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आधुनिकता

August 23, 2014 By Amit 6 Comments

प्राचीन परम्पराओं तथा रूढ़िवादिता का त्याग करके वर्तमान समय में उत्पन्न संसाधन एंव जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक शैली व विचार धाराओं पर आधारित जीवन शैली अपनाना आधुनिकता कहलाता है । विश्व के विकसित देशों की आधुनिक चकाचोंध से आकर्षित होकर भारतीय भी उनकी जीवन शैली को अपना कर अपने आप को आधुनिकता की दौड़ में शामिल करके आधुनिक दर्शाना चाहते हैं । किसी कार्य के होने अथवा कह देने में बहुत अंतर होता है इसलिए भारत वासियों की आधुनिकता की शैली कितनी सफल हो पायी है इसका आकलन करने पर ही समझा जा सकता है ।

सर्व प्रथम भारतियों द्वारा विदेशी वेशभूषा को अपनाया गया जिसे अपनाने से पूर्व भारतीय समाज में सूती व शालीन वस्त्रों का प्रचलन था । पुरुष हल्के व ढीले वस्त्र धारण करते थे तथा स्त्री समस्त शरीर को ढापने वाले सूती व आकर्षक वस्त्र धारण करती थी । विदेशी वेशभूषा शैली अपनाने के उपरांत पुरुष समस्त शरीर पर जकड़े हुए वस्त्रों को पहनता है तथा स्त्री ढीले एंव छोटे वस्त्र पहनना पसंद करती है । आधुनिक स्त्रीयों के वस्त्रों की लम्बाई  समय के साथ कम होती जा रही है एवं उसमें आधुनिकता की पूर्ण झलक प्राप्त होती है । आधुनिक वस्त्र कितने रसायनों द्वारा निर्मित हैं तथा उनका स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होगा यह सोचकर आधुनिकता का अपमान करना आधुनिक भारतीय गवारा नहीं करते ।

भोजन बनाने की समस्या से छुटकारा पाने के लिए भारतियों द्वारा विदेशी पद्धति अपनाई गई जिसमे फास्टफूड व जंकफ़ूड कहलाने वाली अनेकों प्रकार की खाने की वस्तुएं तथा तरह तरह के पेय पदार्थों का सेवन करना दैनिक कार्य होता जा रहा है । फास्टफूड व जंकफ़ूड तथा पेय पदार्थों के निरंतर सेवन से अनेकों प्रकार की आधुनिक बीमारियाँ भारतीय समाज में तेजी से फ़ैल रही हैं जिसके कारण चिकित्सालयों में होने वाली भीड़ भारतीय आधुनिकता का प्रमाण प्रस्तुत करती है । अपनी आधुनिकता दर्शाने की होड़ में मातृभाषा का त्याग कर अंग्रेजी भाषा को अपनाया गया जिसके कारण भारतीय सभ्यता व संस्कृति पूर्णतया घायल अवस्था में साँस ले रही हैं क्योंकि जो आदर सम्मान व प्रेम प्रदर्शित मातृभाषा द्वारा किया जा सकता है वह अंग्रेजी जैसी अवैज्ञानिक भाषा से प्राप्त नहीं होता । अपनी पहचान खोती जा रही भारतीय सभ्यता व संस्कृति का सर्वनाश करने पर उतारू यह आधुनिकता का दम भरने वाला समाज अपनी पहचान कितनी रख पाएगा यह असंभव सा प्रश्न है क्योंकि इन्सान की असली पहचान उसकी सभ्यता व संस्कृति होती है ।

वर्तमान समय में आधुनिक उपकरणों का पूर्णतया उपयोग भारतीय समाज द्वारा किया जाता है परन्तु आधुनिकता का प्रदर्शन करने वाले खोखले इन्सान अपनी संकीर्ण मानसिकता से आगे नहीं सोच पाते । आधुनिक कहलाने वाला समाज वर्तमान में भी हजारों वर्ष पुरानी रुढ़िवादी प्रथाओं से आगे नहीं बढ़ सका है विवाह जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी रूढ़िवादिता की हजारों वर्ष पुरानी प्रथाएँ चल रही हैं दहेज एंव शगुन जैसी प्रथाएँ इसका प्रमाण है जिसके कारण बेटी को जन्म से पूर्व गर्भ में ही मार दिया जाता है किसी विवाह या उत्सव के मौखिक निमन्त्रण को अस्वीकार करके लिखित निमन्त्रण पत्र द्वारा ही स्वीकार किया जाना निमन्त्रण देने वाले के वाक्यों पर अविश्वास प्रकट करना है । फोन पर वार्तालाप व निमन्त्रण देने के उपरांत भी लिखित निमन्त्रण पत्र भेजने पर ही निमन्त्रण स्वीकार किया जाता है अन्यथा अपने सम्मान का प्रश्न बताकर आने की मनाही कर दी जाती है जिससे प्रमाणित होता है कि भारतीय समाज में इन्सान के वाक्यों का क्या मूल्य है ।

आधुनिक भारत की संकीर्ण मानसिकता की सबसे बड़ी पहचान यह है कि कोई भी भारत वासी अपनी पहचान प्रस्तुत करते समय खुद को भारतीय नहीं कहता तथा किसी दूसरे इन्सान के भारतीय कहने पर भी उसकी असली पहचान प्रकट करने का प्रश्न करता है । भारत वासी इन्सान को इन्सान के रूप में न पहचान कर जाति व धर्म के आधार पर उसकी पहचान करते हैं इसके अतिरिक्त भारतीय की पहचान उसके प्रदेश व शहर के आधार पर भी करी जाती है । भारत वासी भारत में भारतीय ना होकर बंगाली, पंजाबी, मराठी, तमिल, बिहारी, राजस्थानी, कश्मीरी, हिमाचली, गढवाली, गुजराती वगैरह नामों से पहचाने जाते हैं अपने प्रदेश में शहरों के आधार पर व शहर में जाति व धर्म के आधार पर पहचान होती है यह भारतियों की आधुनिकता का प्रमाण पत्र है ।

आधुनिकता के ऐसे अनेकों तथ्य हैं जिनके प्रमाणित करने पर सभी खोखले ही दिखाई देते हैं आधुनिकता कोई भोजन, वस्त्र, वस्तु या उपकरण नहीं है । आधुनिकता इन्सान की मानसिकता है जिसमे इन्सान को इन्सान के रूप में देखा जाता है तथा उसके द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर ही उसको सम्मान प्रदान किया जाता है । किसी की जाति, धर्म, भाषा अथवा उसके रहने के स्थान पर कटाक्ष करने वाला खुद को ईश्वरीय प्रतिनिधि समझता है जो संसार उसकी सोच के आधार पर कार्य करेगा । किसी पर कटाक्ष करने से पूर्व अपनी औकात समझना भी आवश्यक है क्योंकि इन्सान संसार में सिर्फ अपने स्वभाव, व्यहवार, आचरण तथा कर्मों के द्वारा ही पहचाना जाता है एवं जिसने अपनी औकात पहचान ली वह असली आधुनिक इन्सान होता है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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