
संसार में इन्सान तथा दूसरे प्राणियों में विभिन्नता का कारण कर्म योनि एवं भोग योनि है । इंसान के अतिरिक्त सभी छोटे से बड़े जितने भी जीव हैं सभी भोजन करने व संतान उत्पन्न करने तक ही सीमित हैं तथा कोई भी कार्य संसार का कोई भी जीव नहीं करता अर्थात जीवन व्यतीत करने के लिए सिर्फ भोग करते हैं कार्य और कर्म करना जीवों की आवश्यकता नहीं है । सिर्फ वही जीव कार्य करते हैं जो मनुष्य के चंगुल में फंस जाते हैं फिर मनुष्य उनसे जो भी कार्य कराए उन्हें मजबूरन करना पड़ता है । इसीलिए सभी जीवों को भोग योनि में माना जाता है परन्तु इन्सान को भोजन उपार्जन से लेकर जीवन का प्रत्येक कार्य स्वयं करना पड़ता है इस कारण इन्सान को कर्म योनि से सम्बंधित माना जाता है ।
सृष्टि की आरम्भ के दौर में इन्सान भी दूसरे प्राणियों की तरह सिर्फ भोग ही करता था जो भी प्राप्त होता खा लेता उपार्जन करना या दूसरे किसी कार्य से उसका कोई संबंध नहीं था । भोग योनि से कर्म योनि में प्रवेश इन्सान की स्वयं की कोशिश का ही परिणाम है । इन्सान बन्दर से मिलती प्रजाति का जीव था जो चंचल व जिज्ञासु प्रकार की बुद्धि एवं प्रवृति का प्राणी था । प्रत्येक वस्तु को उलट पलट कर देखना तथा इधर उधर फेंकना यह इन्सान का स्वभाव था जिसकी वजह से इन्सान को अचानक अग्नि की प्राप्ति हुई । पत्थर टकराकर अग्नि प्रज्वलित करना इन्सान की सबसे पहली खोज कहलाई एवं इसी अग्नि की खोज ने इन्सान को भोग योनि से कर्म योनि मे धकेल दिया । अग्नि से पहले तो इन्सान घबराया परन्तु दूसरे जीवों को अग्नि से डरते देखकर उसे अपनी रक्षा का साधन बना लिया अग्नि के नजदीक रहने से मिलने वाली तपिश उसे सर्दी से राहत मिलने का कार्य करने लगी इन्सान का अग्नि से लगाव और अधिक बढ़ गया ।
जिस स्थान पर इन्सान अग्नि का प्रयोग करता उसके आस-पास पड़ी हुई खाने की वस्तु तपिश के कारण झुलस जाती तथा उससे भुनने की महक उत्पन्न होती जिसने इन्सान को आकर्षित किया और इन्सान ने जब उसे चख कर देखा जिससे उसे अनोखा स्वाद प्राप्त हुआ । स्वाद की समझ आने पर इन्सान प्रत्येक खाने की वस्तु को भूनकर खाने लगा एवं अधिक स्वाद प्राप्त करने की दिशा में उसने अपनी बुद्धि का उपयोग करना आरम्भ कर दिया जिससे उसके बौधिक स्तर में वृद्धि होने लगी तथा उसकी बुद्धि का विकास आरम्भ हो गया ।
भूनने व पकाने से वनस्पति की कोशिकाएं नष्ट हो जाती थीं एवं उनकी सात्विकता नष्ट हो जाती थी जिससे इन्सान के शारीर व मस्तिष्क पर उसका विभिन्न प्रकार का प्रभाव होना आरम्भ हो गया भूनकर खाने से प्राप्त स्वाद तथा भूनने से नष्ट सात्विक पदार्थ के कारण बुद्धि में विकास एवं विकार दोनों का संयोग हुआ और इन्सान के कर्मों में वृद्धि होती गई जिसके भंवर जाल में इन्सान आजतक उलझा हुआ है । स्वाद के कारण मोह की उत्पत्ति हुई एवं इन्सान वस्तुओं को एकत्रित कर जमा करने लगा जिससे उसे बर्तन तथा घर बनाने की आवश्यकता हुई और लोभ में वृद्धि होती गई तत :पश्चात अधिक प्राप्त होने से अहंकार उत्पन्न हुआ तथा अपने सामान को दूसरों से बचाने के लिए लड़ने और क्रोध करना आरम्भ हुआ । विकृत वस्तुओं के उपयोग से काम वासना को बढ़ावा मिला एवं इन्सान मुख्य पांचों विकारों से घिर गया ।
मोह , लोभ , काम , क्रोध व अहंकार से सभी तरह के विकार पैदा होते हैं जैसे बददिमागी , बदतमीजी , धोखा करना , ईर्ष्या करना , आलोचना करना , षडियंत्र करना , ठगना , चोरी व लूट , हत्या करना जैसे जघन्य अपराध भी इन्हीं पाँचों विकारों से उत्पन्न होते हैं । अधिक स्वादिष्ट भोजन की खोज ने ही मनुष्य को अन्न उपजाने पर मजबूर किया जिससे इन्सान ने खेती की खोज की और तरह तरह के खेती करने के साधन तथा औजार बनाए । एक बार आरम्भ करने की देर थी इन्सान के कर्मों का दायरा तेजी से बढ़ता गया । अपनी वस्तुओं को दूसरे इंसानों से तथा दूसरे जीवों से रक्षा करने के लिए इन्सान ने बस्ती बना कर बसना आरम्भ किया एवं रक्षा हेतु नए नए हथियार बनाए परिवार , रिश्ते , धर्म और कानून बनाए गए ।
जो इन्सान आलसी थे वह वस्तुओं को प्राप्त करने के विभिन्न तरीकों को अपनाने लगे जैसे चोरी करना , हथियार के बल पर लूटना , या किसी को मूर्ख बना कर ठगना जैसे भी हुआ प्राप्त किया । इन लुटेरों को रोकने के लिए कानून बनाए गए , सेना बनाई , न्यायालय बनाए गए । समाज विचारों के कारण विभाजित होता गया देश और राज्य के टुकड़ों की पृथ्वी पर भरमार हो गई । संसार में जितनी भी भौतिक वस्तुएं हैं सभी मनुष्य द्वारा निर्मित हैं सुई से लेकर हवाई जहाज तक सभी का निर्माण इंसान ने ही किया है इन सभी का प्रकृति व ईश्वर से कोई सम्बन्ध नहीं है । ईश्वर की देन प्राणी व वनस्पति और उन्हें जीवन देने वाली वस्तुएं जैसे वायु , जल , भोजन तथा ऊर्जा है । अग्नि की प्राप्ति से शुरू हुई कर्मों की कहानी इन्सान को कहाँ से कहाँ ले आई है जिसमे उलझकर इन्सान का जीवन नरक समान हो गया है । इन्सान को वर्तमान में कर्म करना अनिवार्य हो गया है क्योंकि कर्म के बगैर जीवन की गति समाप्त हो जाती है इसीलिए इन्सान को कर्मयोनि का सदस्य कहा जाता है ।