कोई भी अनैतिक, अनावश्यक, अस्वाभाविक कार्य करना या कार्य को खराब करना, बिगाड़ना अथवा विकृत करना गलती (galti) कहलाती है । गलती अपराध की श्रेणी का कार्य माना जाता है | क्योंकि अपराध का आरम्भ गलती करने से भी होता है । गलती (galti) के दंड स्वरूप आक्रोश उत्पन्न होना या गलती (mistake) क्षमा करने पर हौसले में वृद्धि होना दोनों प्रकार से ही इन्सान अपराध की तरफ अग्रसर हो जाता है । गलती (galti) पर दंड देने अथवा क्षमा करने से पूर्व गलती के कारणों की समीक्षा करना आनिवार्य होता है । गलती (mistake) क्षमा करने लायक हो तभी क्षमा करना उत्तम है , तथा दंड देने लायक हो तभी दंड देना उत्तम होता है । गलती (galti) पर यदि गलत प्रकार से दंड अथवा क्षमा प्रदान की जाए तो वह भी गलती ही होती है | जिसका परिणाम सदैव हानिकारक होता है ।
इन्सान के गलती (mistake) करने के अनेक कारण होते हैं | इसलिए समीक्षा करके कारण के अनुसार दंड, क्षमा या समझाना ही उत्तम निर्णय है । जब किसी को उचित दंड मिले या क्षमा मिले अथवा उसे उचित प्रकार से समझाया जाए तो वह आगे से गलती करने से बचता है तथा उसके कदम अपराध की तरफ जाने से भी रुक जाते हैं । प्रथम बार कार्य करने वाला कार्य से अनजान होता है इसलिए गलती होना स्वाभाविक है यह इन्सान की नासमझी होती है । कार्य को अति शीघ्र सम्पन्न करने में गलती होना जल्दबाजी होती है । कार्य में बचत करने के प्रयास में गलती होना लालच होता है । अपनी बुद्धिमानी प्रमाणित करने के प्रयास में गलती होना अहंकार होता है । कार्य दोबारा ना करवाया जाए इसलिए कार्य गलत करना निकम्मापन होता है । हानि पहुँचाने के लिए कार्य गलत करना ईर्षा होती है ।
प्रथम बार गलती (mistake) होने पर सर्वोतम है कि गलती करने वाले को अच्छी प्रकार समझाया जाए | ताकि वह भविष्य में गलती करने से बचे तथा उसके मन में किसी प्रकार का आक्रोश उत्पन्न ना हो अथवा हौसले में वृद्धि ना हो सके । ईर्षा या निकम्मेपन में गलती (galti) करना बड़ी गलती है । लालच या अहंकार में गलती करना साधारण गलती है । नासमझी या जल्दबाजी में गलती करना मामूली गलती होती है इसलिए सभी को अलग प्रकार से समझाया जाना ही उचित होता है । नासमझ को समझदारी के लिए प्रेरित करना एवं जल्दबाज को सब्र एवं सहनशीलता से कार्य करने के लिए समझाना उत्तम होता है । लालची एवं अहंकारी को अपने लालच या अहंकार का त्याग करके स्वाभाविक रूप से कार्य के लिए समझाना उत्तम होता है । निकम्मे या ईर्षालू इन्सान को धमकाकर एवं दंड तथा जुर्माने का भय दिखाकर समझाना हो उचित होता है ।
गलती करने वाला सर्वप्रथम अपनी गलती को छुपाने का प्रयास करता है जिसके कारण वह किसी भी प्रकार का झूट बोलने के तत्पर हो जाता है । गलती से बचने के प्रयास में इन्सान और अधिक गलती करता है जिसके कारण गलती में वृद्धि हो जाती है । गलती को छुपाने एवं बचने के कारण इन्सान की मानसिकता में भय उत्पन्न होता है क्योंकि उसे लगता है कि वह जब भी पकड़ा जाएगा उसे दंड मिलेगा तथा अपमान सहन करना पड़ेगा । गलती छुपाना एवं गलती से बचने का प्रयास इन्सान के मन में कायरता उत्पन्न करता है ।
गलती (galti) होने पर यदि इन्सान अपनी गलती मानने एवं गलती का दंड स्वीकार करने का साहस करता है तो उसे अत्यधिक लाभ होता है । गलती (perpetration) स्वीकार करने के साहस के कारण इन्सान गलती को सुधारने का प्रयास करता है जिससे गलती में वृद्धि नहीं होती बल्कि उसमें कमी आती है । जब इन्सान अपनी गलती (perpetration) स्वीकार करता है तब उसे झूट बोलने की आवश्यकता नहीं होती इससे उसकी मानसिकता स्वच्छ रहती है । गलती स्वीकार करने पर गलती को छुपाने एवं उससे बचने से मन में उत्पन्न होने वाला भय एवं कायरता भी समाप्त हो जाते हैं । जब कोई भी इन्सान अपनी गलती को खुद बताकर स्वीकार करता है तो वह सभी की दृष्टि में एक अच्छा इन्सान प्रमाणित हो जाता है । खुद अपनी गलती (perpetration) मानने वाले इन्सान को दंड ना देकर उसकी अच्छाई स्वरूप उससे सहानभूति जताई जाती है तथा उसे गलती सुधारने का अवसर भी प्रदान किया जाता है ।
प्रथम बार गलती (perpetration) करने वाले को समझाना उचित है | परन्तु उसके प्रति सावधानी रखना आवश्यक है | क्योंकि वह दोबारा गलती(galti) करने का प्रयास भी कर सकता है । दोबारा गलती (mistake) करने वाले को क्षमा करना मूर्खता होती है | क्योंकि इन्सान दोबारा गलती जानबूझकर कर करता है । जो इन्सान दोबारा गलती करता है वह या तो मूर्ख एवं ढीट होता है जिसकी मानसिकता गलत हो जाती है अथवा वह कोई धूर्त होता है जो खुद को बुद्धिमान समझकर मूर्ख बनाने का प्रयास करता है । बार-बार गलती करना इन्सान को अपराध के राह पर पहुँचा देता है इसलिए गलती से बचना तथा जो गलती हो जाए उसमें सुधार करना आवश्यक होता है जिससे प्रतिष्ठा सुरक्षित रहती है ।