किसी अनिष्ट की आशंका मात्र से श्वास गति तथा हृदय गति में तीव्रता उत्पन्न होना एंव अचानक मानसिक तंत्र में सक्रियता उत्पन्न होना इन्सान का डर होता है । डर इन्सान की इस प्रकार की नकारात्मक मानसिकता है जिसके कारण इन्सान की सभी मानसिक शक्तियाँ प्रभावित होती हैं जिससे उनकी स्वभाविक कार्यशैली में अवरोध उत्पन्न हो जाते हैं । डर के कारण इन्सान का शारीरिक तंत्र भी प्रभावित होता है तथा अत्यंत अधिक आक्रांतित होने पर इन्सान को मृत्यु तुल्य कष्ट अथवा इन्सान की मृत्यु तक हो जाती है । डर इन्सान के जीवन में सबसे अधिक प्रभावशाली विकार है जो जन्म से मृत्यु तक इन्सान का हमसफर रहता है ।
इन्सान में डर उत्पन्न होने के असंख्य कारण हैं सर्वाधिक डर की प्राथमिकता मस्तिक द्वारा शरीर की सुरक्षा के प्रति सतर्कता होती है । संसार के सभी जीव अपने जीवन की सुरक्षा के प्रति आक्रांतित होते हैं परन्तु इन्सान अपने अतिरिक्त दूसरों के लिए भी डर का अनुभव करता है । इन्सान में दूसरों के प्रति डर उत्पन्न होने का कारण इन्सान की मानसिकता में कल्पना शक्ति तथा भावना शक्ति का होना है जो अन्य जीवों में नहीं होती । इन्सान की कल्पना शक्ति डर में आश्चर्य जनक वृद्धि करती है जिसे इन्सान अपने विवेक द्वारा ही संतुलित कर सकता है । दूसरों के प्रति डर उत्पन्न होने का दूसरा कारण इन्सान के मोह का होता है जो अपने प्रिय के प्रति सुरक्षा की चिंता करना है जितना अधिक मोह उतना अधिक डर उत्पन्न होता है ।
मानसिक शक्तियों में डर का सबसे अधिक प्रभाव इन्सान की स्मरण शक्ति पर होता है किसी प्रकार का महत्वपूर्ण कार्य करते समय डर उत्पन्न होने पर स्मरण शक्ति कार्य करना बंद कर देती है । परीक्षा के समय अधिकांश विद्धार्थी डर उत्पन्न होने के कारण विषयों की उचित प्रकार से तैयारी करने के पश्चात भी प्रश्न पत्र समाधान करने में असफल रहते हैं क्योंकि आक्रांतित मस्तिक स्मरण शक्ति को उचित प्रकार संचालित करने में विफल रहता है । विद्धार्थी के मन में डर उत्पन्न करने का कार्य उसके अभिभावक करते हैं जो उस पर उच्च स्तर प्राप्त करने का निरंतर दबाव बनाए रखते हैं ।
शिक्षा के पश्चात सेवा कार्य हेतु साक्षात्कार के समय भी पूर्ण तैयारी के पश्चात प्रश्नों के उत्तर में हिचकिचाहट इन्सान के मन में असफलता का डर उत्पन्न होने के कारण होता है । साक्षात्कार के समय प्रश्न के उत्तर से अधिक प्रार्थी का आत्मविश्वास देखा जाता है जो आक्रांतित होने के कारण अस्थिर होता है । शिक्षा या सेवा कार्य में सफल होने के लिए आत्मविश्वास की दृढ़ता का होना अनिवार्य है लेकिन जिन अभिभावकों तथा परिवार के सदस्यों द्वारा आत्मविश्वास में वृद्धि होनी आवश्यक होती है उन्हीं के द्वारा सफलता के लिए अनाधिकृत दबाव बनाकर हौसला पस्त कर दिया जाता है एवं आत्मविश्वास खंडित कर दिया जाता है ।
इन्सान के मन में छोटे मच्छर के काटने से लेकर भूत प्रेत जैसे अफवाह वाले विषय तक डर उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं । वर्तमान में इन्सान का सर्वाधिक डर अपने जीवन निर्वाह के भविष्य की सुरक्षा के कारण है जिसके लिए वह किसी भी प्रकार के कार्य को अंजाम देकर अधिक से अधिक धन एकत्रित करके भविष्य सुरक्षित करना चाहता है । इन्सान अपनी सन्तान को उच्च शिक्षा प्राप्त करके सर्वाधिक धन एकत्रित करने के लिए उकसाता है तथा किसी व्यवसाय द्वारा धन उपार्जन करने को बढ़ावा देता है । आरम्भ में सन्तान के असफल होने का डर होता है एवं सफल होने के पश्चात सन्तान द्वारा उपेक्षा करने अथवा उन्हें त्यागकर अलग होने का डर उत्पन्न होने लगता है । सन्तान में आपसी कलह का डर व पुत्रवधू द्वारा कलह का डर पुत्री को ससुराल में प्रताड़ित करने का डर जैसे परिवारिक डर सताते रहते हैं।
जिस जीवन निर्वाह के लिए इन्सान इतना अधिक धन एकत्रित करना चाहता है वह सिर्फ भोजन द्वारा ही पोषित होता है तथा साधारण भोजन सस्ता तथा पोष्टिक होता है जिसके लिए अधिक धन की आवश्यकता नहीं होती तथा कीमती व स्वादिष्ट भोजन बिमारियों में वृद्धि भी करता है । इन्सान में अनेकों प्रकार के कारण तथा अकारण डर उत्पन्न होने से उसका जीवन नर्क समान व्यतीत होता है । संसार में इतना अधिक डर कर इन्सान अपना जीवन किस प्रकार सुख व शांति पूर्वक व्यतीत कर सकता है यह इन्सान की मानसिकता पर प्रश्न चिन्ह है । इन्सान डर से मुक्ति सत्य को समझने एवं उसे मानकर ही प्राप्त कर सकता है क्योंकि इन्सान सत्य को समझता अवश्य है परन्तु मानने से परहेज करता है ।
सन्तान पर खर्च करके उससे सेवा की अपेक्षा करना व्यापर होता है जिसके सफल ना होने पर पीड़ा उत्पन्न होना स्वभाविक है । सन्तान के प्रति निस्वार्थ कर्तव्य पूर्ण करने के पश्चात उनसे किसी प्रकार की अपेक्षा ना करने से संतान की ओर से किसी भी प्रकार का डर उत्पन्न नहीं होता । जीवन सफर है तथा सफर में अनेकों समस्याएँ तथा कष्ट होते हैं मृत्यु मंजिल है तथा मंजिल पर पहुंच कर प्रत्येक प्रकार की शांति प्राप्त हो जाती है । मंजिल कब प्राप्त होगी उसका अनुमान नहीं होने पर समस्याओं से क्यों डरना सिर्फ मंजिल प्राप्ति का ध्यान सफर को सरल बना देता है तथा सभी प्रकार के डर से मुक्ति प्रदान करता है । परिणाम का मोह त्याग करने से सभी प्रकार के डर से शांति प्राप्त होती है एवं जीवन का मोह त्याग करने से डर समाप्त हो जाता है ।