संसार में जीवन निर्वाह करने के लिए इन्सान को कार्य करने अति आवश्यक हैं क्योंकि कर्म किये बगैर जीवन को गतिशील नहीं रखा जा सकता तथा जीवन यापन भी अत्यंत कठिन हो जाता है । इन्सान द्वारा किये गए कर्म को करने से पूर्व परिणाम का ध्यान करके उसके लाभ अथवा हानि का अंदाजा लगाना तथा कर्म के प्रभाव से उसको समाज व परिवार से प्राप्त होने वाले सम्मान अथवा अपमान की मानसिकता को कर्म का मूल्यांकन कहा जाता है । कर्म करने से पूर्व कर्म की महत्वता का ध्यान करना एंव कर्म का मूल्यांकन करना बुद्धिमानी का परिचय है क्योंकि उच्च कोटि के एंव सात्विक कर्म करने से ही परिवार तथा समाज में सम्मान प्राप्त होता है तथा नीच व घृणित कर्म इन्सान सहित उसके परिवार तथा कुल को भी प्रभावित करते हैं ।

इन्सान के जीवन का सर्वाधिक मुख्य कर्म आजीविका उपार्जन द्वारा उदर पूर्ति का होता है क्योंकि उदर पूर्ति से ही जीवन है अन्यथा इन्सान मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । आजीविका उपार्जन के दो मुख्य श्रोत हैं व्यवसाय अथवा सेवा कार्य द्वारा मुद्रा प्राप्त करके जीवन निर्वाह करना क्योंकि आदिकाल से ही इन्सान को कर्मों द्वारा अपना जीवन निर्वाह करने का का माध्यम मुद्रा को बनाया गया है जिसमे कर्म का फल मुद्रा के रूप में प्राप्त होता है तथा मुद्रा से जीवन यापन की आवश्यक वस्तुएं सरलता से प्राप्त हो जाती हैं । व्यवसाय अथवा सेवा कार्य में सबसे अधिक महत्व शिक्षा का होता है क्योंकि अशिक्षित इन्सान सिर्फ शरीरिक मेहनत के कार्य कर सकता है जिसमे उसे सिमित धन प्राप्त होता है परन्तु शिक्षित इन्सान अपने बुद्धि कौशल द्वारा किसी भी प्रकार के कार्य सम्पन्न करने में सक्षम होता है जिसके कारण उसे असीमित मुद्रा प्राप्त हो जाती है ।
अशिक्षित इन्सान का जीवन संघर्षशील अवश्य होता है परन्तु वह किसी भी प्रकार के कर्म का मूल्यांकन करने में समय व्यर्थ नहीं करते तथा किसी भी प्रकार के कर्मों द्वारा आजीविका उपार्जन करके अपनी तथा अपने परिवार की उदर पूर्ति सफलता पूर्वक करके जीवन निर्वाह कर लेते हैं । अशिक्षित इन्सान किसी भी प्रकार के व्यवसाय अथवा सेवा कार्य से परहेज करने के स्थान पर उसे अपनी आजीविका उपार्जन का साधन बनाना उचित समझता है । शिक्षित इन्सान प्रत्येक कार्य को करने से पूर्व अपने सम्मान का ध्यान करना आरम्भ कर देता है जिसके कारण यदि परिस्थिति अनुकूल हो तो उसे भरपूर सफलता प्राप्त हो जाती है अन्यथा परिस्थिति विरुद्ध होने पर उसका जीवन कर्म का मूल्यांकन करने में ही व्यतीत होता रहता है ।
संसार में सबसे संघर्षपूर्ण तथा कष्टदायक जीवन ऐसे इंसानों का होता है जो कर्म की महत्वता के आधार पर कर्म करते हैं यदि कर्म उनकी मनोस्थिति के अनुकूल न हो तो शर्मिंदगी वश वें कार्य करने से परहेज करते हैं । ऐसे इन्सान जीवन भर परिस्थिति अनुकूल होने का इंतजार करते हुए समाज में पिछड़ते रहते हैं तथा अपने परिवार व समाज द्वारा कर्महीन एंव नाकारा समझे जाते हैं जिसमे शिक्षितों की मात्रा अशिक्षितों से अधिक होती है । समाज में खुद को महत्वपूर्ण समझकर मनचाहा कार्य उपलब्ध ना होने के कारण कर्म ना करने से जीवन अभाव पूर्ण हो जाता है तथा आवश्यकता के समय उधार मांगना पड़ता है । इस प्रकार के अपमान से किसी भी कार्य द्वारा जीवन के अभाव समाप्त करना अधिक उचित निर्णय है ।
संसार में सर्वाधिक महत्वपूर्ण जीवन है तथा जीवन के लिए उदर पूर्ति आवश्यक है एंव इन्सान समाजिक प्राणी है जिसके लिए कुछ नियम निर्धारित हैं इसलिए जो इन्सान अपने परिवार का संचालन करने में अक्षम होता है तो उसे स्वयं को इन्सान कहलाने का भी अधिकार नहीं होता क्योंकि परिवार के पोषण के लिए कर्म करने से सकुचाने वाले की इंसानियत समाप्त हो चुकी होती है । संसार में आजीविका उपार्जन की अनेकों प्रकार की विधियाँ उपलब्ध हैं जिनके बल पर असंख्य इन्सान अपना जीवन सुचारू रूप से संचालित कर रहे हैं । संसार में अंतर सिर्फ इन्सान की मानसिकता का होता है जिसके कारण जीवन निर्वाह में वह सक्षम नहीं होता है क्योंकि कर्म का महत्व करने वाले की भावनाओं में है जो उसे महत्वपूर्ण अथवा महत्वहीन बनाता है ।
भोजन में सबसे सस्ती वस्तु नमक होती है परन्तु नमक की अल्प या अधिक मात्रा होने से भोजन खाने लायक नहीं रहता तथा घी कीमती वस्तु होने पर भी भोजन में नमक का स्थान ग्रहण नहीं कर सकता क्योंकि घी का होना या ना होना भोजन के लिए आवश्यक नहीं होता । सफाई कर्मी द्वारा अपना कर्म त्याग देने पर गंदगी के कारण बीमारियाँ फ़ैल सकती हैं अन्यथा स्वयं गंदगी साफ करनी पड़ेगी या उसे बर्दास्त करना पड़ेगा इसी प्रकार मजदूर के कारण ही इमारतें बुलंद होती हैं तथा कारखानों में उत्पादन होता है । किसान द्वारा अन्न उपार्जन से ही संसार की उदर पूर्ति होती है इसलिए किसी कार्य को नीच अथवा बेकार समझना अनुचित होता है इसलिए कर्म का मूल्यांकन समाजिक दृष्टि से करना उचित होता है ।
सर्वाधिक उच्च कोटि का कर्म किसी की निस्वार्थ तथा निष्फल करी गई सेवा है तथा निस्वार्थ मार्गदर्शन तथा उचित सीख देना भी उच्च कर्म हैं । प्राप्ति की कामना से किये गए कार्य जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक कर्म हैं जो इन्सान के साधारण श्रेणी के कर्म होते हैं । किसी से स्वार्थ पूर्ति हेतु कार्य करवाना व ठगना या लूटना, चोरी अथवा भीख मांगना नीच कर्म की श्रेणी में आते हैं । अपना धन खर्च करके भी किसी को धुम्रपान, जुआ, शराब, अश्लील फ़िल्में या अश्लीलता की शिक्षा अथवा अनुचित मार्गदर्शन सर्वाधिक नीच कर्म हैं क्योंकि इस प्रकार के कर्मों का प्रभाव उनके परिवारों पर भी होता है तथा उनका समाजिक पतन हो सकता है । मुफ्त में प्राप्त होने पर जहर को स्वीकार सिर्फ मूर्ख इन्सान ही करते हैं इसलिए कर्म का मूल्यांकन करना भी आवश्यक है जिससे कर्म का महत्व ज्ञात रहे परन्तु मूल्यांकन से महत्वपूर्ण कर्म है क्योंकि कर्म के बगैर जीवन की गति समाप्त हो जाती है ।