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जिद – jid

October 20, 2018 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

 किसी आवश्यक अथवा अनावश्यक कार्य को जब इन्सान जबरदस्ती अपनी इच्छानुसार सम्पन्न करने का प्रयास करता है | वह उसकी जिद (jid) होती है । जिद (jid) इन्सान की मानिसकता में उत्पन्न एक विकार जो इन्सान के लिए अत्यंत हानिकारक भी होता है । जिद (jid) जैसा विकार जब इन्सान की मानसिकता में उत्पन्न हो जाता है तो उसका स्वभाव जिद्दी (jiddi) बन जाता है | जिसके कारण वह अपनी इच्छानुसार कर्म एवं व्यवहार करने तथा अपनी अभिलाषाएं पूरी करने के प्रयास करने लगता है । जिद (jid) में किए गए अधिकतर कार्य गलत एवं दिशाविहीन होते हैं | जिनके कारण अत्यंत हानि तथा अपमान होने एवं लड़ाई-झगड़े होने की सम्भावनाएं अधिक होती हैं ।

jid

इन्सान का अहंकार उसे ज़िद (tenacity) करने पर मजबूर करता है | तथा इन्सान अहंकार के कारण खुद को श्रेष्ठ प्रमाणित करने के लिए किसी भी प्रकार का जोखिम उठाने को तत्पर हो जाता है । किसी भी कार्य को करने के लिए जब इन्सान जिद (jid) करता है | तो वह सदैव बिना विचार किए या बहुत कम विचार करके कार्य करता है जिसके कारण कार्य गलत अथवा दिशाविहीन व कमजोर होते हैं । जिद में इन्सान वह कार्य सम्पन्न करने के प्रयास करता है | जिनमे वह असफल हो जाता है । ज़िद में किए गए हानिकारक कार्यों की क्षति इन्सान को बर्बाद कर देती है इसलिए कार्य को सदैव विवेक द्वारा विचार करके करना उत्तम होता है परन्तु ज़िद इन्सान के विवेक को निष्क्रीय कर देती है ।

ज़िद (tenacity) में अपनी अनुचित अभिलाषाओं को सम्पन्न करने के प्रयास में किसी भी प्रकार का अनुचित या अपराधिक कार्य करना इन्सान का स्वभाव बन  जाता है । किसी से जबरन प्रेम करने एवं उसपर अपनी अभिलाषाएं थोपने के प्रयास में प्रेम के नाम पर शोषण करना इन्सान की  जिद्दी मानसिकता होती है । अपनी इच्छानुसार किसी वस्तु या विषय का उपयोग करने की ज़िद में दूसरों का शोषण करना इन्सान का स्वभाव बन जाता है । समृद्ध दिखने की ज़िद (tenacity) इन्सान से किसी भी प्रकार का अनुचित अथवा अपराध करवा देती है जिसका परिणाम इन्सान की बर्बादी बन जाता है ।

सबसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि सभी इन्सान अपने जीवन में किसी ना किसी रूप में ज़िद करने का कार्य अवश्य करते हैं । इन्सान अपने दैनिक जीवन में अधिकतर अनेक कार्यों में ज़िद करता है | जिनका उसे तनिक भी अहसास तक नहीं होता कि वह किस प्रकार ज़िद करके खुद को एवं दूसरों को हानि पहुँचा रहा है । सफर में धक्का-मुक्की करना अथवा वाहन चलाते समय आगे निकलने की होड़ में नियमों को तोडना तथा दूसरों से उलझना इन्सान के ज़िद्दी स्वभाव को प्रदर्शित करते हैं । जब भी इन्सान किसी से उलझता है तो उसके स्वभाव में ज़िद अवश्य होती है ।

कोई इन्सान जब भी किसी से किसी भी विषय में बहस करता है | तो वह उसके द्वारा दूसरे के कथन को ना मानने की ज़िद होती है । किसी के कथन को बिना सोच विचार किए ठुकराना एवं उसपर बहस करना इन्सान के ज़िद्दी स्वभाव का कारण ही होता है । दूसरों के स्वभाव अथवा उनके कार्यों की आलोचनाएँ करना, अथवा उनके कार्यों में त्रुटियाँ निकालकर उनकी बुराई करना इन्सान की दूसरों को नीचा दिखाने की ज़िद होती है । बिना कारण दूसरों पर तानाकशी, व्यंग अथवा कटाक्ष करना इन्सान की खुद को श्रेष्ठ दिखाने की ज़िद होती है ।

इन्सान जब भी किसी प्रकार का कार्य अपनी ज़िद के कारण करता है तो सर्वप्रथम उसका प्रभाव सम्बन्धित व्यक्ति से उसके सबंधों पर पड़ता है । बहस, आलोचना, तानाकशी, व्यंग, कटाक्ष अथवा किसी प्रकार का अनुचित कार्य करने पर इन्सान के सबंध प्रभावित अवश्य होते हैं । ज़िद का दूसरा प्रभाव इन्सान के सम्मान पर पड़ता है उसकी ज़िद के कारण दूसरे इन्सान उसका सम्मान करना बंद कर देते हैं । ज़िद के कारण इन्सान को प्रेम, विश्वास, सहयोग, सहायता, इन सभी में बहुत अधिक क्षति अवश्य होती है ।

 इन्सान के द्वारा निरंतर ज़िद करने का सबसे अधिक प्रभाव उसकी मानसिकता पर पड़ता है । ज़िद के कारण अतिशीघ्र आक्रोश उत्पन्न होना तथा छोटी-छोटी बातों पर क्रोध करना इन्सान का स्वभाव बन जाता है जो उसकी मानसिकता को क्षतिग्रस्त कर देता है । इन्सान का विवेक उसकी ज़िद से उत्पन्न क्रोध एवं आक्रोश के कारण सुप्त अवस्था में चला जाता है जिससे इन्सान प्रत्येक कार्य बिना विचार किए करने लगता है । बिना विवेक के कार्य करने में हानि की संभावना अधिक होती है । ज़िद करते-करते कब इन्सान की मानसिकता में ढीटता एवं जूनून उत्पन्न हो जाता है वह कभी समझ नहीं सकता । ज़िद में अपशब्दों का उपयोग करना इन्सान का स्वभाव बन जाता है जिसे वह साधारण वार्तालाप समझता है । इन्सान की मानसिकता जब अधिक क्षतिग्रस्त हो जाती  है तो उसने किस इन्सान का कब एवं कितना अपमान कर दिया उससे वह स्वयं भी अनजान होता है ।

संसार में प्रत्येक कार्य का कोई ना कोई कारण अवश्य होता है | इसी प्रकार इन्सान के स्वभाव में ज़िद उत्पन्न होने के भी कारण अवश्य होते हैं । कारणों की समीक्षा करके एवं उनमें सुधार करके अपने जिद्दी स्वभाव को सरल बनाया जा सकता है । इन्सान को जिद्दी बनाने का कार्य सर्वप्रथम उसका परिवार करता है जो उसकी छोटी-छोटी ज़िद (jid) मानकर उसे अन्य ज़िद करने की छूट प्रदान करता है । जब भी किसी के द्वारा कोई ज़िद मान ली जाती है तो वह ज़िद करने वाले को हौसला प्रदान करता है । ज़िद का दूसरा सबसे बड़ा कारण इन्सान का अहंकार होता है जो दूसरे इंसानों से श्रेष्ठ दिखने के प्रयास में उनका अपमान करके अपनी ज़िद (tenacity) सम्पूर्ण की जाती है ।

जिद्दी (jiddi) स्वभाव के समाधान के लिए इन्सान को उसकी औकात को समझना आवश्यक है । इन्सान जब संसार में अपनी औकात की वास्तविकता से परिचित हो जाता है तो उसका अहंकार समाप्त हो जाता है । अहंकार के समाप्त होने के पश्चात ही इन्सान के ज़िद करने के स्वभाव भी अंत हो सकता है । दूसरा समाधान है कि इन्सान को उसकी ज़िद के परिणम से परिचित करवाना । जब इन्सान को अपनी ज़िद के परिणाम का उचित अनुमान हो जाता है तो वह ज़िद से होने वाली क्षति को ध्यान में रखकर ही अपने कार्य करता है जिसके परिणाम स्वरूप वह ज़िद का त्याग कर देता है । ज़िद का त्याग करने से ही इन्सान के समाजिक मूल्य में वृद्धि होती है | क्योंकि ज़िद का त्याग करने से वह सरल इन्सान बन जाता है तथा सरल इन्सान समाज में सबसे अधिक प्रिय होता है ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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