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कुंठा

June 1, 2014 By Amit Leave a Comment

kuntha

परिवार के सदस्य या समाज के अन्य इंसानों द्वारा अत्यधिक प्रताड़ित होने पर अपने पौरुष की कायरता के प्रति अथवा जीवन निर्वाह के कार्यों में निरंतर असफलता प्राप्त होने पर अपनी बुद्धि की निर्बलता के प्रति उत्पन्न होने वाला आक्रोश तथा वैस्म्न्य इन्सान के अंतःकरण में जीवन के प्रति घृणा उत्पन्न करता है जिसे इन्सान की कुंठा कहा जाता है । घृणा तथा कुंठा में अधिकतर समानताएं होती हैं जिसमें घृणा अपनी भावनाओं पर प्रहार होने के कारण अन्य इंसानों के प्रति उत्पन्न होती है परन्तु कुंठा अपने प्रति उत्पन्न होने वाला विकार है जो इन्सान के मानसिक तंत्र की अनिवार्य किर्या इच्छा शक्ति की निर्बलता तथा आत्म विश्वास की क्षीणता के कारण उत्पन्न होती है । कुंठा इन्सान के मानसिक तंत्र का सबसे भयंकर विकार है क्योंकि कुंठा के कारण इन्सान का बौद्धिक विकास समाप्त हो जाता है तथा इन्सान कुंठा की अधिकता के कारण आत्म हत्या जैसे घृणित कार्य कर लेता है ।
जो इन्सान किसी की प्रताड़ना अथवा अत्याचार से आक्रांतित होकर यदि अपने पौरुष के प्रति कुंठित होता है तो उसे यह समझना भी आवश्यक है कि इन्सान का वास्तविक पौरुष परिश्रम है जिसके द्वारा वह अपना तथा अपने परिवार का जीवन निर्वाह करता है तथा जो इन्सान समाज के विकास हेतु अथवा किसी निरीह प्राणी की सेवा हेतु परिश्रम करता है वह संसार का वास्तविक पौरुष बल होता है । किसी की त्रुटि पर उसे प्रताड़ित करना अथवा किसी को अत्यधिक उत्साह के कारण सताना नादानी होती है क्योंकि बुद्धिमान इन्सान वार्तालाप द्वारा किसी की त्रुटि को उसका अहसास कराता है तथा उत्साह में सताने का कार्य नहीं करते वें अपना उत्साह किसी की सहायता करके शांत करते हैं । किसी पर अपना बल दिखाने वाला दबंग वहशीपन की मानसिकता का शिकार मूर्ख प्राणी होता है जिससे दूरी बनाए रखना ही बुद्धिमानी होती है क्योंकि मूर्ख के मुंह लगने वाला भी मूर्ख ही कहलाता है ।
अपनी मानसिक शक्ति को निर्बल मानकर कुंठित होने से आवश्यक अपनी इच्छा शक्ति को दृढ़ बनाने का कार्य करना है क्योंकि मानसिक शक्तियाँ कभी निर्बल नहीं होती सिर्फ उनका उचित प्रकार से उपयोग करने का तरीका तथा दृढ़ इच्छा शक्ति द्वारा कार्य सफल कर लेने का आत्म विश्वास होना आवश्यक होता है । स्वयं को अल्प शिक्षित मानकर अपने बुद्धि कौशल पर अविश्वास करने से पूर्व यह जानकारी भी प्राप्त करनी अनिवार्य है कि संसार में जितनी भी वस्तुओं के आविष्कार हुए हैं उन्हें सफलता पूर्वक अंजाम देने वाले आविष्कारक अधिकतर अल्प शिक्षित रहे हैं । किसी भी कार्य की सफलता उस कार्य को अंजाम देते समय दृढ़ता पूर्वक सफल होने का विश्वास होता है क्योंकि कार्य करते समय असमंजस की नकारात्मक मानसिकता कार्य की सफलता में अवरोध उत्पन्न करती है ।
इन्सान यदि कुछ तथ्यों का अवलोकन कर ले तो जीवन में कभी कुंठा उत्पन्न नहीं हो सकती जैसे संसार का प्रत्येक निर्बल से निर्बल प्राणी जीवन के अंतिम क्षण तक संघर्ष करके अपना जीवन निर्वाह करता है । इन्सान को अपने आत्म विश्वास में सशक्तिकरण के लिए जानवरों के गुणों की समीक्षा अवश्य करनी चाहिए क्योंकि जानवरों के अनेक गुण प्रेरणा दायक हैं जिनसे आत्म विश्वास तथा कार्य क्षमता में वृद्धि हो सकती है तथा जिनके द्वारा जीवन में सरलता पूर्वक सफलता प्राप्त करी जा सकती है । जिस प्रकार सिंह अपने आक्रामक गुण के कारण जंगल का राजा कहा जाता है क्योंकि सिंह अपना सम्पूर्ण बल लगाकर तूफान जैसी तीव्रता से अपने शिकार पर आक्रमण करता है जिससे विशालकाय शिकार भी प्रथम वार में धारा शाही हो जाता है । इन्सान किसी कार्य में पूर्ण उत्साह, बल तथा लगन का प्रयोग करे तो वह कार्य अवश्य सफल होता है ।
समाज में सुचारू रूप से जीवन निर्वाह के लिए विश्वसनीयता बनानी अत्यंत आवश्यक होती है जिसे कुत्ते के गुण से सीखा जा सकता है जो रुखा सूखा तथा अल्प भोजन प्राप्त करने पर भी अपने मालिक का त्याग नहीं करता । समय का सम्मान करने वाला इन्सान जीवन में सदैव सफलता प्राप्त करता है क्योंकि समय के पाबंद इन्सान का सभी सम्मान करते हैं यह गुण मुर्गे से सीखा जा सकता है जो समय के प्रति अत्यंत जागरूक होता है तथा समय पर भोर में बांग देकर जागृत करता है । कोए की तरह कार्य के प्रति ढीटता से कार्य अवश्य सफल होता है । बगुले की तरह एकाग्रचित होकर कार्य करने से कार्य सदैव सफलता पूर्वक सम्पन्न होता है । गधे की कर्मठता का गुण सफलता का प्रमाण पत्र होता है जिस प्रकार गधा थकान होने पर भी धूप तथा गर्मी का अहसास ना करते हुए कर्मठता पूर्वक अपना कार्य करता रहता है उसी प्रकार जो इन्सान पूर्ण कर्मठ होता है उसका सभी पूर्ण सम्मान करते हैं तथा वह सफल भी अवश्य होता है । चींटी जिस प्रकार लगन पूर्वक कार्य करती है उसी प्रकार कार्य करने पर सफलता इन्सान के कदम चूमती है ।
कुंठित अवस्था में चिडचिडा स्वभाव, अभद्र व्यहवार तथा एकांत प्रिय होकर आभाव ग्रस्त जीवन व्यतीत करने से उचित नकारात्मक मानसिकता का त्याग करके सकारात्मक सोच के साथ संघर्ष करते हुए जीवन निर्वाह करने में कभी ना कभी सफलता अवश्य प्राप्त होती है । संसार की किसी भी समस्या का समाधान कुंठा नहीं होता यद्धपि विवेक द्वारा किसी भी समस्या का समाधान सरलता पूर्वक किया जा सकता है । कुंठा पर एक दोहा पूर्ण उचित होता है
करत करत अभ्यास के जडमति होत सुजान । रस्सी आवत जात से सिल पर परत निशान ।.
अर्थात निरंतर अभ्यास करने से स्थिर बुद्धि में भी ज्ञान उत्पन्न होकर चंचलता आ जाती है जिस प्रकार रस्सी के निरंतर घर्षण से कुँए का मजबूत पत्थर भी घिस जाता है । इन्सान नकारात्मक मानसिकता के कारण असफल होता है क्योंकि कार्य करने से शरीर नहीं थकता परन्तु मन के कारण अवश्य थक जाता है इसलिए मन पर कुंठा का बोझ डालने से बेहतर समस्या का समाधान करने के प्रयास होते हैं । इन्सान के आत्मविश्वास का बल किसी भी प्रकार के कार्य को सफलता पूर्वक करने में सक्षम होता है इसलिए कुंठित होने से उत्तम अपना आत्मविश्वास जगाकर संघर्ष करना है इससे सफलता अवश्य प्राप्त होती है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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