
परिवार के सदस्यों तथा सम्बन्धियों के अतिरिक्त यदि समाज में किसी बाहरी इन्सान की समीपता का मन पर प्रभाव सुख व शांति प्रदान करे तथा आपसी सहायता करने की इच्छाएँ जाग्रित हों तो ऐसे मानसिक तथा भावनात्मक रिश्ते को समाज ने मित्रता का नाम दिया है । समाज में मित्रता के रिश्ते को सबसे अधिक महत्वपूर्ण एंव महान माना जाता है क्योंकि किसी से मित्रता स्थापित इन्सान अपनी स्वेच्छा से करता है जिस पर किसी प्रकार का प्रभाव अथवा दबाव कार्य नहीं करता तथा किसी की सलाह की आवश्यकता भी नहीं होती । मित्रता में मन मुटाव होने अथवा मित्र द्वारा विश्वासघात करने पर सम्बन्ध विच्छेद की किसी से चर्चा करना भी व्यंग बाणों का शिकार होना है एवं समाज द्वारा किए गए कटाक्षों को सहन करना पड़ता है इसलिए मित्रता के कारणों की समीक्षा करना आवश्यक है ।
मित्रता के दो मुख्य आधार हैं जिनमें प्रथम आधार स्वाभाविक एवं भावनात्मक होता है जिसमें मित्र से किसी भी प्रकार की सहायता की अपेक्षा नहीं होती सिर्फ उसकी समीपता मन को प्रसन्नता प्रदान करती है । प्रथम आधार में तीन प्रकार की मित्रता होती है एक = (प्राकृतिक मित्र) जो बचपन में बिना किसी स्वार्थ के बनाए जाते हैं । दो = (स्वाभाविक मित्र) जिनका स्वभाव एक समान होता है । तीन = (वैचारिक मित्र) जिनके विचार आपस में मेल खाते हों अथवा विचारों से प्रभावित होकर मित्रता करना । दूसरे आधार की मित्रता समय की आवश्यकता के अनुसार होती है जिसमे किसी कारण वश सहायता की आवश्यकता होती है तथा जिस इन्सान द्वारा सहायता करने पर कार्य सफल हो जाए उसे मित्र बना लिया जाता है । दूसरे आधार की मित्रता में दो प्रकार की मित्रता होती है एक = (व्यापारिक मित्र) व्यापार के सम्बन्धों के कारण मित्रता होना जो व्यापार सलामत रहने तक अवश्य चलती है और व्यापार की आवश्यकता के समाप्त होने पर स्वयं समाप्त भी हो जाती है । दो = (स्वार्थी मित्र) किसी स्वार्थ की पूर्ति हेतु मित्रता करना तथा स्वार्थ पूर्ण होते ही ऐसे मित्र सदैव स्वयं ही नदारद हो जाते हैं । इन दोनों आधारों के अतिरिक्त जो भी मित्रता होती है वह धोखा देने के लिए करी जाती है जिसमें मित्रता के नाम पर धोखा करने का प्रयास किया जाता है ।
प्रथम आधार की मित्रता इन्सान की साफ़ व स्वच्छ मानसिकता एंव भावनाओं का प्रमाण है जिसमें किसी भी प्रकार का स्वार्थ नहीं होता सिर्फ मित्र के प्रति सहानभूति तथा उसकी सहायता व बलिदान की भावना होती है । ऐसी मित्रता प्राक्रतिक आकर्षण, स्वाभाविक आकर्षण विचारों के आकर्षण के कारण होती है ऐसी निस्वार्थ मित्रता संसार में अत्यंत महान रिश्ता माना जाता है ऐसे मित्र आर्थिक सहायता करने में सक्षम ना हों परन्तु उचित मार्गदर्शन एवं सलाह देना व आवश्यकता होने पर तन मन से मित्र की सेवा करना अपना कर्तव्य समझते हैं । निस्वार्थ मित्र उत्सव पर ना आए परन्तु कष्ट के समय अवश्य पधार कर भरसक सहायता करते हैं इसलिए निस्वार्थ मित्रता को सदा वेश कीमती रत्नों की तरह सभाल कर उपयोग करना आवश्यक है ।
वर्तमान समय में अधिकतर दूसरे आधार की मित्रता समाज में प्रचिलित है क्योंकि वर्तमान में इन्सान के जीवन में समस्याओं के अम्बार लगे हुए हैं जिनका समाधान किसी की सहायता के बगैर करना अत्यंत कठिन हो गया है । दूसरे आधार की मित्रता में किसी प्रकार की सहायता पाने की भावना होना कोई आश्चर्यजनक कार्य नहीं है क्योंकि समाज के अधिकतर कार्य आपसी सहयोग पर ही निर्भर करते हैं जिसमें मित्र से सहायता की अपेक्षा करना स्वभाविक है । आपसी सहयोग पर आधारित मित्रता में सीमित सहायता माँगना अथवा सीमित सहायता करना ही मित्रता को बनाए रखता है यदि मित्र पर अतिरिक्त बोझ डाला जाए तो मित्रता का संतुलन डगमगा जाता है तथा सम्बन्ध विच्छेद हो जाते हैं ।
समाज में इन्सान की जीवन निर्वाह की बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इन्सान को अत्यधिक स्वार्थी बना दिया है एवं स्वार्थ वश विश्वासघात करने की घटनाओं में आश्चर्यजनक बढ़ोतरी हो रही है । स्वार्थ वश किसी के मित्र बन कर उसे लूटना तथा मित्र की हत्या तक करने की घटना को अंजाम देना ऐसे कार्यों के होते मित्र पर विश्वास करना तो उचित है परन्तु अन्धविश्वास करना खुद को समस्या में डालना है । चापलूस प्रवृति के मित्र से सदा सावधान रहना ही उचित है क्योंकि चापलूस सदा लालची एंव स्वार्थी होते हैं जो किसी की भी झूटी प्रशंसा करते हैं क्योंकि सत्य सदा कटु होता है तथा सत्यवादी किसी की प्रशंसा नहीं करते बल्कि उसकी गलतियों की आलोचना करते हैं । सच्चे मित्र आलोचना करके सच्चाई से अवगत कराते हैं तथा मार्गदर्शन करते हैं चापलूसी नहीं करते ।
चोर, ठग, बलात्कारी, धूर्त व असमाजिक तत्व कभी किसी का मित्र नहीं होता वह सिर्फ मौका परस्त स्वार्थी होता है तथा बुरी दृष्टि वाला, पतित, आचारहीन, बुरे स्थान का निवासी, दुष्ट व दुर्जन सदा दुःख का कारण ही बनते हैं ऐसे इन्सान की मित्रता किस समय कष्टदायक बन जाए तथा किस प्रकार की विपत्ति टूट पड़े यह निर्धारित नहीं होता । जो इन्सान मित्रता में झूट का सहारा लेते हैं ऐसे इन्सान की बात पर विश्वास करना मूर्खता होती है क्योंकि जो इन्सान एक बार झूट बोल सकता है वह दोबारा झूट नहीं बोलेगा इसका कोई प्रमाण नहीं है । अनैतिक स्वभाव का इन्सान सदा बुरे कर्मों को प्राथमिकता देता है ऐसे इन्सान की मित्रता से बचना ही उचित होता है ।
मित्र कितना ही प्रिय क्यों ना हो उसपर जीवन के उन रहस्यों को उजागर करना अनुचित होता है जिनके प्रत्यक्ष होने से समाज में सम्मान की हानि हो सकती हो क्योंकि कभी मित्र से मन मुटाव हो जाए अथवा मित्र के मन में स्वार्थ जाग जाए तो वह रहस्यों के बल पर नुकसान पहुंचा सकता है तथा समाज में रहस्यों को उजागर करके जीबन बर्बाद कर सकता है । जीवन में कितना भी प्रिय मित्र हो उस पर अंधविश्वास करना बहुत बुरा एवं मूर्खता पूर्ण कार्य है क्योंकि अंधविश्वास से ही विश्वासघात का रास्ता आरम्भ होता है ।