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neeti – नीति

May 12, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

जब किसी भी कार्य का उत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए योजना बद्ध तरीके से कार्य किया जाता है | वह योजना पद्धति नीति (neeti) कहलाती है | नीति (neeti) इन्सान के जीवन का सबसे अनिवार्य विषय हैं | क्योंकि कार्य में परिश्रम से planning (neeti) अधिक महत्वपूर्ण होती है | नीति (neeti) उत्तम हो तो कम परिश्रम से भी उत्तम परिणाम आते हैं | यदि नीति (neeti) कमजोर हो अथवा ना हो तो अधिक परिश्रम करने पर भी परिणाम ओछे रह जाते हैं |

जैसे देश में प्रशासन चलाने के लिए राजनीती एवं विदेशों से सम्बन्ध बनाने के लिए कूटनीति का उपयोग होता है | यदि राजनीती या कूटनीति कमजोर हो तो देश की समृद्धि एवं प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है उसी प्रकार इन्सान के जीवन में किसी भी कार्य में नीति कमजोर होती है तो वह सदैव असफल होता है | एक सफल जीवन के लिए इन्सान को नीतिवान होना आवश्यक है|

इन्सान को जीवन में प्रत्येक कार्य में नीति अपनाने की आवश्यकता होती है | शिक्षा, कर्म, विवाह, सम्बन्ध, परवरिश, समाज, परिवार सभी जगह नीति आवश्यक होती है | शिक्षा में शीर्ष पर रहने वाले विद्यार्थी कर्म क्षेत्र में जब अपने से कम अंक प्राप्त करने वालों को उन्नति प्राप्त करते हुए देखते हैं तो उन्हें लगता है यह किस्मत, सिफारिश या चापलूसी द्वारा सफल हो रहे हैं | सबसे अधिक अंक प्राप्त करने पर कर्म क्षेत्र में पिछड़ना वास्तव में उनकी कमजोर शिक्षा नीति (planning) होती है |

जो विद्यार्थी पुस्तकों को इतना अधिक रटते हैं कि जैसा पुस्तक में लिखा होता है | बिलकुल वैसा ही परीक्षा में लिखकर शत -प्रतिशत अंक अवश्य प्राप्त कर लेते हैं | परन्तु शिक्षा का वास्तविक अर्थ ना समझने के कारण कर्म क्षेत्र में उपयोग करने पर असफल होते हैं | शिक्षा नीति (neeti) के अनुसार विषय का अर्थ समझना तथा उसके मर्म एवं गहराई को समझने से विद्यार्थी विद्वान् बनता है | जो कम अंक प्राप्त करने पर भी किसी भी कर्म क्षेत्र में कभी विफल नहीं होता |

इन्सान जब कर्म करना आरम्भ करता है वह नौकरी, व्यापार, कृषि, उद्योग, कला, खेल, शिक्षक या अन्य किसी भी प्रकार का कार्य करे उसके लिए एक अच्छी नीति (neeti) अपनाना आवश्यक है | कर्म क्षेत्र की सबसे पहली नीति है ईमानदारी जो इन्सान अपना कार्य ईमानदारी से करता है तथा वह कार्य के प्रति पूर्ण निष्ठावान एवं समर्पित होता है उसकी सफलता को कोई भी शक्ति रोक नहीं सकती |

कर्म क्षेत्र की दूसरी नीति इन्सान का व्यवहार होता है जो दूसरे इंसानों को प्रभावित करके अपना कार्य सम्पन्न करने में सफलता प्रदान करता है | समय का सम्मान करना अर्थात सदैव समय पर कार्य करना इन्सान की सफल नीति (neeti) होती है | इन्सान की वाणी, आचरण, भाषा, शब्द, परिश्रम सभी नीति अनुसार उपयोग करने पर वह सदैव सफलता की सीढियाँ चढ़ता है |

वैवाहिक जीवन अपनाते समय अधिकतर स्त्री की सुन्दरता एवं शिक्षा तथा पुरुष की आमदनी एवं शिक्षा देखी जाती है | जिसके कारण विवाह के कुछ समय के पश्चात ही घरेलू झगड़े आरम्भ हो जाते हैं | सफल गृहस्थ जीवन के लिए वैवाहिक नीति (neeti) के तहत स्त्री पुरुष का व्यवहार, आचरण, कर्म, प्रतिष्ठा, मानसिकता, सभी में समानता होना आवश्यक है | सभी प्रकार के सम्बन्ध सुरक्षित रखने के लिए इन्सान को उनमें गर्मजोशी बनाए रखना तथा किसी प्रकार की आलोचनाओं, बहस, तानाकशी, भेदभाव से बचना आवश्यक होता है | आवश्यकता से अधिक हास्य भी सम्बन्धों को क्षीण करता है सम्बन्ध नीति के अनुसार इन्सान को अपनी मर्यादा का सदैव पालन करना अनिवार्य होता है |

सन्तान की अच्छी परवरिश करने पर भी जब सन्तान आवारा अथवा नाकारा बन जाए तो दोष किस्मत को दिया जाता है | सन्तान के आवारा या नाकारा होने का कारण परवरिश में गलत नीति (neeti) अपनाना होता है | सन्तान को आवश्यकता से अधिक सुविधाएं प्रदान करना उन्हें आलसी एवं नाकारा बनाना है | सन्तान को अधिक धन प्रदान करने का अर्थ है उन्हें आवारा बनाना | जब तक सन्तान समझदार ना हो उन पर दृष्टि बनाए रखना तथा उनका मार्गदर्शन करना बहुत आवश्यक होता है | परवरिश की सबसे अधिक गलत planning (neeti) है | जब माँ बाप सन्तान को समय ना देकर सुविधाओं द्वारा अपना पीछा छुड़ाने का प्रयास करते हैं तो सन्तान का मार्गदर्शन सोहबत करती है जो उन्हें किसी भी अनुचित मार्ग पर पहुंचा देती है |

समाज हो या परिवार दूसरों के कार्यों में दखल देना, मर्यादाओं का पालन ना करना, बिना मांगें सलाह देना, दूसरों का समय बर्बाद करना ऐसी गलत नीतियाँ हैं | जो इन्सान के जीवन में तकरार एवं कलह का मुख्य कारण बन जाती हैं | विश्वास सदैव मर्यादा में ही करना उत्तम होता है क्योंकि मर्यादा भंग होते ही विश्वासघात का आरम्भ हो जाता है | इन्सान जितना अधिक स्पष्ट जीवन व्यतीत करता है वह उतना ही अधिक सुखी भी रहता है यह जीवन की सबसे उत्तम नीति (planning) है | जीवन में कोई भी कार्य जब नीति अनुसार किया जाता है तो जीवन सरल हो जाता है बिना नीति या कमजोर नीति द्वारा किया गया कार्य सदैव इन्सान के लिए समस्या का कारण बनता है |

सिद्धांत – siddanth

April 30, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार 2 Comments

इन्सान की जीवन शैली दो प्रकार की होती है | 1. नियमित 2. अनियमित । वह इन्सान जो समय एवं मौके के अनुसार जीवन में परिवर्तन करते रहते हैं वह मौका परस्त अर्थात अनियमित होते हैं । जो इन्सान अपने जीवन के कार्य नियम अनुसार करते हैं तथा नियमों को जीवन के लिए आवश्यक मानते हैं | वह नियमित जीवन निर्वाह करते हैं । नियमित जीवन में कुछ इन्सान ऐसे नियम निर्धारित करते हैं | जो उत्कर्ष्ठ एवं श्रेष्ठ नियम होते हैं तथा जिनसे इन्सान समाज में अपनी अलग पहचान स्थापित करता है | वह नियम सिद्धांत (siddanth) कहलाते हैं । सिद्धांत (siddanth) के नियमों का पूर्ण निष्ठा से पालन करने वाला इन्सान सिद्धांतवादी कहलाता है । सिद्धांत (siddanth) के नियम कठोर अवश्य होते हैं परन्तु सदैव लाभदायक एवं भविष्य के निर्माण कर्ता भी होते हैं ।

सिद्धांत (siddanth) के नियम साधारण जीवन से आरम्भ होकर विशेष कार्यों एवं कर्मों के लिए निर्धारित होते हैं । सिद्धांत के मुख्य नियम हैं समय पर कार्य करना, सदैव कार्य सम्पूर्ण करना, उचित कार्य ही करना, अनुशासन पालन करना इत्यादि । समय की बर्बादी, अधूरे कार्य, अनुचित कार्य, अनुशासन हीनता इन्सान को साधारण अथवा तुच्छ बना देते हैं । सिद्धांत इन्सान की दिनचर्या से ही आरम्भ हो जाते हैं क्योंकि सिद्धांतवादी इन्सान अपनी दिनचर्या भी सिद्धांतों के अनुसार ही व्यतीत करता है । सिद्धांत के अनुसार सोने जागने के नियम भी प्राकृति के अनुसार निर्धारित होते हैं जिस प्रकार संसार के अन्य जीव प्राकृति के नियमों का पालन करके स्वस्थ रहते हैं उसी प्रकार पालन करने से इन्सान स्वस्थ एवं सुखी रह सकता है । सिद्धांत अनुसार भोजन जिव्हा का स्वाद देखकर नहीं स्वास्थ्य के लिए लाभकारी एवं पौष्टिक होना आवश्यक है । वस्त्र वगैरह भी फैशन त्यागकर शारीरिक स्वास्थ्य के अनुसार ग्रहण करना ही सिद्धांतवादी बनाता है । जो इन्सान निजी जीवन में सिद्धांतों का पालन नहीं कर सकते वह अन्य सिद्धांत अपनाकर भी ढोंगी ही कहलाता है ।

कर्म एवं जीवन निर्वाह के कार्यों में सिद्धांत इन्सान को पृथक पहचान दिलाते हैं । व्यापार हो अथवा नौकरी सर्वप्रथम समय का पालन करना आवश्यक है । समय पर कार्य पर पहुँचना तथा अपने सभी कार्य समय पर सम्पूर्ण करना एवं सदैव उचित कार्य ही करना इन्सान को ईमानदार इन्सान की श्रेणी में पहुँचा देता है । अनुशासित होने से संगी साथी एवं सम्बन्धित इन्सान सदैव सम्मान प्रदान करते हैं । सिद्धांतवादी इन्सान को किसी कार्य के लिए यदि सहायता की आवश्यकता अथवा किसी प्रकार के कर्ज की आवश्यकता होने से सरलता से प्राप्त हो जाता है । सिद्धांतवादी इन्सान को सरलता से सहायता एवं कर्ज प्राप्त होने का मुख्य कारण उसके किए हुए वादे पर विश्वास होना है तथा मान्यता होती है कि सिद्धांतवादी इन्सान ईमानदार होते हैं जो झूटे वादे कभी नहीं करते ।

झूट एवं फरेब का सिद्धांतवाद में कोई स्थान नहीं होता क्योंकि सिद्धांतवाद में समझौते करने का कोई स्थान नहीं होता । समझौता करना अनुचित कार्य का आरम्भ होता है वह चाहे नियमों के सन्दर्भ में किया गया हो अथवा किसी अन्य विषय में हो क्योंकि समझौता सदैव अनुचित एवं उचित के मध्य होता है  । समझौते में उचित आधा अनुचित हो जाता है तथा अनुचित को आधा उचित होने का श्रेय प्राप्त हो जाता है । सिद्धांत अर्थात उसूल इन्सान को समाज तथा संसार में सम्मान प्रदान करवाते हैं क्योंकि सिद्धांत का अर्थ है अडिग एवं चट्टान की तरह मजबूत इन्सान । सिद्धांतवादी इन्सान की इच्छाशक्ति सदैव प्रबल एवं दृढ होती है । संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं सभी सिद्धांतवादी अवश्य हुए हैं । कोई भी इन्सान जब तक अपने जीवन में सिद्धांतों को नहीं अपनाता वह समाज में अपनी पृथक पहचान स्थापित नहीं कर सकता । सिद्धांत इन्सान को पृथक पहचान एवं सम्मान इसलिए दिलवाते हैं क्योंकि सिद्धांत दृढ मानसिकता एवं श्रेष्ठ चरित्र का प्रमाण् पत्र होते हैं ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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