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ईश्वर

April 26, 2014 By Amit Leave a Comment

bhagwan

असंख्य तारों का यह विशाल ब्रह्माण्ड और इसके अद्भुत सौर मंडल में अपने पथ पर सूर्य का करोंडो वर्षो से भ्रमण करती पृथ्वी तथा पृथ्वी पर उपलब्ध जीवन जिसके रहस्यों को खोजता इन्सान अपनी उपलब्धिओं पर खुश होता एंव अपनी पीठ ठोकते नहीं अघाता । परन्तु इस ब्रह्माण्ड की रचना और इसमें जीवन मृत्यु का चक्र नियन्त्रण करने वाली ब्रह्माण्ड की रहस्यमय महानतम शक्ति जिसे ईश्वर, अल्लाह या गॉड किसी भी नाम से पुकारा जाए उसके बारे में इन्सान की जानकारी नगण्य है । संसार के अनेकों रहस्य ऐसे हैं जिनका पता लगाने में इन्सान असमर्थ है वह इन रहस्यों को ईश्वर की अद्भुत रचना मानकर छोड़ देता है । आदिकाल से वर्तमान तक इन्सान ईश्वर को खोज कर उसका सानिध्य प्राप्त करने की कोशिश में लगा हुआ है तथा इस कार्य के लिए इन्सान द्वारा प्रत्येक संभव प्रयास किया गया एंव होता रहेगा ।

संसार में जब इन्सान समस्याओं के चक्रव्यूह में फंस जाता है तथा उन समस्याओं का समाधान नहीं प्राप्त होता तो वह ईश्वर की खोज में निकल पड़ता है क्योंकि अपनी समस्याओं का जिम्मेदार वह ईश्वर को मानता है और समस्या का निवारण भी ईश्वर के द्वारा चाहता है । इन्सान की इसी कमजोरी को पहचान कर धूर्त इन्सान ईश्वर के नाम पर तरह तरह के आडम्बर रचते हैं और उसे मूर्ख बना कर लूटते हैं । ईश्वर के दर्शन तथा उसके द्वारा आशीर्वाद प्राप्त करने की इच्छा इन्सान को मन्दिरों में पहुँचा देती है जहाँ पर अनेकों प्रकार की मूर्तियाँ अलग अलग प्रकार से सजी धजी खड़ी रहती हैं । उन मूर्तियों को ईश्वर या उसका प्रतिनिधि जानकर उसके आगे आराधना कर प्रसाद व फूल अर्पण करके अपनी व्यथा प्रकट करने वाला इन्सान उनसे उम्मीद करता है कि वें उसके जीवन की सभी समस्याओं को समाप्त करके उसके जीवन को खुशियों से भर देंगे ।

इन्सान की कल्पना को फलीभूत होने में अनेक प्रश्न उत्पन्न होते हैं जिनका उत्तर उसका उचित मार्गदर्शन कर सकता है । जिन मूर्तियों को वह ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में देखता है वे सभी हजारों वर्ष पूर्व होते थे तथा मूर्ति का निर्माण कुछ समय पूर्व हुआ है फिर बिना देखे किस प्रकार किसी की मूर्ति बनाई जा सकती है । मूर्ति को बांसुरी पकड़ा देने से वह कृष्ण की मूर्ति कहलाती है यदि कंधे पर तीर कमान रख दिया जाए तो वह राम हो जाता है । गले में सर्प की माला होने से शिव की मूर्ति कहलाती है अर्थात बांसुरी या तीर कमान व सर्प उनकी पहचान है तो बंसुरी या तीर कमान या सर्प से ही अपनी इच्छाओं की पूर्ति की आस लगाना क्या उचित निर्णय है क्योंकि मूर्ति तो किसी की भी नहीं है वह सिर्फ मूर्तिकार की कल्पना मात्र है । इसी प्रकार तस्वीरों से अपनी समस्याओं का निवारण चाहने वालों को समझना पड़ेगा कि यह तस्वीर किसी चित्रकार की कल्पना मात्र है एंव कल्पनाएँ किसी का भला नहीं कर सकती हैं ।

ईश्वर को सृष्टि का रचेयता मान कर इन्सान का यह मानना है कि सभी जीवों को चाहे वह पशु हो या पक्षी इन्सान हो या जानवर जलचर हो या नभचर भोजन ईश्वर के द्वारा उपलब्ध होता है । परन्तु इन्सान ईश्वर को भोग लगाकर उसका तिरस्कार करता है तथा छोटा सा दीपक जलाकर, फूल चढाकर, धूपबत्ती या अगरबत्ती जला कर उसके बदले में संसार के सभी सुख प्राप्त करना चाहता है । इन्सान किसी मूर्ति के आगे प्रार्थना करते समय उसे अपना पूरा परिचय एंव पता देना भी भूल जाता है जिसके कारण भी काम में बाधा उत्पन्न हो जाती है । संसार की इतनी आबादी में किसी की पहचान करने जैसा कार्य इतना सरल नहीं होता इसलिए अपना पूरा पता उचित प्रकार से देने पर भूल होने की संभावना समाप्त हो जाती है ।

ईश्वर जीवन प्रदान करने के पश्चात किसी के जीवन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करता क्योंकि ईश्वर द्वारा किसी प्रकार का हस्तक्षेप का कोई प्रमाण नहीं है एंव यदि उसे हस्तक्षेप करना होता तो वह संसार में होने वाले पाप तथा अत्याचार को अवश्य रोकता जिससे उसकी बनाई हुई दुनिया का सर्वनाश होने से बच जाए । संसार में सबसे बुरे कार्य इन्सान द्वारा ही होते हैं जिसमे बलात्कार व हत्या सबसे घिनौने व जघन्य अपराध हैं जिससे ईश्वर की सृष्टि के नियम भंग होते हैं । बलात्कारी एंव हत्यारे को सजा ना दे सकने का कारण ईश्वर का किसी के कार्य में हस्तक्षेप ना करने का प्रमाण है । इसलिए ईश्वर की आराधना किसी प्रकार की प्राप्ति के लिए करना मूर्खता पूर्ण कार्य है ईश्वर के विषय पर भ्रमित करके धूर्त व चालाक इन्सान भोले इंसानों की भावनाओं का नाजायज लाभ उठाते हैं इसलिए अपने अंत:करण में झांककर अपने विवेक द्वारा सच्चाई का पता लगा कर ही किसी पर विश्वास करना उचित निर्णय होता है ।

किसी से वह वस्तु मांगी जा सकती है जो उसकी हो अथवा जिस पर उसका अधिकार हो इसलिए ईश्वर से भौतिक वस्तुएं मांगना नादानी है क्योंकि इस संसार में सुई से लेकर हवाई जहाज तक इन्सान द्वारा निर्मित है । किसी प्रकार की नौकरी मांगना भी नादानी ही है क्योंकि ईश्वर ने किसी को किसी का नौकर नहीं बनाया ईश्वर की तरफ से सभी जीव आजाद हैं । धन सम्पदा मांगने से उत्तम ईश्वर से सद बुद्धि अवश्य मांगी जा सकती है क्योंकि बुद्धि ईश्वरीय देन है तथा बुद्धि के बल पर कोई भी प्राप्ति या कार्य सरलता से किया जा सकता है । ईश्वर किसी मंदिर के आश्रित नहीं है अथवा किसी मंदिर में शरणागत नहीं है ईश्वर प्रत्येक स्थान पर विराजमान है तो फिर क्यों स्थान – स्थान पर उसे तलाशना सिर्फ अपने विवेक का उपयोग करने की आवश्यकता है ईश्वर को तलाशने की आवश्यकता स्वयं समाप्त हो जाएगी ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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