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फरेब

July 26, 2014 By Amit Leave a Comment

किसी इन्सान की विवेकहीन भ्रमित बुद्धि का अनाधिकृत तरीके से लाभ उठाकर अथवा कमजोर सकारात्मक भावनाओं को भावनात्मक भाव में बहाकर अपना स्वार्थ सिद्ध करना फरेब कहलाता है । इन्सान में फरेब उत्पन्न होने का मुख्य कारण शिक्षा पद्धति में नैतिक शिक्षा की कमी और इन्सान में परिश्रम हीनता एंव बेसब्री होना है । जो इन्सान परिश्रम से घबराते हैं और दूसरे इंसानों के सुखों को देखकर वें भी संसारिक सुखों को अधिक से अधिक एंव जल्द से जल्द प्राप्त करना चाहते हैं तो उनकी लालसा सब्र का बांध तोड़कर उनमे स्वार्थ की भावनाएं उत्पन्न करती है तथा उन्हें फरेब द्वारा प्राप्त करने के लिए बाध्य करती है । फरेब द्वारा स्वार्थ साधना इन्सान की सदियों पुरानी आदत है परन्तु वर्तमान समय में बढ़ते संसाधन और आधुनिक उपकरणों की चमक की ओर आकर्षित होकर इन्सान में उन्हें प्राप्त करने की भूख ने आश्चर्य जनक रूप से उसे स्वार्थी बना दिया है जिसके कारण वह अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए फरेब करने का आसान रास्ता चुनता है । अल्प नैतिक शिक्षा, परिश्रम हीनता, बेसब्री, की वजह से परिवार के सदस्यों से लेकर समाज व देश के संचालक तक फरेब द्वारा अपना स्वार्थ सिद्ध करने में व्यस्त हैं ।

फरेब को बढ़ावा देने की शुरुआत इन्सान के परिवार और उसके सदस्यों द्वारा होती है । छोटे स्तर पर परिवार के सदस्यों से उनकी भावनाओं का लाभ उठाते हुए स्वार्थ वश फरेब करना बड़े अपराधिक कार्यो की शुरुआत होती है । परिवार के सदस्यों द्वारा उसकी कारगुजारिओं पर ध्यान ना देना अथवा मोह ममता के कारण गलती को अनदेखा करना उसे अपने फरेब की सफलता का विश्वास दिलाना है जिसकी वजह से उसमे अपनी स्वार्थी कामनाओं को पूरा करने का साहस बढ़ जाता है और वह अधिक से अधिक अपना स्वार्थ साधने की कोशिश करता है । यदि परिवार का कोई दूसरा सदस्य भी स्वार्थी और फरेबी हो तो सोने पे सुहागा होता है क्योंकि स्वार्थी को दूसरे स्वार्थी का साथ मिलने पर दोनों की गतिविधियों में दोगुनी बढ़ोतरी होती है । जिस परिवार को संभालना चाहिए वह ही उसके पतन का कारण बनता है ।

जिस प्रकार शक्कर खोर को शक्कर प्राप्त हो जाती है उसी प्रकार स्वार्थी इन्सान को दूसरे स्वार्थी इंसानों का साथ सरलता से प्राप्त हो जाता है जो उसके मन को अत्याधिक मोहित करता है । स्वार्थी इंसानों की महफिल में अपने अपने फरेब करने के तरीकों द्वारा मूर्ख बना कर लूटने के मसालेदार चटपटे किस्सों का वर्णन एंव किसी महारथी फरेबी की एतहासिक गाथा उसके फरेबी ज्ञान की बढ़ोतरी करने में किसी शिक्षक का कार्य करती है । स्वार्थी इंसानों को फरेब करने के नये नये तरीके सिखाने में हमारे बड़े पर्दे के चलचित्र बखूबी अपना महत्वपूर्ण कार्य करते हैं और छोटा पर्दा अर्थात टी वी भी इसी प्रकार के कार्यों को अंजाम देता है । बाकि रही सही कसर थिर्लर उपन्यास लिखने वाले लेखक बड़ी बारीकी से फरेब करने के सभी पहलूओं को समझाने और उनका ज्ञान वृद्धि करने में पूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं जिससे स्वार्थी इन्सान फरेब करने के तरीकों में P,H,D करके नित नये कार्यों को अंजाम देने में व्यस्त हो जाता है ।

वर्तमान समय में इन्सान के जीवन में फरेब करने वालों की कोई कमी नहीं है जरा सी चूक होते ही वह लुट चुका होता है या होती है इन्सान के सबसे नजदीकी भी उसे लूटने के लिए तैयार रहते हैं सिर्फ मौका मिलने का इंतजार होता है । सर्व प्रथम सन्तान माँ बाप की भावनाओं का फायदा उठाते हुए अपने स्वार्थ सिद्ध करती है जिस सम्मान की अपेक्षा इन्सान अपनी सन्तान से करता है वह सिर्फ दिखावे और स्वार्थ साधने के लिए सम्मान करती है । भाई बहन जैसे रिश्ते भी स्वार्थी होते जा रहे हैं जिनका भावनात्मक लाभ उठाने में फरेबी कोई कसर नहीं छोड़ते । पति पत्नी जैसे रिश्ते भी विश्वसनीयता खो चुके हैं शादी का पवित्र रिश्ता धन व काम की आग में जल रहा है तथा स्वार्थ एंव फरेब की कहानी बनकर समाज में हर तरह के गलत कार्यों को अंजाम दे रहा है । मित्रता वर्तमान समय में सिर्फ स्वार्थ पूर्ति का साधन बनकर रह गई है इसलिए मित्र का विश्वास सोच समझकर करना ही बुद्धिमानी है क्योंकि मित्र बन कर लूटना तथा हत्या जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देना साधारण कार्य हो गया है ।

समाज में धर्म के नाम पर भावनात्मक लूट इन्सान के फरेब की पराकाष्ठा है जिसमे साधू संत बनकर व बड़े बड़े धार्मिक संस्थान खोलकर साधारण इन्सान का भरपूर शोषण होता है । अपनी कामना पूर्ति की चाह में स्वार्थी इन्सान समाज को गुमराह करने का जाल फैलाए बैठे हैं तथा साधारण इन्सान भावनाओं में बहकर अपना शोषण करवाने उनके पास पहुंच जाता है । अत्याधिक शातिर व स्वार्थी इन्सान अपनी वाक् पटुता के बल पर देश की साधारण जनता को अपने फरेब के जाल में फंसा कर देश पर कब्जा जमा लेते हैं तथा पूरा देश अपनी इच्छानुसार लूटते हैं जिनके फरेब को उजागर होने पर भी कोई उनके विरुद्ध जाने का साहस नहीं करता ।

फरेब करने वाले पकड़े जाते हैं दंड के साथ उनका समाज में सम्मान भी समाप्त हो जाता है क्योंकि वह संसार में सबसे अधिक बुद्धिशाली नहीं हैं तथा कोई भी झूट अधिक दिन तक नहीं चल सकता परन्तु समाज में फरेब समाप्त करना नामुमकिन है क्योंकि फरेबी इन्सान बेशर्मी धारण कर अपने स्वार्थ सिद्ध करने के कार्यों में लिप्त हैं । स्वार्थी एंव फरेबी इंसानों से बचने के लिए अपने विवेक का उपयोग करना सफलतम कार्य है क्योंकि विवेक को धोखा देना बुद्धि के वश का कार्य नहीं है । अपनी भावनाओं को किसी के सामने उजागर करना अथवा अपने रहस्यों को प्रत्यक्ष करना अपने जीवन को संकट में डालना है क्योंकि शातिर घात लगाए कमजोरी मालूम होने का इंतजार करते हैं ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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