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kamyabi – कामयाबी

July 22, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

इन्सान द्वारा किसी निर्धारित किए हुए लक्ष्य को प्राप्त करके ,जब उस इन्सान को पूर्ण मानसिक संतुष्टि का अहसास होता है | वह उसकी कामयाबी (kamyabi) कहलाती है |अपने जीवन में कामयाबी (kamyabi) प्राप्त करना प्रत्येक इन्सान की प्रथम अभिलाषा होती है | सभी इन्सान अपने जीवन में खुद को एक कामयाब (kamyabi) इन्सान के रूप में देखना पसंद करते हैं |

अब कामयाबी कैसे प्राप्त हो यह एक विचारणीय विषय है, क्योंकि कामयाबी (kamyabi) यदि सरलता से मिलने वाला विषय होता तो सभी इन्सान कामयाब हो जाते ,तथा कोई भी इन्सान अपने जीवन में संघर्ष करने का प्रयास ही नहीं करता | इस विषय पर कुछ सरल उपाय प्रस्तुत हैं जिनसे कामयाबी (kamyabi) का मार्ग किसी हद तक सरल हो सकता है |

कामयाबी पर सुविचार

कामयाब (sucess) होने के लिए पहले किसी प्रकार का लक्ष्य निर्धारित करना आवश्यक है | फिर उस लक्ष्य को प्राप्त करना आवश्यक है | क्योंकि यदि लक्ष्य ही नहीं होगा तो प्राप्त क्या करना है | इससे बुद्धि भ्रमित होकर रह जाएगी | तथा भ्रमित बुद्धि से कामयाबी (sucess) कैसे प्राप्त हो सकती है | यह इस प्रकार होगा जैसे इन्सान घर से कंही जाने के लिए निकलता है | परन्तु उसे पता ही नहीं है कि पंहुचना कहाँ है| अर्थात उसकी मंजिल क्या है तो वह पंहुचेगा कहाँ और कैसे वह भटककर किसी भी गलत स्थान पर पंहुच जाएगा | या निरर्थक घूम कर वापस आ जाएगा |

इसलिए सबसे पहले अपना कोई अच्छा सा लक्ष्य निर्धारित करना आवश्यक है | यह कामयाबी (kamyabi) की प्रथम सीढ़ी या प्रथम पायदान है | अनेकों इन्सान बिना लक्ष्य कामयाब होने के प्रयास में लगे रहते हैं | परन्तु जब कामयाबी (kamyabi) नहीं प्राप्त होती तो हताश या निराश होकर अपनी किस्मत को कोसने लग जाते हैं | यह उनके लिए प्रथम अध्याय है |

लक्ष्य निर्धारित करना कोई खेल या मजाक नहीं है यह एक महत्वपूर्ण विषय है | लक्ष्य निर्धारित करने के लिए तीन मुख्य नियम याद रखना अनिवार्य है | इन्सान को अपने आर्थिक बल, शारीरिक बल, एवं बौद्धिक बल के अनुसार ही अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए ताकि वह अपने लक्ष्य को सरलता से प्राप्त करके कामयाब इन्सान बन सके|

क्योंकि जल्दबाजी अथवा अहंकार वश निर्धारित किए हुए लक्ष्य जब प्राप्त नहीं होते तो इन्सान हताशा एवं पिछड़ेपन का शिकार होकर तनाव ग्रस्त हो जाता है | गलत लक्ष्य निर्धारित करना या बार-बार लक्ष्य बदलते रहना भी इन्सान को असफल बना देता है जो सिर्फ समय एवं धन की बर्बादी होती है |

व्यापार, उद्धोग, नौकरी, अविष्कार, खेल, अभिनय या अन्य किसी प्रकार का कार्य सभी के लिए धन की आवश्यकता होती है | नौकरी प्राप्त करने में भी जो समय व्यतीत होता है उसके लिए भी कुछ ना कुछ खर्चा अवश्य चाहिए यदि लम्बे समय तक मनचाही नौकरी ना प्राप्त हो तो इन्सान को अपना खर्चा चलाना अनिवार्य है अर्थात कोई भी लक्ष्य बगैर आर्थिक सहायता के पूर्ण नहीं हो सकता इसलिए अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार लक्ष्य निर्धारित करना उत्तम रहता है|

अन्यथा यह इस प्रकार होगा जैसे इन्सान कंही जाने के लिए घर से निकले परन्तु जिस भी वाहन से जाना हो धन की कमी के कारण रस्ते में ही अटककर रह जाए फिर घर का ना घाट का इससे उत्तम है ना जाना | यदि आर्थिक बल कम हो तो इन्सान पहले एक छोटा लक्ष्य निर्धारित करके खुद को आर्थिक मजबूत बनाए और फिर अपने मनचाहे लक्ष्य के लिए प्रयास करे यह तरीका ही मनचाहे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उत्तम उपाय है |

आर्थिक बल की तरह ही शारीरिक बल की सक्षमता प्रत्येक कार्य में अनिवार्य है | प्रत्येक इन्सान की शारीरिक क्षमता में अंतर होता है | कोई इन्सान घूमता फिरता अधिक है | कोई कंही पर टिककर बैठा रहता है | कोई बोलता अधिक है | कोई चुप रहना पसंद करता है | कोई आलसी है | जो अधिक समय तक कार्य नहीं कर सकता | कोई लम्बे समय तक कार्य करने में सक्षम होता है| कोई वजन अधिक उठा सकता है | कोई वजन उठाने में सक्षम नहीं होता | इसलिए अपनी क्षमता का आकलन करके ही कार्य किया जाए तो सफलता अवश्य प्राप्त होती है | अन्यथा कार्य अधूरा व इन्सान हताश हो जाता है | जैसे इन्सान घर से कंही जाने के लिए निकले परन्तु रस्ते में थककर बैठ जाए | यदि धीरे-धीरे मंजिल पर पंहुच भी गया | परन्तु अधिक देरी हो गई तो जाने का लाभ ही नहीं होता |

घूमने फिरने व अधिक बोलने वाला इन्सान मार्किटिंग के कार्य में सफल हो सकता है | परन्तु किसी सीट पर बैठकर लम्बे समय तक कार्य नहीं कर सकता | जो इन्सान सीट पर बैठकर चुपचाप घंटों कार्य कर सकते हैं | उन्हें मार्किटिंग के कार्य में कभी अच्छी सफलता नहीं मिल सकती इसलिए सर्वप्रथम अपनी शारीरिक क्षमता की समीक्षा करके ही अपना लक्ष्य निर्धारित करना श्रेष्ठ होता है |

बुद्धि इन्सान की उन्नति का मुख्य आधार है तथा इन्सान की बर्बादी का भी मुख्य आधार भी बुद्धि ही है क्योंकि जो इन्सान स्वयं अपनी बुद्धि की क्षमता एवं कार्य प्रणाली को पूर्ण रूप से नहीं समझता और सदैव उलटे-सीधे कार्य करता रहता है वह खुद को बर्बाद कर लेता है इसका कारण इन्सान का अहंकार एवं लोभ होता है |

जो इन्सान अपनी बुद्धि की कार्य क्षमता को पहचान कर उससे उचित कार्य लेते हैं वह सदैव उन्नति करते हैं | बुद्धि अच्छी या बुरी के अतिरिक्त भ्रमित बुद्धि भी होती है जो इन्सान को सदैव भ्रमित कर भटकाती रहती  है | जीवन में कमयाबी प्राप्त करने के लिए सर्वप्रथम अपनी बौद्धिक क्षमता का आकलन करके ही किसी प्रकार के लक्ष्य को निर्धारित करने का निर्णय लेना उत्तम होता है बौद्धिक क्षमता की समीक्षा करते समय अपने अहंकार एवं लोभ का त्याग करना अनिवार्य है|

क्योंकि इन्सान अहंकार के कारण अपनी बुद्धि को सदैव श्रेष्ठ समझता है | इसलिए अहंकार एवं लोभ के रहते बुद्धि की उचित समीक्षा करना असंभव है | गलत समीक्षा से गलत लक्ष्य निर्धारित होगा जिसके प्रभाव से कामयाबी (kamyabi) यदि आधी-अधूरी प्राप्त भी हो जाए तो संतुष्टि प्राप्त नहीं होगी जिसे कामयाबी (kamyabi) कहना कामयाबी (kamyabi) का अपमान करना ही  है | 

जीवन में किसी भी प्रकार के लक्ष्य को निर्धारित करने के पश्चात उस लक्ष्य को अपने तक ही सिमित रखना उत्तम होता है क्योंकि इसके दो मुख्य कारण हैं एक तो लक्ष्य सार्वजनिक करने से यदि लक्ष्य प्राप्त ना हो तो इन्सान को दूसरों के तानों का सामना करना पड़ता है एवं वह उपहास का पात्र बन जाता है जिससे हताशा एवं तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है |

दूसरा कारण है कि ईर्षा के कारण बहुत से इन्सान लक्ष्य से ध्यान भटकाने का प्रयास करते हैं तथा कोई-कोई तो अडचनें उत्पन्न करना या टांग खींचने का कार्य भी करते हैं इसलिए अपने लक्ष्य को राज रखने से ऐसी परिस्थितियों का सामना नहीं करना पड़ता | इन्सान को भटकाने या अडचनें डालने अथवा उपहास करने का कार्य परिवार के सदस्य भी करते हैं इसलिए जब तक लक्ष्य के समीप ना पंहुचा जाए परिवार से भी गुप्त रखने में ही भलाई है | यदि माँ बाप को भी लक्ष्य बताना हो तो उन्हें भी सार्वजनिक करने से मना करना उत्तम है क्योंकि माँ बाप उत्साह में सार्वजनिक कर देते हैं | इसलिए लक्ष्य अपने तक सीमित रखना ही उत्तम होता है |

लक्ष्य निर्धारित करने के पश्चात लक्ष्य तक पंहुचने की अधिक से अधिक जानकारी एकत्रित करना अनिवार्य है यह कामयाबी की सीढ़ी का दूसरा पायदान है | क्योंकि जानकारी ना हो तो लक्ष्य तक पंहुचना कठिन हो जाता है जैसे घर से निकल कर जहाँ जाना है इसके विषय में उचित जानकारी ना होने से इन्सान का समय रास्ता तलाश करने एवं दूसरों से पूछने में ही व्यतीत हो जाता है यदि किसी ने गलत रास्ता बता दिया तो इन्सान भटककर गलत स्थान पर पंहुच जाता है |

इन्सान के पास अपने लक्ष्य तक पंहुचने के विषय में जितनी अधिक व उत्तम जानकारियां होंगी उसके लिए पंहुचने का मार्ग उतना ही सरल हो जाता है जानकारियां एकत्रित करके उनकी समीक्षा करने से मार्ग में आने वाली समस्याएँ एवं रुकावटें स्पष्ट हो जाती हैं इससे इन्सान का आत्मविश्वास भी प्रबल होता है |

    जानकारियों की समीक्षा के पश्चात कामयाबी की सीढ़ी का तीसरा पायदान है अपने कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार करना जिससे मार्ग में आने वाली रुकावटों एवं समस्याओं का सरलता से समाधान किया जा सके क्योंकि आने वाली किसी भी प्रकार की रुकावट या समस्या का जब पूर्व अनुमान हो तथा इन्सान की उससे निपटने की पूरी तयारी हो तो वह रुकावट या समस्या सरलता से निपट जाती है|

जैसे इन्सान प्रथम बार किसी स्थान पर जाए परन्तु उस के मार्ग की सम्पूर्ण जानकारी व साधनों सहित समस्याओं का पूर्ण ज्ञान हो तो वह अपने इंतजाम से जाता है जिससे वह मार्ग तनाव पूर्ण ना होकर सैर गाह बन जाता है | यदि इन्सान परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार ना हो तो छोटी सी समस्या भी मुसीबत बन जाती है जैसे परीक्षा में कंही पर काली पेंसिल से डाट लगाने हों तथा पेंसिल ना हो तो उसका स्थान आपका कीमती पैन भी नहीं ले सकता उस समय मामूली पेंसिल बड़ी सी मुसीबत बन जाती है|

जैसे अपने पहचान पत्र की फोटो कापी जमा करनी हो वहां पर फोटो कापी करने का साधन ना हो तो मामूली सी फोटोकापी मुसीबत बन जाती है इसलिए कार्यक्रम पहले से तैयार रखना सुविधाजनक होता है ताकि छोटी सी भूल पश्चाताप का कारण ना बन जाए |

 कामयाबी (sucess) की सीढ़ी का चौथा पायदान है लक्ष्य प्राप्ति में होने वाले संघर्ष के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करना | कोई भी कार्य आवश्यक नहीं है कि प्रयास करते ही सफल हो जाए जैसे व्यापार करते ही लाभ हो जाए, अविष्कार करते ही सफल हो जाए, खिलाडी को खेलते ही पदक मिल जाए, अभिनय करते ही कलाकार प्रुस्कृत हो जाए, नौकरी का आवेदन करते ही चुन लिया जाए ऐसा असंभव होता है |

कभी किसी को किस्मत के प्रभाव से या किसी प्रकार का तुक्का लग जाए और वह सफल हो जाए तो उससे अपनी तुलना करना मूर्खता है | लक्ष्य प्राप्ति के संघर्ष में गलतियाँ भी होती हैं या बिना गलती के भी असफलता मिल सकती है उस स्थिति में हताश या निराश होना अथवा तनाव ग्रस्त होना नादानी है क्योंकि जीत उसी की होती है जिसके हौसले बुलंद होते हैं |

असफलता इन्सान को सदा भयभीत करती है तथा भयभीत होकर जो भी कार्य किया जाए सफलता मिलना कठिन होता है जीत के लिए खेलने वाले को हार का भय होता है परन्तु सीखने वाला कभी भयभीत नहीं होता क्योंकि उसे हार जीत की चिंता नहीं  होती इसलिए जो  इन्सान अपने लक्ष्य के मार्ग को सबक या अनुभव प्राप्त करने का साधन समझकर आगे बढ़ता है वह कभी हार नहीं मानता और अंत में जीत भी उसी की होती है | इसलिए हार को अनुभव व सबक समझने तथा गलतियां सुधारने का साधन समझना उत्तम होता है इससे ना तनाव होता है ना इन्सान हताश या निराश होता है और संघर्ष करते-करते कामयाब भी हो जाता है |

 कामयाबी का अगला व सबसे महत्वपूर्ण पायदान है अपने विषय में नियमित होना अर्थात (अप टू डेट) होना सभी विषयों में सदैव नई तकनीक विकसित होती रहती है इन्सान जब तक उस तकनीक पर अपनी पकड़ मजबूत नहीं करता वह पिछड़ जाता है तथा पिछड़ा हुआ इन्सान कामयाब कैसे हो सकता है |

खिलाडी के लिए नित नए नियम बनते हैं, नौकरी में नए विषय निकल जाते हैं, व्यापार में नए फैशन या ब्रांड उत्पन्न हो जाते हैं, अभिनय में नई तकनीक का उपयोग होने लगता है, अविष्कार के नए उपकरण उपलब्ध हो जाते हैं  जब तक इन्सान उन सबकी जानकारी से जुडकर खुद को नवीनतम साधनों या विषयों से तैयार नहीं कर लेता वह कामयाब नहीं हो सकता विद्यार्थी जिन किताबों को पढ़कर परीक्षा देता है वह एक वर्ष पूर्व की छपी होती हैं तथा उनका पाठ्यक्रम कितने वर्ष पुराना होगा|

यह प्रमाणित नहीं होता इसलिए उच्च कोटि में पास होने वाला विद्यार्थी जब अपनी बुद्धि पर अहंकार करता है तो वह भी मूर्ख ही होता है क्योंकि वर्तमान में सब कुछ नया विकसित हो चुका होता है इसलिए खुद को नियमित करना आवश्यक है |

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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