किसी विषय से सम्बन्धित अथवा किसी प्रकार के कार्यों के संदर्भ में झूटी एंव गलत अफवाह जिससे इन्सान की मानसिकता भ्रमित होती हो वह गलतफहमी – galatfahami कहलाती है । गलतफहमी – galatfahami भारतीय समाज की सर्वाधिक भ्रमित नकारात्मक मानसिकता है | जिसके कारण साधारण इन्सान अनेकों प्रकार के नादानी पूर्ण कार्यों को अंजाम देता है तथा जीवन में अत्यंत हानिप्रद समस्याएँ उत्पन्न कर लेता है | जिसका लाभ कुछ शातिर प्रवृति के इन्सान उठाते हैं | जो इस इंतजार में घात लगाकर बैठे रहते हैं कि कब कोई भोला भाला इन्सान उनके चंगुल में फंसे एवं वें उसकी नादानी का भरपूर लाभ उठा सकें । भारतीय समाज की सर्वाधिक मुख्य भ्रांतियां नजर लगना अर्थात बुरी दृष्टि द्वारा किसी प्रकार की हानि होना, शगुन अपशगुन, टोना टोटका, झाड़ फूंक, भूत प्रेत, बदकिस्मत जैसे अनेकों प्रकार की अफवाहें इन्सान को भ्रमित करके उसे गलत कार्यों में उलझा देती हैं ।
नजर लगना प्रत्येक इन्सान की भ्रमित मानसिकता है जिसमे सन्तान, वाहन, सामान अथवा व्यापार एंव सम्बन्धों पर किसी की नजर लगने का विचार करना साधारण कार्य है । सन्तान द्वारा किसी प्रकार की निषेध भोज्य वस्तु का भक्षण अथवा अनुचित वातावरण अर्थात धूप या पानी में अधिक समय व्यतीत करने से होने वाले स्वास्थ्य परिवर्तन के प्रभाव को किसी की नजर लगना मानकर विभिन्न प्रकार के अनेकों उपचार किए जाते हैं । नजर उतारने के लिए मिर्च जलाना अथवा किसी प्रकार की वस्तु जल प्रवाह करना नजर लगने पर उपचार करने की भ्रान्ति समाज की संकीर्ण मानसिकता की निशानी है ।
सन्तान को नजर लगने से बचाने के लिए काला धागा बांधकर समझा जाता है कि सभी मुसीबतें इससे टकराकर स्वयं समाप्त हो जाएंगी जैसे यह धागा कोई ब्रह्मास्त्र हो । शातिर इन्सान बच्चों की रक्षा के लिए ताबीज बनाकर सरलता से समाज को लूटते हैं तथा नजर लगने के नाम पर अनेक प्रकार के टोने टोटके तथा झाड़ फूंक करने जैसे उपाय इस आधुनिक समाज में भी प्रचिलित हैं जो इन्सान की कमजोर मानसिकता को प्रमाणित करते हैं जिसका लाभ अन्य शातिर इन्सान उठाते हैं तथा समाज को मूर्ख बनाते हैं ।
व्यवसायिक इंसानों में नजर लगने की भ्रान्ति छूत की बीमारी की तरह फैली हुई है जिसमे सर्वप्रथम अपने व्यापार पर नजर लगने से रक्षा हेतु द्वार पर नीबूं मिर्च टांगने से प्रमाणित हो जाता है कि यह भ्रान्ति कितनी संवेदनशील है । नीबूं मिर्च का यह उपयोग अचंभित करने वाला है जिसे प्रत्येक सप्ताह असंख्य व्यापारी द्वार पर लटकाकर घरेलू उपयोग के लिए अभाव उत्पन्न कर देते है । व्यवसाय करने वालों की भ्रान्ति पूर्ण मानसिकता का लाभ उठाने वाले शातिर इन्सान उनके लिए विज्ञापनों द्वारा विभिन्न प्रकार के यंत्र प्रस्तुत कर ठगने का कार्य कर रहे हैं तथा दावा करते हैं कि उनका यंत्र उपयोग करने से व्यापर दिन दूनी रात चौगनी तरक्की करेगा । नजर लगने से बचाने के यंत्र अथवा व्यापर की वृद्धि के यंत्र सभी मूर्ख बनाकर ठगने का साधन मात्र होते हैं क्योंकि व्यापर में वृद्धि यंत्र नहीं व्यापारी का व्यहवार एंव परिश्रम करता है इसलिए नजर लगने की भ्रान्ति का त्याग करके कारणों की समीक्षा करने पर ही व्यापर में वृद्धि होती है ।
अस्वस्थ होने पर अनेकों प्रकार के टोन टोटके आजमाना तथा किसी प्रकार की झाड फूंक का सहारा लेना समाज की भ्रान्ति पूर्ण मानसिकता का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं । ओझा तांत्रिकों द्वारा समाज का भरपूर शोषण करने के पश्चात भी वर्तमान में इन्हें विशिष्ठ स्थान प्राप्त है क्योंकि समाज में इनके प्रति भ्रान्ति है कि तांत्रिकों के पास विशेष प्रकार की शक्तियाँ होती हैं जिसके बलपर वें किसी भी प्रकार की अनूठी समस्या का निवारण करने में सक्षम होते हैं । ओझा तांत्रिक तथा भूत प्रेत जैसे विषयों की भ्रान्ति उत्पन्न करने का कार्य सिनेमा उद्धोग अपनी आमदनी में वृद्धि करने के लिए उत्पन्न करता है इससे जो विभिन्न प्रकार के अनुचित संदेश समाज में जाते हैं तथा समाज का भ्रमित मार्गदर्शन होता है इसके लिए समाज द्वारा किसी प्रकार का विरोध नहीं होता यह आश्चर्य पूर्ण तथ्य है ।
सर्वाधिक भ्रान्ति उत्पन्न करके समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा देकर पतन की तरफ धकेलने का श्रेय सर्वप्रथम सिनेमा उद्धोग को जाता है । किसी देवी देवता या संत फकीर के द्वारा अनोखे चमत्कार प्रदर्शित कर समाज को अंधविश्वास की भक्ति की राह पर चलाना सिनेमा उद्धोग द्वारा निरंतर कार्यरत है जिससे धर्मभीरु एंव समस्या ग्रस्त इन्सान तुरंत प्रभावित होकर उनके नाम पर मन्दिर निर्माण तथा मूर्ति पूजा में मग्न होकर अपने धन एंव समय का भरपूर नाश करते हैं । नाग पंचमी जैसे पर्व मनाने तथा सर्पों को दूध पिलाने जैसी मूर्खता सिनेमा उद्धोग द्वारा ही सिखलाई जाती है क्योंकि सर्प स्तनधारी जीव ना होने के कारण दूध के प्रति किसी प्रकार का आकर्षण नहीं रखता तथा सर्प के लिए दूध मात्र एक तरल पदार्थ है । इच्छाधारी सर्प बनाना अथवा सर्प का बीन की धुन पर मुग्ध होना सबसे अद्भुत भ्रान्ति है क्योंकि पलभर में शरीर के आकार में परिवर्तन असंभव है तथा सर्प के कान नहीं होते एंव वह किसी भी ध्वनी को सुन नहीं सकता । सर्प पृथ्वी पर उत्पन्न कम्पन्न को महसूस कर सतर्क होता है तथा किसी हिलती वस्तु को शत्रु समझ उसपर आक्रमण कर देता है ।
सिनेमा उद्धोग के पश्चात सर्वाधिक भ्रान्ति उत्पन्न करने का कार्य धर्म शास्त्रियों, ज्योतिष शास्त्रियों एंव साधू संत के वेश में छिपे शातिर इंसानों द्वारा किया जाता है । समाज में अनेकों प्रकार की भ्रान्ति उत्पन्न कर भक्ति की राह द्वारा सफलता दिलाने का लोभ उत्पन्न करके अनुचित मार्गदर्शन द्वारा धन एकत्रित करना इन ठगों का प्रथम ध्येय होता है जिसमे उनके द्वारा उत्पन्न भ्रांतियों में असंख्य नादान इन्सान फंस जाते हैं तथा अपना भरपूर शोषण करवाते हैं । इन्सान के दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तन करने का दावा करने वालों की संसार में कोई कमी नहीं है परन्तु उनके द्वारा सिर्फ नादानों को मूर्ख बनाकर अपना दुर्भाग्य परिवर्तन कर सौभाग्य बनाया जाता है अन्य इंसानों के प्रति इन शातिरों को तनिक भी सहानभूति नहीं होती ।
समाज में अपनी पहचान स्थापित करने एंव श्रेष्ठ प्रमाणित करके सम्मान प्राप्ति के प्रति विभिन्न प्रकार की भ्रांतियां हैं जिसमे मुख्य भ्रान्ति धनाढ्य होने का दिखावा करना है । समाज में सभ्रांत एंव धनाढ्य होने का दिखावा करने के वशीभूत इन्सान मूल्यवान वस्त्र, वाहन, संसाधन एंव साजो सामान का उपयोग करके अत्यधिक धन खर्च कर खुद को समाज का विशेष अंग समझने की नादानी करता है जबकि समाज सिर्फ उन इंसानों को महत्वपूर्ण मानता है जिन्होंने समाज के निर्माण कार्यों में सहयोग किया अथवा समाज की भलाई में अपना जीवन न्योछावर किया होता है । समाज की रुढ़िवादी प्रथाओं के प्रति समर्पित इन्सान अपनी कमजोर एंव स्थिर मानसिकता के कारण जीवन भर स्वयं अपना शोषण करता है तथा अपनी किस्मत को दोषी समझता रहता है । इन्सान को समाजिक भ्रांतियों के प्रति अविश्वास प्रकट करते हुए विरोध करने पर ही इनसे मुक्ति प्राप्त हो सकती है अन्यथा सदैव भ्रन्तिओं के सुदृढ़ जाल में फंस कर इन्सान सिवाय तडफने के कुछ नहीं कर सकता एंव स्वयं अपना जीवन बर्बाद करता रहेगा ।