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सबक लेने पर सुविचार – sabak lene par suvichar

September 12, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

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सबक लेने पर सुविचार - sabak lene par suvichar

सीख

July 26, 2014 By Amit Leave a Comment

seekh

जीवन की किसी महत्वपूर्ण घटना के घटित होने पर उसके अनुभव से प्राप्त तथा किसी इन्सान के ज्ञान से उत्पन्न अनुभव से जीवन में होने वाली मुश्किलों एंव अपराधिक घटनाओं के प्रति सावधान करने की अग्रिम चेतावनी पूर्ण जानकारी को सीख कहा जाता है । सीख इन्सान के लिए ऐसी शिक्षा है जिसे पुस्तकों में पढकर प्राप्त किया जा सकता है तथा यह प्रतिपल समाज के दूसरे इंसानों, परिवार के सदस्यों, सम्बन्धियों और मित्र गणों के द्वारा सरलता पूर्वक मुहावरों, दोहे और कहावतों के रूप में भी प्राप्त हो जाती है । सीख से प्राप्त होने वाली महत्वपूर्ण जानकारियों के बल पर कोई भी इन्सान जीवन की मुश्किलों तथा अपराधिक गतिविधियों से सावधान रहकर सफलता पूर्वक अपना बचाव कर सकता है तथा अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत कर सकता है ।

इन्सान के जीवन के लिए इतना महत्वपूर्ण होने के पश्चात भी यदि कोई इन्सान सीख को पढकर, देखकर, सुनकर भी उसका उपयोग नहीं कर पाता तो उसे कुछ तथ्यों को समझना आवश्यक होता है । कोई भी शिक्षा सर्व प्रथम देखी , सुनी तथा पढ़ी जाती है उसके पश्चात उसे समझना आवश्यक होता है क्योंकि समझने पर ही शिक्षा का सही अर्थ प्राप्त होता है परन्तु उसका फायदा उठाने के लिए सिर्फ समझना ही सम्पूर्ण कार्य नहीं होता उसको गुणना भी आवश्यक होता है । गुणना अर्थात अपने जीवन में धारण करके उसे किर्या शील करना । गुणने पर सीख इन्सान के जीवन की राहों में मार्गदर्शक का कार्य करती है एंव इन्सान के जीवन में सुरक्षा कवच की तरह उसकी रक्षा करती है तथा शातिर इंसानों के फरेब से पूर्ण रक्षा करती है ।

किसी इन्सान के द्वारा किसी पदार्थ से होने वाले नुकसान के कारण उसे खाने से मना करने की सीख ना मानकर जो इन्सान उस पदार्थ को खाकर पेट दर्द की तकलीफ तथा बीमारी से गुजरता है वह यदि सीख मान लेता तो उसे कोई कष्ट नहीं होता । सिगरेट की डब्बी पर लिखी उसके बारे में चेतावनी व शराब की बोतल पर लिखी चेतावनी तथा इसी प्रकार खाने की वस्तुओं और पदार्थों से होने वाले नुकसान को ना मानकर इन्सान बिमारियों का आलिंगन करके अपने जीवन को संकट में डाल लेता है । यदि इन्सान भोजन के पदार्थों के बारे में लिखी गई अथवा कही गई सीख मान लें तो संसार से अधिकतर बीमारियाँ समाप्त हो सकती हैं एंव इन्सान स्वास्थ्य पूर्ण जीवन व्यतीत कर सकता है ।

समाज में कोई इन्सान अपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने से पूर्व अपराध के अंजाम को देखकर या समझकर तथा समाजिक सीख एंव अपराध के दंड से उसपर तथा उसके परिवार पर होने वाले प्रभाव को भली भांति समझ ले तो संसार से अपराध करने की घटनाएँ लगभग समाप्त हो सकती हैं ।  परन्तु सभी अपराधी अपनी बुद्धि को कानून तथा समाज से महत्वपूर्ण मान कर अपने अपराधों को अंजाम देते हैं जो उनका अहंकार और अल्प बुद्धि का परिचय होता है ।

इन्सान के स्वभाव के अनुसार किसी भी विषय या वस्तु की प्राप्ति सरलता पूर्वक होने एंव मुफ्त या सस्ते में प्राप्त होने से वह उसे घटिया तथा व्यर्थ की वस्तु समझकर उसका त्याग कर देता है । इन्सान की दृष्टि में कठिनाई से प्राप्त होने वाली एंव कीमती वस्तु या विषय महत्वपूर्ण होता है चाहे वह विष ही क्यों ना हो । इसलिए मुफ्त में प्राप्त होने वाली सीख का मुल्यांकन वह अपने इसी दृष्टिकोण से करता है तथा सीख को इंसानी कहावत मानकर उसपर हंसकर उसका अनादर करता है । संसार में जितनी भी सीख प्राप्त होती हैं वें इन्सान को जीवन का मूल्य समझाती हैं एंव उन्हें जीवन में दूसरे इंसानों से मिलने वाले धोखे से सावधान करने से लेकर समय की कीमत तथा समाज से व्यहवार, परिवार व मित्रों से सम्बन्ध व प्रेम और इन्सान को फर्ज, कर्म, धर्म वगैरह सभी समझती है ।

संसार की सभी सीख वह चाहे मुहावरे के रूप में हो या दोहे या कहावत के रूप में हों इन सबको इन्सान एंव इंसानियत के कल्याण के लिए एकत्रित किया गया जिसके लिए संसार के महान संत तथा महान दार्शनिक एंव समाज सेवी बुद्धिजीवी महापुरुषों ने अपने ज्ञान का उपयोग करके अपना समय गवांकर इंसानों को जीवन का अर्थ समझाने की पुरजोर कोशिश करी है जिससे संसार में शांति तथा सम्पन्नता सलामत रहे । जिन इंसानों ने सीख की महत्वता को समझकर ग्रहण कर लिया वे अपना जीवन शांति एंव सुखपूर्वक व्यतीत करते हैं परन्तु जिन्हें यह व्यर्थ का विषय लगा तथा उन्होंने इसका त्याग किया या इसे अनदेखा किया वह सदा समस्याओं में घिरे रहते हैं । कोई भी सीख या अनुभव सदैव ठोकरें खाकर प्राप्त होती हैं यदि अन्य इंसानों द्वारा प्राप्त अनुभव या सीख को समझ लिया जाए तो ठोकरें खाने से बचा जा सकता है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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