
इन्सान के मन की इच्छाओं के विरुद्ध हुए किसी कार्य को देखकर या सुनकर विवेक का कार्यहीन होना तथा बुद्धि पर मन का अधिकार हो जाने पर इन्सान के रक्तचाप में बढ़ोतरी और मस्तिक की नसों में तनाव व इन्द्रियों का सजग होना क्रोध की अवस्था कहलाता है । क्रोध इन्सान का पांचवा मुख्य विकार है इससे इन्सान पूर्ण विकृत होकर साधारण इन्सान की श्रेणी में आता है । पहले तीन विकार मोह, लोभ, काम इन्सान को अधिक प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं तथा चतुर्थ विकार दिखावे के लिए प्रेरित करता है परन्तु पाँचवा विकार अर्थात क्रोध इन्सान को सर्वनाश की तरफ ले जाता है ।
क्रोध यदि मोह, लोभ या काम से सम्बन्धित हो तो जिस विषय, वस्तु, प्राणी, धन, जायदाद वगैरह से सम्बन्धित होता है उसे छीन लेने या उसे नष्ट करने के लिए उकसाता है । परन्तु अहंकार से सम्बन्धित होने पर क्रोध सिर्फ खुद को समाज में श्रेष्ठ प्रमाणित करने के लिए उत्पन्न होता है । क्रोध उत्पन्न होने के समय इन्सान की बुद्धि कार्य तो करती है परन्तु वह मन की इच्छाओं के वशीभूत होती है इसलिए उस समय बुद्धि के कुंठित होने की अवस्था होती है जिसके कारण इन्सान का विवेक कदापि कार्य नहीं करता तथा विवेकहीन होने के कारण क्रोधित अवस्था में किया गया फैसला या किसी कार्य के लिए लिया गया निर्णय सदा गलत होता है ।
यदि इन्सान लगातार क्रोध करने की अवस्था से गुजरता है तो उसका बौधिक विकास समाप्त हो जाता है कभी कभी तो अधिक क्रोध करने तथा निरंतर क्रोध करने से इन्सान पागलपन की अवस्था में पहुंच जाता है । ऐसी ही किसी भयंकर अवस्था के चलते क्रोध के समय किसी कार्य को अंजाम देते समय इन्सान किसी की हत्या करने पर भी उतारू हो जाता है या हत्या कर देता है जिसकी वजह से उसका जीवन संकट में आ जाता है । संसार में ऐसे कितने ही प्रमाण हैं जब इन्सान क्रोध वश किसी की हत्या को अंजाम दे देता है तथा उसका सम्पूर्ण जीवन कारावास में व्यतीत होता है । क्रोध के पश्चात पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त नहीं होता है ।
क्रोध करने वाले इन्सान को अपने स्वभाव के परिवर्तन का अहसास भी नहीं होता तथा वह अपने स्वभाव एंव व्यहवार को साधारण या उचित समझता है । क्रोधी इन्सान के परिवार के सदस्य एंव मित्र तथा सम्बन्धी या शुभ चिंतक उसके स्वभाव से परेशान होकर धीरे धीरे उसका साथ त्यागने लगते हैं । समाज में क्रोधी स्वभाव के इन्सान को घृणा की दृष्टि से देखा जाता है इसलिए ऐसे इन्सान से कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहता । समाजिक व्यहवार तथा शुभ चिंतकों के सम्बन्ध समाप्त होने से क्रोधी इन्सान का पतन होना स्वभाविक कार्य है । जिससे कुंठित होकर क्रोधी इन्सान आत्म हत्या जैसे अपराध को भी अंजाम दे देता है क्योंकि उसमे अपने लिए भी अच्छा बुरा सोचने समझने की क्षमता नहीं रहती।
चालाक व चापलूस प्रवृति के इन्सान क्रोधी मनुष्य के स्वभाव का भरपूर अनावश्यक उपयोग करके लाभ प्राप्त करते हैं क्योंकि क्रोध में चापलूस सच्चा हमदर्द दिखाई देता है वह अपनी धूर्तता से उसे परिवार और मित्रों से दूर करके उचित प्रकार लूटता है । क्रोध करते समय इन्सान संसार का सबसे मूर्ख प्राणी होता है क्योंकि किसी भी समस्या का समाधान क्रोध करने से नहीं निकलता बल्कि क्रोध से समस्या की बढ़ोतरी होती है । समस्या निवारण सिर्फ विवेक द्वारा ही संभव होता है जो क्रोध में नष्ट हो जाता है । विवेक जागृत रखने के लिए क्रोध पर नियन्त्रण करना आवश्यक है ।
पांचों मुख्य विकार इन्सान के जीवन को संघर्ष पूर्ण एंव कष्टदायक बनाते हैं तथा इन पांचों विकारों के कारण ही इन्सान में दूसरे विकारों का आगमन होता है जैसे निराशा, चंचलता, स्वार्थ, घृणा, कुंठा, शक, बदतमीजी, धूर्तता वगैरह । इन विकारों को समाप्त करना मुश्किल है ना मुमकिन नहीं है परन्तु इन्सान अपने धैर्य से इन पर नियन्त्रण करके इन्हें संतुलित कर सकता है । संतुलित होने पर विकारों का अधिक बुरा प्रभाव नहीं होता तथा जीवन आराम से व्यतीत होता है ।