जीवन का सत्य

जीवन सत्यार्थ

  • दैनिक सुविचार
  • जीवन सत्यार्थ
  • Youtube
  • संपर्क करें

कर्म पर सुविचार – karma par suvichar

June 30, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

हम आपका ज्ञान या जानकारी बढ़ाने के लिए motivational suvichar , suvichar , daily suvichar , aaj ka vichar , daily suvichar , dainik suvichar , daily quotes , daily quotes in hindi लेकर आते हैं | इसी कड़ी में आज हम कर्म पर सुविचार – karma par suvichar लेकर आये हैं |

कर्म पर सुविचार - karma par suvichar

कर्म और सम्मान पर सुविचार

May 24, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

सुविचार

कर्म योनि

May 24, 2014 By Amit Leave a Comment

karma yoni

संसार में इन्सान तथा दूसरे प्राणियों में विभिन्नता का कारण कर्म योनि एवं भोग योनि है । इंसान के अतिरिक्त सभी छोटे से बड़े जितने भी जीव हैं सभी भोजन करने व संतान उत्पन्न करने तक ही सीमित हैं तथा कोई भी कार्य संसार का कोई भी जीव नहीं करता अर्थात जीवन व्यतीत करने के लिए सिर्फ भोग करते हैं कार्य और कर्म करना जीवों की आवश्यकता नहीं है । सिर्फ वही जीव कार्य करते हैं जो मनुष्य के चंगुल में फंस जाते हैं फिर मनुष्य उनसे जो भी कार्य कराए उन्हें मजबूरन करना पड़ता है । इसीलिए सभी जीवों को भोग योनि में माना जाता है परन्तु इन्सान को भोजन उपार्जन से लेकर जीवन का प्रत्येक कार्य स्वयं करना पड़ता है इस कारण इन्सान को कर्म योनि से सम्बंधित माना जाता है ।

सृष्टि की आरम्भ के दौर में इन्सान भी दूसरे प्राणियों की तरह सिर्फ भोग ही करता था जो भी प्राप्त होता खा लेता उपार्जन करना या दूसरे किसी कार्य से उसका कोई संबंध नहीं था । भोग योनि से कर्म योनि में प्रवेश इन्सान की स्वयं की कोशिश का ही परिणाम है । इन्सान बन्दर से मिलती प्रजाति का जीव था जो चंचल व जिज्ञासु प्रकार की बुद्धि एवं प्रवृति का प्राणी था । प्रत्येक वस्तु को उलट पलट कर देखना तथा इधर उधर फेंकना यह इन्सान का स्वभाव था जिसकी वजह से इन्सान को अचानक अग्नि की प्राप्ति हुई । पत्थर टकराकर अग्नि प्रज्वलित करना इन्सान की सबसे पहली खोज कहलाई एवं इसी अग्नि की खोज ने इन्सान को भोग योनि से कर्म योनि मे धकेल दिया । अग्नि से पहले तो इन्सान घबराया परन्तु दूसरे जीवों को अग्नि से डरते देखकर उसे अपनी रक्षा का साधन बना लिया अग्नि के नजदीक रहने से मिलने वाली तपिश उसे सर्दी से राहत मिलने का कार्य करने लगी इन्सान का अग्नि से लगाव और अधिक बढ़ गया ।

जिस स्थान पर इन्सान अग्नि का प्रयोग करता उसके आस-पास पड़ी हुई खाने की वस्तु तपिश के कारण झुलस जाती तथा उससे भुनने की महक उत्पन्न होती जिसने इन्सान को आकर्षित किया और इन्सान ने जब उसे चख कर देखा जिससे उसे अनोखा स्वाद प्राप्त हुआ । स्वाद की समझ आने पर इन्सान प्रत्येक खाने की वस्तु को भूनकर खाने लगा एवं अधिक स्वाद प्राप्त करने की दिशा में उसने अपनी बुद्धि का उपयोग करना आरम्भ कर दिया जिससे उसके बौधिक स्तर में वृद्धि होने लगी तथा उसकी बुद्धि का विकास आरम्भ हो गया ।

भूनने व पकाने से वनस्पति की कोशिकाएं नष्ट हो जाती थीं एवं उनकी सात्विकता नष्ट हो जाती थी जिससे इन्सान के शारीर व मस्तिष्क पर उसका विभिन्न प्रकार का प्रभाव होना आरम्भ हो गया भूनकर खाने से प्राप्त स्वाद तथा भूनने से नष्ट सात्विक पदार्थ के कारण बुद्धि में विकास एवं विकार दोनों का संयोग हुआ और इन्सान के कर्मों में  वृद्धि होती गई जिसके भंवर जाल में इन्सान आजतक उलझा हुआ है । स्वाद के कारण मोह की उत्पत्ति हुई एवं इन्सान वस्तुओं को एकत्रित कर जमा करने लगा जिससे उसे बर्तन तथा घर बनाने की आवश्यकता हुई और लोभ में वृद्धि होती गई तत :पश्चात अधिक प्राप्त होने से अहंकार उत्पन्न हुआ तथा अपने सामान को दूसरों से बचाने के लिए लड़ने और क्रोध करना आरम्भ हुआ । विकृत वस्तुओं के उपयोग से काम वासना को बढ़ावा मिला एवं इन्सान मुख्य पांचों विकारों से घिर गया ।

मोह , लोभ , काम , क्रोध व अहंकार से सभी तरह के विकार पैदा होते हैं जैसे बददिमागी , बदतमीजी , धोखा करना , ईर्ष्या करना , आलोचना करना , षडियंत्र करना , ठगना , चोरी व लूट , हत्या करना जैसे जघन्य अपराध भी इन्हीं पाँचों विकारों से उत्पन्न होते हैं । अधिक स्वादिष्ट भोजन की खोज ने ही मनुष्य को अन्न उपजाने पर मजबूर किया जिससे इन्सान ने खेती की खोज की और तरह तरह के खेती करने के साधन तथा औजार बनाए । एक बार आरम्भ करने की देर थी इन्सान के कर्मों का दायरा तेजी से बढ़ता गया । अपनी वस्तुओं को दूसरे इंसानों से तथा दूसरे जीवों से रक्षा करने के लिए इन्सान ने बस्ती बना कर बसना आरम्भ किया एवं रक्षा हेतु नए नए हथियार बनाए  परिवार , रिश्ते , धर्म और कानून बनाए गए ।

जो इन्सान आलसी थे वह वस्तुओं को प्राप्त करने के विभिन्न तरीकों को अपनाने लगे जैसे चोरी करना , हथियार के बल पर लूटना , या किसी को मूर्ख बना कर ठगना जैसे भी हुआ प्राप्त किया । इन लुटेरों को रोकने के लिए कानून बनाए गए , सेना बनाई , न्यायालय बनाए गए । समाज विचारों के कारण विभाजित होता गया देश और राज्य के टुकड़ों की पृथ्वी पर भरमार हो गई । संसार में जितनी भी भौतिक वस्तुएं हैं सभी मनुष्य द्वारा निर्मित हैं सुई से लेकर हवाई जहाज तक सभी का निर्माण इंसान ने ही किया है इन सभी का प्रकृति व ईश्वर से कोई सम्बन्ध नहीं है । ईश्वर की देन प्राणी व वनस्पति और उन्हें जीवन देने वाली वस्तुएं जैसे वायु , जल , भोजन तथा ऊर्जा है । अग्नि की प्राप्ति से शुरू हुई कर्मों की कहानी इन्सान को कहाँ से कहाँ ले आई है जिसमे उलझकर इन्सान का जीवन नरक समान हो गया है । इन्सान को वर्तमान में कर्म करना अनिवार्य हो गया है क्योंकि कर्म के बगैर जीवन की गति समाप्त हो जाती है इसीलिए इन्सान को कर्मयोनि का सदस्य कहा जाता है ।

कर्म

May 24, 2014 By Amit Leave a Comment

karma

इन्सान उदर पूर्ति तथा सन्तान उत्पन्न करने के अतिरिक्त जीवन निर्वाह के लिए जो भी कार्य करता है उसे इन्सान द्वारा किया गया कर्म कहा जाता है । जीवन यापन करने के लिए संसार का प्रत्येक प्राणी उदर पूर्ति तथा सन्तान उत्पत्ति का कार्य करता है जो संसार में जीवन धारा के निर्माण तथा संचालन के लिए अत्यंत आवश्यक है इसके अतिरिक्त कोई भी जीव किसी भी प्रकार का कोई कार्य नहीं करता अर्थात इन्सान की तरह कर्म नहीं करता । इन्सान जन्म के कुछ समय पश्चात ही कर्म करना आरम्भ कर देता है जिसमे सर्वप्रथम कर्म शिक्षा प्राप्त करने का होता है क्योंकि शिक्षा के द्वारा बुद्धि का विकास करने पर ही जीवन के अन्य कर्मों को सरलता पूर्वक अंजाम दिया जा सकता है ।

शिक्षा प्राप्ति का जीवन काल इन्सान का सबसे महत्वपूर्ण तथा आकर्षक काल होता है क्योंकि शिक्षा प्राप्ति के वर्षों में उस पर नित्य सरल कार्यों के अतिरिक्त अधिकतर किसी भी प्रकार के कठिन तथा महत्वपूर्ण कर्म करने का किसी भी प्रकार का कोई दबाव नहीं होता तथा सभी आवश्यक व मनचाही वस्तुएं सरलता पूर्वक बिना कर्म किए प्राप्त हो जाती हैं । शिक्षा प्राप्ति के जीवनकाल की सबसे अधिक महत्वता इस कारण होती है क्योंकि प्राप्त शिक्षा की सफलता के द्वारा ही इंसान का सम्पूर्ण भविष्य निर्धारित होता है शिक्षा काल में सफलता प्राप्त हो जाती है तो इन्सान को भविष्य में अधिक कठिनायों का सामना नहीं करना पड़ता अन्यथा सम्पूर्ण जीवन अत्यंत संघर्ष शील होकर नर्क समान व्यतीत होता है ।

शिक्षा प्राप्ति के पश्चात इन्सान का पूर्ण कर्म क्षेत्र आरम्भ हो जाता है जिसमे जीवन निर्वाह के लिए आजीविका उपार्जन के कर्म जीवन को संघर्ष शील बना देते हैं तत:पश्चात वह चाहे सेवा कार्य द्वारा आजीविका संचालन करे अथवा किसी व्यवसाय द्वारा धन एकत्रित करे । अपने परिवार का पालन पोषण तथा दाम्पत्य जीवन आरम्भ करके उसका बोझ उठाना एंव सन्तान उत्पन्न करके उनकी परवरिश का कार्य संचालन सभी इन्सान के कर्म क्षेत्र में शिक्षा के पश्चात ही आरम्भ होते हैं । परिवार के पालन पोषण के साथ समाज से व्यहवार व समाजिक कार्य एंव परिवार के सम्मान का ध्यान रखना तथा सम्बन्धित रिश्तों को सुचारू रूप से संचालित रखना भी इन्सान का आवश्यक तथा महत्वपूर्ण कर्म क्षेत्र है ।

यदि किसी इन्सान को भरपूर धन सम्पदा एंव जायदाद विरासत में प्राप्त हो जाती है तथा वह कर्मों को त्याग कर जीवन के भौतिक सुखों का आनन्द प्राप्त करने में व्यस्त हो जाता है एंव अपने परिवार को भी आनन्द विभोर कर देता है तो वह अपने जीवन के लिए संकट उत्पन्न करता है । कर्म ना करने से इन्सान की कार्य क्षमता नष्ट हो जाती है तथा परिवार के सदस्य भी नाकारा व आलसी हो जाते हैं जिससे जीवन में कर्म करने की आवश्यकता होने पर भी उनका कार्य करना असफल हो जाता है क्योंकि कर्म ना करने की आदत तथा अनुभव हीनता इन्सान को कर्महीन बना देते हैं इसलिए कर्म के प्रति जागरूक रहना आवश्यक है । कर्म करने से ही जीवन गतिशील रहता है तथा गतिशीलता में अवरोध उत्पन्न होने पर जीवन में ठहराव आकर इन्सान को मृत्यु तुल्य कष्ट देता है । जिस प्रकार एक स्थान पर ठहरा हुआ पानी सड़ने लगता है और उसमे दुर्गन्ध उत्पन्न हो जाती है तथा जीवाणु एंव विषाणु पनपकर बीमारियाँ फैलाते हैं उसी प्रकार कर्महीन इन्सान कर्म ना करके अपना जीवन कष्टकारी एवं अभावग्रस्त बना लेता है ।

संसार में अनेकों प्रकार की भौतिक वस्तुएं इन्सान को विभिन्न प्रकार के सुख प्रदान करने के लिए उपलब्ध हैं जिनका किसी इन्सान द्वारा ही निर्माण किया जाता है तथा अनेकों प्रकार की आवश्यक तथा भोग विलासिता की वस्तुओं का विकास प्रारम्भ है । संसार में इंसानी जीवन के लिए सबसे अधिक आवश्यक वस्तुएं भोजन के लिए किसी ना किसी इन्सान द्वारा ही उपार्जन करी जा रही हैं । संसार के निर्माण तथा संचालन करने में सभी इन्सान अपने अपने कर्मों द्वारा सहायक होते हैं परन्तु जो इन्सान कर्म करने के प्रति उदासीनता प्रकट करते हैं वें संसार में जानवरों की तरह सिर्फ भोग करके जीवन व्यतीत करते हैं । संसार की प्रगति के लिए सबसे आवश्यक है कि प्रत्येक इन्सान अपने सामर्थ्य के अनुसार कर्म करता रहे तभी संसार संतुलित रूप से गतिशील रह सकता है ।

इन्सान द्वारा किये गए कर्म के आधार पर उसे परिवार तथा समाज द्वारा उचित सम्मान प्राप्त होता है तथा कर्म से भागने वाले इन्सान को परिवार सहित समाज द्वारा घृणा की दृष्टि से देखा जाता है । संसार के विकास के अतिरिक्त जो इन्सान स्वार्थ वश अपने सुखों की अधिक से अधिक प्राप्ति के लिए कर्मों के पीछे दौड़ता है अर्थात कर्म को ही जीवन समझ लेता है वह भी नादानी का पात्र होता है । कर्म जीवन की आवश्यकता है कर्म जीवन नहीं है यदि सदा कर्म में खो गए तो परिवार तथा समाज से नाता टूट जाता है जो भविष्य में जीवन को कष्टदायक बना देता है । जीवन में जिस प्रकार कर्म के प्रति उदासीनता बुरी है उसी प्रकार कर्मान्धता भी बुरी है इसलिए कर्मों को उचित प्रकार से तथा संतुलन में क्या जाए तभी जीवन संतुलित होता है ।

Recent Posts

  • सोच पर सुविचार
  • वातावरण पर सुविचार
  • वफादारी पर सुविचार – vafadari par suvichar
  • धोखे के कारणों पर सुविचार – dhokhe ke karno par suvichar
  • sukh or dukh par suvichar – सुख व दुःख पर सुविचार

जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

Copyright © 2021 jeevankasatya.com