन, मन व धन से सहयोग देने वालों की कोई कमी नहीं होती यह ईमानदार होने का लाभ व महत्व है।

इन्सान को जीवन में सर्वप्रथम परिवार के सदस्यों व सम्बन्धियों एवं मित्रों तथा समाज के प्रति कुछ कर्तव्य एवं मर्यादाएं निर्धारित होती हैं। जो इन्सान परिवार के प्रति अपने कर्तव्य पूर्ण निष्ठा से निभाता है उसको परिवार भी पूर्ण सम्मान प्रदान करता है। सम्बन्धों एवं समाज के प्रति सजगता एवं मर्यादा से तथा व्यवहारिक इन्सान सभी स्थानों पर सम्मान प्राप्त करता है यह एक ईमानदार व कर्तव्य निष्ठ होने का पुरस्कार होता है। जो इन्सान परिवार, सम्बन्धों व समाज की परवाह न करते हुए अपनी अय्याशी तथा अपने मनोरंजन व स्वार्थ पूर्ति में लिप्त रहते हैं उन्हें परिवार एवं समाज की दृष्टि में बेईमान समझा जाता है ऐसे इंसानों को ना सम्मान प्राप्त होता है तथा आवश्यकता होने पर किसी से सहयोग भी प्राप्त नहीं होता। यदि कोई इन्सान परिवार या सम्बन्धों की कर्तव्य परायणता में असमर्थ रहता है परन्तु पूर्ण प्रयास अवश्य करता है उसे बेईमान नहीं मजबूर तथा असहाय समझा जाता है क्योंकि इन्सान परिस्थितियों के आगे सदैव विवश होता है और विवशता बेईमानी नहीं होती।

जीविका उपार्जन के लिए जो इन्सान व्यापार करते हैं उनके लिए ईमानदारी की छवि होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि ईमानदारी से किया गया व्यापार भविष्य के लिए सुदृढ़ होता है। समाज ईमानदार व्यापारी से ही खरीददारी करना पसंद करता है इसलिए ईमानदारी से किया गया व्यापार सफलता का प्रमाण पत्र होता है। व्यापारी की ईमानदारी का अर्थ सामान के भाव से नहीं होता क्योंकि अधिक दाम वसूलने वाला लोभी होता है बेईमान नहीं होता। व्यापार में ईमानदारी का अर्थ है किसी सामान में मिलावट ना करना तथा वजन में किसी प्रकार की हेराफेरी ना करना। व्यापारी किसी घटिया सामान को ग्राहक को बताकर बेचता है तो वह पूर्ण ईमानदार है परन्तु जो बताए बगैर या घटिया सामान को उत्तम बताकर बेचता है तो वह बेईमान होता है।

सेवा कार्य अर्थात नौकरी करने वाले इन्सान का ईमानदार होना उसकी सफल नौकरी का प्रमाण पत्र होता है क्योंकि ईमानदार कर्मचारी किसी भी संस्थान अथवा निजी मालिक को अतिप्रिय होताहै। नौकरी में ईमानदारी का अर्थ है समय पर पहुंचकर अपने सभी कार्य पूर्ण निष्ठा के साथ करना जो कर्मठ व ईमानदार कर्मचारी के लिए सरल कार्य होता है। जो कर्मचारी देर से पहुंचते हैं तथा कार्य करने में आनाकानी या बहानेबाजी करते हैं अथवा समय बर्बाद करते हैं उन्हें कभी ईमानदार कर्मचारी नहीं कहा जा सकता। कार्य सम्पन्न करने के पश्चात विश्राम करने वाला कर्मचारी ईमानदार होता है परन्तु कार्य से पूर्व विश्राम करने वाला बेईमान कहलाता है।

वादा निभाना ईमानदारी होती है यदि किसी प्रकार का विघ्न या परेशानी उत्पन्न हो जाए तो लाचारी के प्रति अवगत करवाकर वादा पूर्ण ना करने की क्षमा मांगने वाला बेईमान नहीं लाचार कहलाता है। जो इन्सान वादा पूर्ण करने में सक्षम होकर भी निभाने में आनाकानी या मना करते हैं उन्हें ईमानदार नहीं समझा जा सकता। उधार लेकर समय पर वापस करना आवश्यक होता है यदि वापस करने में किसी प्रकार की मजबूरी उत्पन्न हो जाए तो उधार देने वाले को मजबूरी समझाकर समय मांगने व क्षमा मांगने से ईमानदारी कलंकित नहीं होती। उधार लेकर बहाने बनाना तथा छुपना ईमानदारी को कलंकित करना है।

ईमानदारी इन्सान की सकारात्मक मानसिकता है जिसके कारण वह अपने कर्तव्य पूर्ण निष्ठा व सच्चाई से निभाता है इसलिए ईमानदार इन्सान सभी को पसंद होते हैं। बेईमान इन्सान भी ईमानदार इन्सान पर विश्वास रखते हुए उससे सम्बन्ध रखना पसंद करते हैं। जीवन में ईमानदारी सफलता एवं सम्मान का प्रमाण पत्र है तथा बुरे समय में यदि परिवार भी सहायता करने से मना कर देता है तो ईमानदार इन्सान को समाज से सहयोग अवश्य प्राप्त होता है यही ईमानदारी का पुरुस्कार होता है।

विशेष = इन्सान कितना भी बेईमान हो वह सदैव ईमानदारी का ही सम्मान करता है जिसका प्रमाण है कि बेईमान इन्सान अपने परिवार के सदस्यों, मित्रों, सम्बन्धियों एंव अपने कर्मचारियों अथवा जो भी उससे सम्बन्धित हो सभी से अपने प्रति ईमानदारी की अभिलाषा करता है । इन्सान स्वयं बेईमान होकर भी अपने प्रति किसी की बेईमानी बर्दास्त नहीं कर सकता अर्थात विजय सदैव ईमानदारी की ही होती है ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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