
वनस्पति के उपरांत जीवन धारा के दूसरे सदस्य प्राणी के रूप में इन्सान के अतिरिक्त जितने भी जीव हैं जानवर कहलाते हैं । प्राकृति की गोद में स्वयं पोषित निरीह प्राणी असंख्य प्रकार व आकार तथा भिन्न भिन्न जाति प्रजाति के सभी जानवर पृथ्वी को जीवन से शोभायमान करने वाले जिन्हें प्राकृति से उपहार स्वरूप भिन्न भिन्न प्रकार के गुण प्राप्त हैं । प्राकृति से प्राप्त गुणों के बलपर सभी जानवर सरलता पूर्वक संसार में अपना जीवन निर्वाह करने में सक्षम होते हैं । जन्म के उपरांत बगैर किसी प्रकार की सहायता के अपना कार्य भली भांति करने की क्षमता एंव मित्र व शत्रु की पहचान करना और अपनी रक्षा करना जानवरों की विकसित बुद्धि का परिचय पत्र है ।
स्तनपान से शुरू सभी कार्य जैसे भोजन प्राप्ति, चलना, दौड़ना, कूदना, तैरना, उड़ना व आक्रमण करना तथा आक्रमण से रक्षा करना जैसे कार्यों में सक्षमता एंव सन्तान उत्पन्न करके भली भांति सन्तान का पोषण करने तक के कार्यों को सफलता पूर्वक अंजाम देना जानवरों की विकसित बुद्धि का प्रमाण है । जानवर विकसित बुद्धि होने के पश्चात भी इन्सान जैसा बुद्धिमान नहीं हो सकता क्योंकि जानवर का मानसिक तंत्र सीमित कार्य कर सकता है । जानवर के मानसिक तंत्र में बुद्धि, मन तथा स्मरण शक्ति के अतिरिक्त इन्सान की तरह विवेक, कल्पना शक्ति, भवनाएँ और इच्छा शक्ति कार्यरत नहीं होते जिसके कारण जानवर इन्सान से पिछड़े हुए ही रहते हैं और इन्सान की तरह सभी प्रकार के कार्यों को अंजाम नहीं दे सकते । किसी प्रकार के निरंतर अभ्यास से कभी कभी कुछ जानवर सिखाए गए कार्य करने की कला में प्रवीणता प्राप्त कर लेते हैं ।
जानवरों को अपने गुणों तथा प्राकृति की समीपता के कारण होने वाली किसी भी प्रकार की प्राकृतिक दुर्घटनाओं का पूर्व आभाष सरलता से हो जाता है जिनका आभाष इन्सान को कदापि नहीं हो पाता । प्राकृति का आशीर्वाद प्राप्त होने के कारण जानवर में इन्सान की तरह विकारों का असंतुलन नहीं होता । पाँचों मुख्य विकार जानवरों में मौजूद होने के उपरांत भी संतुलित होते हैं जैसे जानवर सन्तान का मोह उसके विकसित होने तक करता है और सन्तान के पूर्ण विकास कर लेने के पश्चात वह स्वयं अपनी सन्तान का त्याग कर देता है ।
जानवरों में लोभ की सीमा निर्धारित होती है जैसे वह भोजन के समय किसी प्रकार का हस्तक्षेप बर्दास्त नहीं करता तथा उदर पूर्ति के पश्चात किसी भी प्रकार के भोजन पर अपनी कोई प्रतिकिर्या प्रकट नहीं करता चाहे वह भोजन उसके कितना भी पसंदीदा प्रकार का हो । जानवर सन्तान उत्पन्न करने के लिए सम्भोग करता है परन्तु जानवर काम वासना की अग्नि से पीड़ित होकर इन्सान की तरह बलात्कार करने जैसे घिनौने कार्यों को नहीं करता तथा कोई भी जानवर इन्सान की तरह अप्राकृतिक सम्भोग करना और समलैंगिक सम्बन्ध स्थापित करने जैसे घिनौने कार्यों को अंजाम नहीं देता ।
जानवर किसी खास गुण होने तथा शारीरिक बलिष्ठता होने के पश्चात भी अहंकार वश दूसरे प्राणियों को सताने अथवा उन्हें भयभीत करने जैसे मूर्खता पूर्ण कार्य नहीं करते । भयंकर से भयंकर जीव भी किसी कमजोर पर अपना शक्ति बल प्रदर्शित नहीं करता उसका आक्रमण तभी होता है जब वह भूखा हो । जानवर क्रोध वश किसी की हत्या करने जैसे कार्य नहीं करते वें किसी के सताने अथवा भयभीत करने पर ही अपना क्रोध दर्शाते हैं । जानवरों में संतुलित पांचों विकार मोह, लोभ, काम, क्रोध व अहंकार उनके जीवन निर्वाह के लिए निर्धारित प्राकृति की तरफ से प्राप्त हैं जिसका जानवर कोई अतिरिक्त उपयोग नहीं करते ।
समय के प्रति जागरूकता तथा प्राकृति के नियम पालन करना प्रत्येक जानवर का स्वभाविक गुण है जिसके कारण सभी जानवर समय पर सोना और भोर की अमृत बेला के निर्धारित समय पर जागना जैसे नियम का अनवरत पालन करते हैं । जानवर द्वारा अपने निर्धारित मौसम तथा समय पर सन्तान उत्पन्न करना उनके द्वारा प्राकृति के नियम पालन करने की जागरूकता को दर्शाते हैं । जानवरों के द्वारा प्राकृति के नियम पालन करना ही उनके स्वस्थ रहने का प्रमाण पत्र है जिन नियमों को इन्सान द्वारा अपेक्षा करने पर उन्हें विभिन्न प्रकार की बिमारियों की पीड़ा से गुजरना पड़ता है ।
जानवरों में प्यार व नफरत को पहचानने की अद्भुत शक्ति है सभी जानवर प्यार का बदला प्यार जताकर ही देते हैं और नफरत दिखाने पर दूर हट जाते हैं परन्तु इन्सान की तरह विश्वासघात करना जानवरों के स्वभाव में नहीं है जानवर ने इन्सान का बोझ उठाया और उसे अपनी सेवा से सभी प्रकार के सक्षम कार्यों में सहायता करके सुख प्रदान किया परन्तु इन्सान जानवर को गाली के रूप में प्रयोग करता है यही जानवर और इन्सान के मध्य अंतर है ।