किसी इन्सान पशु, वस्तु या विषय को अपने उपयोग अथवा कार्य हेतु पूर्ण सक्षम समझना विश्वास कहलाता है । विश्वास करते समय उसकी त्रुटियाँ ना दिखाई देने अथवा अनदेखा कर देने को अंधविश्वास कहा जाता है । अंधविश्वास अर्थात आँखें बंद करके सत्यता पर विश्वास करना होता है । अंधविश्वास करने वाला इन्सान एक प्रकार से बंद आँखों से देखा हुआ दृश्य सत्य समझता है उसने जो भी दृश्य आँखें बंद करने से पूर्व देखा उसे वह दृश्य ही दिखाई देता रहता है और इन्सान भ्रमित होकर उसे ही सत्य मान लेता है । अंधविश्वास ऐसा भ्रम है जो इन्सान की बुद्धि को भ्रमित करता है जिसके प्रभाव के कारण इन्सान आँखें होने पर भी दृष्टिविहीन हो जाता है तथा उसे वह दिखाई देता है जो उसकी बुद्धि देखना पसंद करती है ।
अंधविश्वास का सबसे अधिक प्रभाव इन्सान के विवेक पर होता है । अंधविश्वास के कारण इन्सान की जिस विषय में भी बुद्धि भ्रमित हो जाती है वह उसमें विवेकशून्य हो जाता है । इन्सान अंधविश्वास अनेक विषयों पर करता है परन्तु सर्वाधिक अंधविश्वास भावनाओं से सम्बन्धित विषयों पर होता है जिनमें श्रद्धा भक्ति एवं प्रेम मुख्य विषय हैं । श्रद्धा भक्ति में ईश्वर, देवी देवता, दिव्य शक्तियाँ एवं साधू संत मुख्य हैं परन्तु धर्म से संबधित इन्सान, तांत्रिक, पंडित, ज्योतिषी वगैरह भी इसी श्रेणी के पात्र हैं । प्रेम के विषय में परिवार एवं गृहस्थी के सदस्य, संबधी एवं मित्रगण तथा ऐसे पराये इन्सान भी जिस से अधिक प्रेम हो जाए इन्सान के अंधविश्वास का कारण बन जाते हैं ।
श्रद्धा भक्ति की श्रेणी में प्रथम ईश्वर, देवी देवता, दिव्य शक्तियाँ एवं साधू संत होते हैं । श्रद्धा भक्ति के दो मुख्य आधार हैं भय एवं स्वार्थ । भय का कारण ईश्वर, देवी देवता, दिव्य शक्तियाँ एवं साधू संतों के नाराज होने पर अनिष्ट होने का भय तथा स्वार्थ का कारण इनकी कृपा दृष्टि से सम्पूर्ण स्वार्थ सिद्ध होने की अभिलाषा होती है । ईश्वर, देवी देवताओं एवं साधू संतों पर अंधविश्वास का कारण इन्सान को जन्म से ही इनकी शक्तियों से भयभीत करना तथा इनकी शक्तियों का महिमा मंडन करना है जिसके कारण इन्सान इन्हें जीवन का आधार एवं स्वार्थ पूर्ति का साधन मानकर अंधविश्वास की गर्त में डूब जाता है । इन्सान सभी साधू संतों की वेशभूषा देखकर उनके समक्ष नतमस्तक हो जाता है वह चाहे साधू के वेश में कोई धूर्त या ठग हो सच्चाई ज्ञात करने का प्रयास भी नहीं होता । यह इन्सान के अंधविश्वासी होने का प्रमाण पत्र होता है ।
श्रद्धा भक्ति की दूसरी श्रेणी में तांत्रिक, पंडित, ज्योतिषी वगैरह होते हैं । इन्सान की दृष्टि में तांत्रिक, पंडित एवं ज्योतिषी वगैरह सभी दिव्य शक्तियों के मालिक एवं परम ज्ञानी होते हैं जिनके आशीर्वाद से संसार के सभी कार्य सरलता से सफल हो सकते हैं । अपनी समस्याओं से मुक्ति पाने एवं स्वार्थ सिद्ध करने का साधन मानकर इन्सान इन धर्म शास्त्रियों के प्रति अंधविश्वासी हो जाता है । जब कोई धूर्त रंगा सियार बनकर साधारण इन्सान को धर्म के नाम पर अंधविश्वास के जाल में फंसाता है उसमें फंसने वाले की गलती अधिक होती है । अंधविश्वास के जाल में फंसने वाला इन्सान वास्तव में अपने लोभ एवं स्वार्थ के जाल में उलझा होता है इसलिए उसे इनकी वास्तविकता लुटने के पश्चात ही समझ आती है ।
प्रेम का इन्सान की भावनाओं में उत्कृष्ट स्थान है क्योंकि प्रेम के कारण इन्सान को मानसिक सुख एवं शांति का अहसास होता है । प्रेम का आधार विश्वास है क्योंकि इन्सान जिससे भी अपने प्रति वफादारी एवं सहायता का विश्वास करता है उसके प्रति समर्पित होकर प्रेम उत्पन्न करने लगता है । प्रेम विश्वास से आरम्भ होकर जब इन्सान को मानसिक सुख एवं शांति प्रदान करता है तो भावनाएँ प्रभावित होकर प्रेम में वृद्धि करती हैं जिसके कारण प्रेम विश्वास को अंधविश्वास में परिवर्तित कर देता है इन्सान में प्रेम का आरम्भ परिवार एवं गृहस्थी के सदस्यों से होता है क्योंकि यह सभी अपने प्रति वफादार एवं सहायक प्रतीत होते हैं । इन्सान संबधी एवं मित्रगण जिसे भी अपने प्रति वफादार एवं सहायक समझता है उसके प्रति समर्पित होकर प्रेम करने लगता है । यदि कोई पराया इन्सान वफादार एवं सहायक लगे अथवा किसी प्रकार का मानसिक सुख एवं शांति का आधार बन जाए तो वह भी प्रेम का पात्र बन जाता है ।
प्रेम एवं विश्वास एक सिक्के के दो पहलु हैं क्योंकि प्रेम वफादारी के विश्वास के कारण होता है तथा प्रेम है तभी विश्वास भी होता है । प्रेम में वृद्धि होने से प्रेम अँधा हो जाता है जो विश्वास को भी अंधविश्वास बना देता है । श्रद्धा भक्ति एवं विश्वास भी प्रेम की तरह एक सिक्के के दो पहलु ही होते हैं । स्वार्थ सिद्ध होने के विश्वास के कारण श्रद्धा एवं भक्ति की भावना प्रबल होती है तथा श्रद्धा भक्ति है तो विश्वास भी अवश्य होता है । श्रद्धा भक्ति की भावना में वृद्धि प्रेम की तरह श्रद्धा को अंध श्रद्धा बना देती है तब अंध श्रद्धा विश्वास को अंधविश्वास बना देती है । विश्वास में धोखा होने की संभावना होती है जिसे विश्वासघात कहा जाता है परन्तु अंधविश्वास स्वयं ही धोखा होता है ।
विश्वास का कारण आवश्यकता होने पर सहायता, स्वार्थ पूर्ति एवं वफादारी की आशा करना है परन्तु अंधविश्वास में आशा के स्थान पर इन्सान अधिकार समझने लगता है । विश्वास करना उचित है क्योंकि विश्वास करने से ही प्राप्ति है परन्तु अंधविश्वास करके अधिकार समझना मूर्खता है । अधिकार सिर्फ खुद पर होता है दूसरों पर अधिकार नहीं हो सकता सिर्फ आशा करी जा सकती है । विश्वास करने में सावधानी होने पर विश्वासघात से बचा जा सकता है परन्तु अंधविश्वास होने पर सावधानी ही समाप्त हो जाती है तो धोखा अवश्य होता है । अंधविश्वास से बचने के लिए सकारात्मक पहलु के साथ-साथ नकारात्मक पहलु की समीक्षा करना आवश्यक है ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके । सुनने, देखने के पश्चात भी विचार करके अथवा दूसरों से सलाह करके स्थिति स्पष्ट करके ही विश्वास करना श्रेष्ठ होता है । परिवर्तन संसार का नियम है कल का वफादार आज बेवफा बन सकता है इसलिए विश्वास पर सावधानी ही श्रेष्ठ होती है ।