इन्सान जब अपने या किसी के प्रति होने वाले जीवन शैली के कार्यों की अपने तरीके से रूप रेखा तैयार करता है तथा उस रूप रेखा के अनुसार कार्यों को अंजाम देता है अथवा कार्य सम्पन्न होते हुए देखना चाहता है उसे इन्सान की भावना कहा जाता है । भावना इन्सान की ऐसी मानसिक शक्ति है जो कल्पना शक्ति एंव मन की कामनाओं के तालमेल से विकसित होती है प्रेम, ईर्षा, घृणा, आक्रोश वगैरह भावनाओं से उत्पन्न होते हैं तथा भावनाओं को साकार करते समय इन्सान अपनी बुद्धि तथा विवेक का इच्छा अनुसार उपयोग करता है । भावनाएँ उत्पन्न होते समय यदि मन के विकार प्रभावित करते हैं तो विकारों के मिश्रण से भावनाएं नकारात्मक उत्पन्न होती हैं । मन के विकार रहित होने या विकारों को मिश्रित ना करने से भावनाएं सकारात्मक उत्पन्न होती हैं ।
इन्सान अपने अधिकांश कार्य अपनी भावनाओं के आधार पर ही करता है तथा इन्सान की प्रगति में उसकी भावनाओं का सहयोग अवश्य होता है क्योंकि भावनाओं के वशीभूत ही इन्सान परिश्रम करता है । अर्थात जिस इन्सान में भावनाएं उत्पन्न ना हों या कमजोर हों तो वह इन्सान आलस्य पूर्ण जीवन व्यतीत करता है क्योंकि इन्सान की भावनाएं उसको जीवन का लक्ष्य निर्धारित करने में सहयोग प्रदान करती हैं । कठोरतम भावनाएं इन्सान को लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं जिससे इन्सान अपने परिश्रम व बुद्धि बल के द्वारा अपनी मंजिल प्राप्त करने की पुरजोर कोशिश को अंजाम देता है तथा जीवन में सफलता प्राप्त करता है । भावनाहीन इन्सान संसार के दूसरे जीवों की तरह लक्ष्यहीन जीवन व्यतीत करते हैं जिनका संसार में जीवित होने या मरने से समाज को कोई अंतर नहीं पड़ता है ।
इन्सान की भावनाएं नकारात्मक हों तथा उसका विवेक किर्या शील ना हो तो परिणाम भयंकर निकलते हैं क्योंकि भावनाओं की नकारात्मकता को विवेक द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है । इन्सान की नकारात्मक भावनाएं यदि उसके अपने लिए हों तो ऐसे इन्सान किसी भी कार्य की असफलता से घबराकर बहुत जल्द निराश हो जाते हैं तथा अधिक निराशा उनकी बुद्धि को कुंठित कर देती है इससे वह जीवन से हार मान कर संघर्ष करना बंद कर देता है जिसके कारण उसका जीवन ठहरे हुए पानी की तरह खराब होने लगता है । भावनाओं में अधिक नकारात्मकता कभी कभी इन्सान को आत्महत्या जैसे मूर्खतापूर्ण कार्य करने पर भी मजबूर कर देती है । यदि नकारात्मक भावनाएं दूसरे इंसानों के प्रति हों तो वह दूसरे इंसानों को सताने एंव उनका नुकसान करने में ख़ुशी अनुभव करता है तथा धीरे धीरे वह अपराध के रास्ते पर चल पड़ता है । विकृत भावनाएं इन्सान को बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराध करने के लिए प्रेरित करती हैं ।
इन्सान की भावनाएं अगर सकारात्मक हैं था उसका विवेक पूर्ण किर्या शील हो तो वह अपने जीवन में किसी भी महान कार्य को करने में सफलता प्राप्त कर सकता है । सकारात्मक भावनाएं इन्सान के अपने लिए हों तो वह जीवन के सभी लक्ष्य सफलता पूर्वक प्राप्त कर लेता है एवं अपने विवेक पूर्ण कार्यों से समाज में विशिष्ठ स्थान प्राप्त करता है तथा धन, संसाधन और सम्मान प्राप्त करके जीवन की बुलंदियों को प्राप्त कर लेता है । परिवार या मित्रों एंव किसी दूसरे के प्रति सकारात्मक भावनाएं होने से इन्सान उनकी भलाई के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर देता है एंव उनकी खुशियों के लिए परिश्रम द्वारा उनके लिए सभी प्रकार के सुख सुविधाएँ जुटाना अपने जीवन का परम कर्तव्य समझकर कार्य करता है ।
समाज तथा इंसानियत के प्रति सकारात्मक भावनाएं होने एंव उसमे विवेक व बुद्धि का पूर्ण सहयोग होने से इन्सान संसार के महानतम कार्यों को अंजाम देता है तथा अपना सारा जीवन संसार की भलाई एंव सेवा करने में समर्पित कर देता है । इसका प्रमाण स्वामी विवेकानन्द, स्वामी श्रद्धानन्द, मदर टेरेसा जैसे महान इन्सान हैं जिन्होंने अपने जीवन के सभी सुखों एवं खुशियों का त्याग करके इंसानियत की सेवा में अपना जीवन न्यौछावर किया । संसार का विकास ऐसे सकारात्मक भावनाओं और विवेकशील इंसानों के कारण ही होता है जिनका समाज सदा आभारी रहेगा एंव उनके द्वारा किए गए महान कार्यों को सदा याद रखेगा क्योंकि उनके द्वारा किया गया कोई भी कार्य स्वार्थ वश नहीं किया गया ।
किसी के प्रति प्रेम की भावनाएं उत्पन्न होने से इन्सान अपना सर्वस्य उस पर लुटा देता है यदि ईर्षा का भाव उत्पन्न हो जाए तो उसे मिटाने पर उतारू हो जाता है भावनाएं इन्सान को जमीन से बुलंदियों तक ले जा सकती हैं परन्तु इसके लिए भावनाओं का सकारात्मक होना तथा विवेक द्वारा उन्हें मार्गदर्शन करना आवश्यक होता है । किसी की भावनाओं को आहत करने से वह इन्सान आक्रोशित होकर कोई भी भयंकर कार्य को अंजाम दे सकता है इसलिए दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना भी बुद्धिमानी का कार्य है । इन्सान में भावनाएं होना आवश्यक हैं क्योंकि भावनाएं ही इन्सान को विकास करने में सहायक सिद्ध होती हैं परन्तु भावनाओं में बहकर किसी कार्य या इन्सान के प्रति समर्पित होने से पूर्व उसकी सत्यता की समीक्षा करना भी आवश्यक है क्योंकि भावनाएं ही इन्सान के लिए विनाश का कारण भी बन सकती हैं ।