
काम इन्सान में उत्पन्न होने वाला तीसरा विकार है जिसे इन्सान ने अपने कर्मों से इसे सबसे घिनौना विकार का रूप दे दिया है । वैसे यह भी मोह के कारण ही उत्पन्न होता है जैसे भौतिक मोह अर्थात लोभ होता है उसी प्रकार देहिक मोह अर्थात काम है । काम वासना की कामाग्नि शरीरिक आकर्षण के कारण उत्पन्न होती है विपरीत लिंग के शरीर की सुन्दरता के प्रति आकर्षण उत्पन्न होने से इन्सान में कामाग्नि का भडकना स्वभाविक है । काम प्राकृति की प्रत्येक जीव को देन है क्योंकि काम के कारण ही संसार में उत्पत्ति है जो जीवन का माध्यम है । काम की समाप्ति होने से संसार में जीवन समाप्त हो जाएगा अर्थात जीवन को संसार में उपलब्ध रखने के लिए काम का होना आवश्यक है परन्तु संतुलित प्रकार से ।
संसार के सभी जीव उत्पत्ति के लिए काम का प्रयोग करते हैं परन्तु इन्सान द्वारा इसे विकृत करके इसे विकार का रूप दे दिया गया । इन्सान की इन्द्रीओं से उसे जीवन संचालन में सहायता प्राप्त होती है जैसे मुख द्वारा भोजन प्राप्त करना, नासा द्वारा वायु से आक्सीजन प्राप्त करना, कानों से ध्वनी की प्राप्ति एंव नेत्रों द्वारा संसार का दृष्टि पात जो जीवन के लिए अति आवश्यक कार्य है । लिंग प्रकृति ने इन्सान को उत्पत्ति करने के लिए प्रदान किया परन्तु इन्सान ने इसे आनन्द प्राप्त करने का साधन समझकर इसका गलत प्रकार से उपयोग प्रारम्भ कर दिया जिसके कारण काम को विकारों की श्रेणी में रखा गया ।
वर्तमान में इन्सान ने अपनी काम वासना को शांत करने के इतने घिनौने तरीकों का प्रयोग किया है जिससे इन्सान संसार के सभी जीवों से नीच प्राणी बनकर रह गया है । स्त्री या पुरुष दोनों काम के मद में अपने पथ से भटक चुके हैं अपनी कामाग्नि की पूर्ति हेतू तथा अधिक से अधिक आनन्द प्राप्त करने की चाह में छोटे बच्चों तक से बलात्कार करने जैसे जघन्य अपराध करना इन्सान का स्वभाव बनता जा रहा है । ऐसे जघन्य अपराध से किसी बच्चे का जीवन नष्ट हो जाए या बलात्कारी को कानून द्वारा दंड मिले तथा उसका जीवन नष्ट हो जाए एंव उनके परिवार के सदस्यों का समाजिक पतन हो जाए इसकी परवाह काम वासना को शांत करने के लिए किए गए बलात्कार को बलात्कारी नहीं सोचते ।
समाज ने कड़े कानून बनाए परन्तु इन विकृत इंसानों पर कोई असर नहीं हुआ इसका कारण हमारी शिक्षा प्रणाली भी है क्योंकि नैतिक शिक्षा त्यागकर धन प्राप्त करने की विकृत मानसिकता ने इन्सान को मशीन का रूप दे दिया है जो सिर्फ शिक्षा धन प्राप्त करने की वजह से ग्रहण करता है । अपनी वासना शांत करने के लिए विपरीत लिंग के इन्सान को धन के द्वारा फंसाना या प्रेम जाल का प्रयोग करके फंसाना तथा न फंसने पर बल प्रयोग करना साधारण सी कार्यवाही हो गई है । परन्तु इन्सान का इससे भी घिनौना रूप प्रस्तुत हुआ है जो अप्राकृतिक सम्भोग अर्थात समलैंगिक सम्बन्ध है जिसमे नर से नर मादा से मादा सम्भोग करने का कार्य करते हैं ।
समलैंगिक सम्बन्ध के विषय में जानकर ईश्वर भी आश्चर्य चकित अवश्य होगा क्योंकि सभी जीवों की रचना और उनके कार्यों से इन्सान का यह कार्य संसार में सबसे पृथक व अद्भुत है । काम इन्द्रीओं का ऐसा उपयोग ईश्वर की समझ से बाहर की क्रिया होगी परन्तु समाज के ठेकेदार, जननेता और जननायक समलैंगिकता को क़ानूनी मान्यता प्रदान करने की तरफदारी करते नहीं थकते । इन्सान ने सम्भोग के लिए तथा अपनी कामाग्नि शांत करने के लिए शायद जानवरों का उपयोग भी किया हो तो कोई आश्चर्य नहीं होगा । कामान्धता में फंसे इंसानी दरिन्दे वासना शांति के लिए लाशों पर से गुजर कर भी अपनी पिपासा शांत करने से नहीं हिचकते ।
कामुकता स्वभाविक रूप में प्रेम को उत्पन्न करती है परन्तु विकराल होने पर हत्या करना, धोखा करना, बलात्कार करना, तेजाब या अग्नि द्वारा जलाना जैसे जघन्य अपराधों को उत्पन्न करती है । कामुकता की अधिकता विकार बनकर बुद्धि और विवेक को नष्ट कर देती है जिससे इन्सान का मन स्वतंत्र होकर अपराधिक कार्यों को अंजाम देता है । जवानी में करी गई अय्याशी वृद्धा अवस्था में मन को कचोटती है क्योंकि अय्याश इन्सान का बुढ़ापा बिमारियों से भरपूर होता है जिससे शरीर जर्जर होकर जीवन कष्टदायक हो जाता है । अय्याशी के कारण परिवार के सदस्य उसे कभी सम्मान नहीं देते तथा समाज तो ऐसे इंसानों से दूर रहता है । काम को इन्सान किस प्रकार प्रयोग करता है उसकी अपनी सोच है प्रेम के रूप में या विकराल रूप में।