
इन्सान का मन किसी विषय अथवा वस्तु के रहस्य या सत्य को ज्ञात करने अथवा उसमे संशोधन करने या आवश्यकता वश किसी प्रकार का अविष्कार करने से प्रेरित होकर मानसिक तंत्र को सक्रिय करता है तब मानसिक तंत्र बुद्धि द्वारा एकत्रित जानकारियों से मंथन करके प्रेरित विषय पर किर्याशील होकर उसका समाधान करने का प्रयास करता है इस किर्या को इन्सान का विवेक कहा जाता है । विवेक मानसिक तंत्र की ऐसी किर्या है जिसमे किसी भी विषय की सत्यता ज्ञात करने तथा किसी प्रकार की वस्तु अथवा विषय की खोज का कार्य करने की क्षमता होती है । पृथ्वी पर आदिकाल से वर्तमान समय तक उपलब्ध सभी वस्तुओं के जो भी अविष्कार किए गए हैं तथा प्राप्त सम्पूर्ण ज्ञान संतों तथा दार्शनिक एंव महान विद्वानों द्वारा इन्सान को दिया गया तथा मानवता का मार्गदर्शन किया गया है सभी इन्सान के विवेक द्वारा संभव हो सका है ।
विवेक इन्सान को प्राकृति द्वारा प्राप्त अनुपम तथा अद्भुत उपहार है जिसके द्वारा किसी भी कठिन से कठिन कार्य का समाधान सरलता पूर्वक किया जा सकता है परन्तु विवेक का उचित प्रकार से प्रयोग करना भी आवश्यक है जिसके लिए विवेक की कार्यशैली की समीक्षा करना अनिवार्य है । मानसिक तंत्र द्वारा विवेक की किर्या अनेक प्रकार से कार्यरत होती है जिसमे मुख्य सकारात्मक तथा नकारात्मक एंव सुप्त अवस्था होती है । अन्य मानसिक शक्तियों के सम्पर्क से तथा उनके सम्बन्धों से प्रभाव में विभिन्नता उत्पन्न हो जाती है एंव परिणाम भी सर्वदा पृथक ही प्रदर्शित होते हैं । अन्य इंसानों का सम्पर्क भी विवेक के कार्यों में अवरोध उत्पन्न कर सकता है अथवा विवेक की कार्यशैली में सुधार तथा कार्य क्षमता में वृद्धि कर सकता है ।
अधिकांश इन्सान अपने विवेक का कोई उपयोग नहीं करते जिसके कारण उनका विवेक सुप्त अवस्था में रहता है क्योंकि मानसिक तंत्र द्वारा गहन मंथन से ही विवेक किर्याशील होता है तथा जब तक विचारों का मंथन ना किया जाए विवेक सक्रिय नहीं होता । जो इन्सान सिर्फ उदर पूर्ति करने तथा जीवन निर्वाह के साधारण कार्यों के अतिरिक्त किसी प्रकार की अन्य सक्रियता समाज तथा जीवन के प्रति प्रदर्शित नहीं करते उनके विवेक में जागृति उत्पन्न होने की कोई आवश्यकता भी नहीं होती ऐसे इन्सान संसार में दरिद्र अथवा अत्याधिक मजबूर होते हैं तथा विवेक की सुप्त अवस्था के कारण इन्सान को अपने मान अपमान का भी ध्यान नहीं होता । विवेकहीन इंसानों की संकीर्ण मानसिकता का समाज का प्रत्येक इन्सान लाभ उठाता है तथा उन्हें अभाव पूर्ण जीवन व्यतीत करने पर मजबूर कर देता है ।
इन्सान की मानसिकता में विवेक की सकारात्मक भूमिका होने से वह शिक्षा प्राप्त करके विवेक द्वारा ज्ञान उत्पन्न करने का सार्थक प्रयास करता है यदि विवेक अल्प अवस्था में सक्रिय हो तो भी इन्सान समाज में सम्मान पूर्वक अपना जीवन सुख एंव शांति पूर्वक निर्वाह करता है । जिन इंसानों का विवेक सशक्त रूप से सकारात्मक किर्याशील होता है वें इन्सान अपने जीवन में किसी भी प्रकार की नई वस्तु का आविष्कार करते हैं अथवा समाज में अग्रणी रहकर समाज का मार्गदर्शन करते हैं तथा उचित प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं । सकारात्मक विवेक इन्सान में ज्ञान उत्पन्न करता है जिसको समाज द्वारा विद्वान, ज्ञानी अथवा बुद्धिमान माना जाता है तथा पूर्ण सशक्त विवेकशील इंसानों के कारण ही समाज विकास करता है ।
मानसिक तंत्र में नकारात्मक विवेक उत्पन्न होने से इन्सान बुद्धि की अल्प अवस्था में भी स्वयं को बुद्धिमान समझने लगता है तथा अहंकार वश अन्य इंसानों को मूर्ख समझकर उनसे बहस करना तथा उनका अपमान करना उसका स्वभाविक कार्य हो जाता है । इन्सान के विवेक की नकारात्मक किर्या सशक्त होने से वह अपराधिक कार्यों में लिप्त हो जाता है तथा नकारात्मकता जितनी अधिक सशक्त होती है वह उतना ही भयंकर अपराध करता है जिसमें साइबर क्राईम जैसे अपराध प्रमाण प्रस्तुत करते हैं जो शिक्षित तथा बुद्धिमान इंसानों द्वारा किए जाते हैं । विवेक की नकारात्मकता के प्रभाव से इन्सान सदैव अवैध प्रकार से अधिक से अधिक प्राप्त करने की कामना करता है तथा ऐसे अपराधी अपने विवेक का भरपूर प्रयोग करके किसी भी भयंकर अपराध को अंजाम दे सकते हैं तथा समाज को किसी भी प्रकार की हानि पहुंचा सकते हैं ।
विवेक का मन व बुद्धि के साथ सकारात्मक सम्बन्ध इन्सान में ज्ञान उत्पन्न करके उसे समाज का मार्गदर्शन करने के लिए प्रेरित करता है तथा उसमे विषयों पर तर्क प्रस्तुत करने एंव अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने की क्षमता उत्पन्न करता है । विवेक का मन व बुद्धि से नकारात्मक सम्बन्ध उसे खुदगर्ज एंव लोभी तथा तथा अहंकार वश बहस करने का स्वभाव उत्पन्न करता है । विवेक के साथ सभी मानसिक शक्तियाँ सकारात्मक होने से इन्सान प्रेम तथा त्याग की मूर्ति समान बन जाता है क्योंकि उसकी भावनाएँ तथा कल्पनाएँ उसे किसी के प्रति समर्पित होने पर बाध्य करती हैं । सभी मानसिक शक्तियाँ नकारात्मक होने पर इन्सान जालिम तथा दरिंदा बन जाता है एवं उसके मन में जिसके प्रति नफरत उत्पन्न हो जाए वह उसकी हत्या तक कर देता है जिसका प्रमाण आंतकवादी हैं जो अपना जीवन समाप्त करके भी मानवता का सर्वनाश करने का कार्य करते हैं ।
इन्सान का विवेक मानसिक तंत्र में विचारिक क्षमता में वृद्धि करके किसी भी विषय की गहराई से जाँच करने तथा उसकी समस्या का समाधान करने की शक्ति रखता है वह ज्ञान का विषय हो अथवा अज्ञान का । विवेक का उपयोग सभी प्रकार से किया जा सकता है परन्तु जीवन का उचित मार्गदर्शन करना विवेक द्वारा ही संभव हो सकता है । संसार में यदि मानवता के विकास के लिए अविष्कार हुए हैं तो विध्वंशक सामग्री का अविष्कार भी समय समय पर होता रहता है । इन्सान का विवेक उसे उचित मार्ग अवश्य दिखा सकता है परन्तु विवेक के उचित मार्गदर्शन हेतु किसी मार्गदर्शक विषय अथवा गुरु का होना भी आवश्यक है ।