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June 4, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

सुविचार

मर्यादा

April 17, 2016 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार 3 Comments

जीवन निर्वाह के नियमों को संतुलन में रखने वाली निर्धारित सीमा रेखा को मर्यादा कहा जाता है । जीवन निर्वाह के सभी विषयों एवं सम्बन्धों के नियम निर्धारित होते हैं ताकि इन्सान का जीवन सुचारू रूप से गतिमान रहे तथा उन नियमों के द्वारा जीवन का संतुलन बनाए रखने के लिए सीमा तय होती है ताकि जीवन में किसी प्रकार का असंतुलन ना हो ऐसे नियमों की निर्धारित रेखा को ही मर्यादा कहा गया है । मर्यादा पालन करना इन्सान के लिए अनिवार्य है क्योंकि मर्यादा भंग होने अर्थात सीमा रेखा को लांघकर नियमों की अनदेखी करने से इन्सान के जीवन में अनेकों प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं जिसके कारण जीवन निर्वाह अत्यंत कठिन हो जाता है । जो इन्सान मर्यादा को भलीभांति समझते हैं तथा पालन करते हैं उनके जीवन से समस्याएँ दूर रहती हैं तथा उनका जीवन आनन्द पूर्वक निर्वाह होता है ।

इन्सान को सर्वप्रथम अपनी मर्यादाएं समझना आवश्यक है क्योंकि एक पूर्ण मर्यादित इन्सान ही परिवार एवं समाज में सम्मानित जीवन निर्वाह करता है । इन्सान की मर्यादा स्वभाव, व्यवहार एवं आचरण पर निर्भर करती है । इन्सान का स्वभाव भाषा, शब्दों एवं वाणी द्वारा समझा जाता है । सरल भाषा, कर्ण प्रिय शब्द तथा मधुर वाणी इन्सान के स्वभाव की मर्यादा है जिसे लांघने से इन्सान कटु स्वभाविक समझा जाता है । दूसरों का सम्मान करने वाला समाज में व्यवहारिक माना जाता है । अधिक बहस करना, आलोचनाएँ या चापलूसी करना, प्रताड़ित करना, बकवास करना अथवा बात – बात पर टोकना व्यवहार की मर्यादा भंग करना है जो समाज में इन्सान को अव्यवहारिक प्रमाणित करती है । आचरण की मर्यादा इन्सान के अपराधी होने से ही भंग नहीं होती अपितु झूट बोलने, बुराई का साथ देने, उधर लेकर ना चुकाने, बहाने बनाने, आवश्यकता पड़ने पर गायब होने, नशा करने, जुआ, सट्टा जैसे अनुचित कार्य करने जैसे अनेकों कारण भी खराब आचरण प्रस्तुत करते हैं ।

इन्सान के जीवन में परिवार की मर्यादा बनाए रखना अत्यंत आवश्यक होता है । परिवार से जितना अधिकार प्राप्ति का होता है उतना कर्तव्य परिवार को प्रदान करने का भी होता है । परिवार द्वारा शिक्षा, परवरिश, गृहस्थ जीवन एवं सुरक्षा प्राप्त होती है तो परिवार की सेवा तथा सुखों का ध्यान रखना भी इन्सान का कर्तव्य है । कोई भी ऐसा कार्य जिससे परिवार के सम्मान में हानि पहुँचे परिवार की मर्यादा भंग करना होता है जिसके कारण परिवार उसे दोषी समझता है । इन्सान की परिवार के प्रति कर्तव्य परायणता एवं सम्मान में वृद्धि आवश्यक मर्यादा है जिसे पूर्ण करने पर ही परिवार में सम्मान प्राप्त होता है ।

रिश्तों एवं सम्बन्धों की मर्यादा निभाने पर ही रिश्ते कायम रहते हैं । रिश्तों को समय ना देना अथवा रिश्तों पर आवश्यकता से अधिक समय बर्बाद करना रिश्तों को खोखला करना है इसलिए रिश्तों की मर्यादा बनाए रखना आवश्यक होता है । रिश्ता कितना भी प्रिय हो निजी कार्यों में दखल देना रिश्ते की मर्यादा भंग करना है क्योंकि इन्सान के निजी एवं गुप्त कार्यों में बिना अनुमति किर्याशील होना दखल समझा जाता है तथा समाज ने किसी को भी किसी के जीवन में अनुचित दखल देने की अनुमति नहीं दी है । रिश्ते बुरे समय में सर्वाधिक सहायक होते हैं परन्तु नित्य रिश्तों से सहायता की आशा रखना भी रिश्तों की मर्यादा भंग करना है क्योंकि रिश्ते सहायक अवश्य हैं उन्हें व्यापार बनाने से उनका अंत निश्चित होता है ।

इन्सान के परिवारिक सम्बन्धों के अतिरिक्त समाज में सबसे प्रिय सम्बन्ध मित्रता का होता है जो कभी – कभी परिवारिक रिश्तों से भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है । मित्रता वैचारिक सम्बन्ध है अर्थात जिससे विचार मिलते हैं इन्सान उसे मित्र बना लेता है । मित्र कितना भी प्रिय हो यदि वह मर्यादा लांघने की धृष्टता करता है तो सम्बन्ध विच्छेद हो जाते हैं । मित्रता में आयु, शिक्षा एवं धन की समानता आवश्यक नहीं होती सिर्फ विचार समान होने पर ही मित्रता कायम रह सकती है । मित्र का अधिक समय नष्ट करना, बार–बार व असमय घर जाना, निजी जीवन में दखल देना, नित्य सहायता की अपेक्षा करना, अनावश्यक खर्च करवाना, अनुचित शब्दों का उपयोग करना, अधिक परिहास करना जैसे कार्य मित्रता की मर्यादा भंग करते हैं जिसके कारण मित्रता में कटुता उत्पन्न हो जाती है । सम्बन्ध कितना भी प्रिय हो मर्यादाओं का पालन ही उसे सुरक्षित रख सकता है ।

इंसानों की तरह विषयों की भी अपनी मर्यादाएं होती हैं जिनका पालन करने से जीवन निर्वाह सरल एवं आनन्दमय हो जाता है । इन्सान के जीवन में सबसे अधिक प्रभाव विश्वास का होता है क्योंकि विश्वास के बगैर किसी भी इन्सान से सम्बन्ध या कार्य असंभव हो जाता है । विश्वास के कारण ही धोखे का आरम्भ है तथा अन्धविश्वास हो तो धोखा निश्चित होता है इसलिए विश्वास की मर्यादा सावधानी पूर्वक विश्वास करना है सावधानी की मर्यादा लांघते ही विश्वास का विश्वासघात बन जाता है । इन्सान का शक करना जब तक मर्यादा में होता है वह इन्सान को सतर्क रखता है परन्तु मर्यादा लांघते ही शक सनक बन जाता है जो प्रेम, विश्वास, श्रद्धा का अंत कर देता है ।

मोह, लोभ, काम, क्रोध, अहंकार, ईर्षा, घृणा, कुंठा, निराशा, आक्रोश, प्रेम, श्रद्धा, शक, विश्वास, ईमानदारी, परोपकार, दान, भीख, चंदा, स्वार्थ, चापलूसी, आलोचना, बहस, तर्क, कोई भी विषय हो जब तक मर्यादा में रहता है कभी हानिप्रद नहीं होता परन्तु मर्यादा भंग होते ही समस्या अथवा मुसीबत बन जाता है । अग्नि, जल एवं वायु संसार को जीवन प्रदान करते हैं परन्तु अपनी मर्यादा लांघते ही प्रलयंकारी बन जाते हैं जिसका परिणाम सिर्फ तबाही होता है । इन्सान जब तक मर्यादाओं का पालन करता है वह सुखी एवं संतुलित जीवन निर्वाह करता है । किसी भी प्रकार की मर्यादा भंग करने से किसी ना किसी इन्सान से द्वेष आरम्भ हो जाता है तथा समस्याएँ उत्पन्न होना आरम्भ हो जाती हैं ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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