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संयम – sanyam

April 6, 2020 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

किसी भी विकट परिस्थिति से निपटने के लिए जब इन्सान अपनी मानसिकता पर नियन्त्रण रखते हुए शांत होकर एवं विचार करके समाधान करने का प्रयास करता है तो वह उसका संयम (sanyam) होता है | संयम (sanyam) इन्सान की सबसे श्रेष्ठ मानसिक उपलब्धी होती है | जिसे उसका विशेष गुण भी कहा जा सकता है | किसी भी विषम परिस्थिति में इन्सान भयभीत हो जाता है या वह क्रोधित होता है | भय मानसिक कष्ट प्रदान करता है तो क्रोध से मानसिक क्षति होती है | समस्या का संयम से निवारण करना सबसे श्रेष्ठ है | क्योंकि इससे इन्सान की मानसिकता, सबंध, सम्मान सभी सुरक्षित रहते हैं | संयम (control) की पूर्ण कार्य शैली एवं प्रणाली को समझने से इसका लाभ प्रप्त करके जीवन को सरल एवं श्रेष्ठ बनाया जा सकता है |

लोभ सभी इंसानों की मानसिक अभिलाषा में होता है परन्तु जब तक प्रकट नहीं होता उसके सबंध सुरक्षित रहते हैं | किसी इन्सान की अपने प्रति लोभ की अभिलाषा प्रकट होते ही आपसी सबंध कटुता पूर्ण बन जाते हैं | अहंकार सबंध नाशक है परन्तु जब तक किसी का अहंकार स्पष्ट नहीं होता सबंध सुरक्षित रहते हैं | जब किसी का अहंकार स्पष्ट होता है एवं प्रकट होने से पता चलता है कि वह इन्सान खुद को श्रेष्ठ एवं हमें तुच्छ समझता है तो सबंध समाप्त होना स्वाभाविक है |

ईर्षा. घृणा, द्वेष, शक, शत्रुता जैसी विकृत मानसिकता जब तक गुप्त रहती हैं इन्सान का सबंध एवं सम्मान भी सुरक्षित रहता है | किसी भी प्रकार की विकार पूर्ण मानसिकता की स्पष्टता इन्सान के लिए बहुत हानिकारक होती है | किसी भी मानसिकता का प्रकट होने का मुख्य कारण उत्तेजित होकर बोलना है वह इन्सान सदैव आक्रोश, क्रोध अथवा जल्दबाजी में स्पष्ट करता है | संयम से विचार करके बोलने वाले इन्सान की मानसिकता का अनुमान लगाना भी लगभग असंभव होता है कि वह हमारे विषय में किस प्रकार के विचार अपनी मानसिकता में रखता है |

किसी से वार्तालाप करते समय इन्सान उत्साह में बकवास आरम्भ कर देता है अथवा बहस करना आरम्भ कर देता है तो उसकी बकवास या बहस उसके सबंधों को खोखला कर देती है | किसी की आलोचना करने पर अन्य इंसानों के मध्य भी इन्सान की छवि धूमिल होती है एवं उसका व्यक्तित्व आलोचक के रूप में स्पष्ट होता है | अधिक कटाक्ष या तानाकशी करना इन्सान की ईर्षालू एवं झगड़ालू प्रवृति की छवि प्रस्तुत करते हैं | बहस, बकवास, आलोचना, तानाकशी हो या अधिक हास्य सभी इन्सान के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं इसीलिए लाभ सदैव संयम रखने में ही होता है |

इन्सान वार्तालाप करते समय खुद को जितना अधिक संयमित रखता है वह उतना ही अधिक श्रेष्ठ समझा जाता है क्योंकि संयम से वार्तालाप करने में इन्सान किसी प्रकार की गलती नहीं करता जिसके कारण उसे श्रेष्ठता प्राप्त होती है | संयम समाप्त होते ही इन्सान की मानसिकता में उत्तेजना उत्पन्न होने लगती है जिसके परिणाम स्वरूप वह किसी ना किसी प्रकार की गलती अवश्य करता है जो उसके लिए हानिकारक भी अवश्य बनती है | इन्सान जितना अधिक उत्तेजित होता है वह उतना ही शीघ्र अपनी मानसिकता स्पष्ट कर देता है |

क्रोध अग्नि की तरह नाशक है जैसे अग्नि की ज्वाला में सब कुछ जल कर भष्म हो जाता है इसी प्रकार क्रोध की ज्वाला दूसरों के साथ अपना व्यक्तित्व भी जला कर राख कर देती है | अग्नि कितनी भी बलवान हो जल उसे शांत कर देता है इसी प्रकार क्रोध को भी संयम से ही शांत किया जा सकता है | क्रोध, आक्रोश या उत्तेजना में बोलते समय इन्सान का विवेक कार्य करना बंद कर देता है जिसके कारण वह अनेक प्रकार की गलतियाँ कर देता है | संयम द्वारा कार्य लेते समय इन्सान का विवेक पूर्ण सक्रिय होता है जिसके कारण वह किसी भी समस्या का सरलता से समाधान कर सकता है |

संयम (sanyam) द्वारा कार्य लेने से इन्सान की मानसिकता प्रबल रहती है तथा उसके सबंध भी सुरक्षित रहते हैं | संयम से कार्य करने वाले इन्सान का सम्मान भी सुरक्षित रहता है जिसके कारण उसे अपने सबंधों से सहायता एवं सहयोग सरलता से प्राप्त हो जाता है | संयम रखने वाले इन्सान के साथ सभी इन्सान उससे सबंध रखना एवं उसके साथ कार्य करना पसंद करते हैं इसीलिए उन्नति सदैव उसके आस-पास रहती है | संयम द्वारा सफलता भी सरलता से प्राप्त हो जाती है इसलिए क्रोध करके खुद को हानि पंहुचाना मूर्खता का कार्य है |

नियन्त्रण

April 2, 2018 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

जब हम किसी भी वस्तु, विषय, प्राणी, तन्त्र, किसी अन्य इन्सान अथवा खुद को अपनी इच्छानुसार संचालित करने की क्षमता रखते हैं अर्थात अपनी इच्छा से कार्य करवा सकते हैं तो वह संचालन हमारा नियन्त्रण कहलाता है | नियन्त्रण इन्सान के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि नियन्त्रण द्वारा इच्छानुसार कार्य करवा कर ही सफलता प्राप्त करी जा सकती है | नियन्त्रण के बगैर सदैव बिखराव उत्पन्न होता है यदि नियन्त्रण ना हो तो इन्सान का जीवन भी बिखर कर रह जाता है  नियन्त्रण खुद पर, परिवार, समाज, सम्बन्ध, धर्म, कर्म वगैरह सभी के लिए आवश्यक है | नियन्त्रण का महत्व समझकर तथा किसी भी वस्तु, विषय, तन्त्र, प्राणी, अन्य इन्सान अथवा खुद को नियंत्रित करके क्षमता का सर्वश्रेष्ठ कार्य सफलता पूर्वक करवाकर लाभ अथवा कामयाबी सरलता से प्राप्त करी जा सकती है |

आदिकाल से इन्सान जब जंगली से सामाजिक बना तब से ही इंसानों को नियंत्रित करने के नियम बनाकर समाज की स्थापना संभव हो सकी | वर्तमान समय में भी इन्सान, परिवार, समाज, देश सभी को नियंत्रित करने के नियम निर्धारित हैं जिसके कारण इन्सान सामाजिक जीवन निर्वाह कर रहा है | इन्सान के खुद के लिए बनाए गए नियम सिद्धांत कहलाते हैं जिनका पालन करके सिद्धांतवादी इन्सान समाज में सभ्य एवं सम्मानित समझा जाता है | समाज द्वारा इन्सान को नियन्त्रण में रखने के नियम कर्तव्य कहलाते हैं जिनसे इन्सान नियंत्रित एवं अनुशासित रहता है | इन्सान की जीवन शैली के लिए निर्धारित नियम धर्म कहलाते हैं जिनके कारण इन्सान समाज में संगठित रहता है | सम्पूर्ण समाज को नियन्त्रण में रखने के निर्धारित नियम कानून कहलाते हैं जिनके कारण इन्सान समाज में नियंत्रित एवं अनुशासित रहता है | सम्पूर्ण देश को नियन्त्रण में रखने के निर्धारित नियम संविधान हैं जो देश को नियन्त्रण में रखकर संचालित करते हैं |

इन्सान को सफल व सम्मानित जीवन निर्वाह के लिए सर्वप्रथम अपना मानसिक नियन्त्रण आवश्यक है जिसके लिए बुद्धि प्रबल करना, विवेक जागरूक करना व मन स्थिर करना अनिवार्य है | स्मरण शक्ति विस्तृत करने का प्रयास तथा भावनाएं एवं कल्पनाएँ नियन्त्रण में रखना और इच्छाशक्ति को दृढ़ बनाना भी आवश्यक है | प्रबल बुद्धि, विस्तृत स्मरण शक्ति, जागरूक विवेक, स्थिर मन, नियंत्रित भावनाएँ एवं कल्पनाएँ तथा दृढ़ इच्छाशक्ति सर्वश्रेष्ठ नियंत्रित मनसिकता होती है जिसके बल पर किसी भी प्रकार का कार्य सरलता से सफल किया जा सकता है | इन्सान जब भी असफल होता है उसका कारण मन की चंचलता, बुद्धिहीनता, सुप्त विवेक, अल्प स्मरण शक्ति, भ्रमित भावनाएँ एवं कल्पनाएँ अथवा कमजोर इच्छाशक्ति जैसी किसी भी प्रकार की अनियंत्रित मानसिकता अवश्य होती है |

इन्सान अपने दृष्टिकोण में खुद को श्रेष्ठ समझता है तथा अपनी असफलताओं का दोषी सदैव दूसरों को अथवा अपनी किस्मत को समझता है जबकि वह खुद दोषी होता है | सफल जीवन तथा कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए इन्सान को सर्वप्रथम खुद पर नियन्त्रण करना आवश्यक है | सर्वप्रथम अपने व्यवहार पर नियन्त्रण करना आवश्यक है ताकि दूसरों को प्रभावित करके उनसे अपने कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न करवाने में हमारा व्यवहार अपनी श्रेष्ठ भूमिका अदा कर सके | स्वभाव पर नियन्त्रण रखना भी अत्यंत आवश्यक है ताकि किसी प्रकार की अनुचित अथवा त्रुटिपूर्ण आदत आपसी मतभेद उत्पन्न ना कर सके | आलोचना अथवा बहस करते समय इन्सान भूल जाता है कि उसका यह व्यवहार ही मतभेद उत्पन्न करके उसे बर्बादी की तरफ अग्रसर कर रहा है |

मानसिकता, व्यवहार एवं स्वभाव की तरह शरीर एवं अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखना भी आवश्यक है | अस्वस्थ अथवा आलस्य युक्त शरीर कभी पूर्ण सक्षम नहीं होता जिसके कारण इन्सान सदैव असफल अथवा पिछड़ा हुआ रहता है | इन्सान की इन्द्रियां यदि अनियंत्रित हों तो वह सदैव उनकी तृप्ति करने के प्रयास में लिप्त रहता है जिसके कारण उसका समय एवं धन बर्बाद होता रहता है जो कि हानिकारक है | इन्सान द्वारा अपनी जिव्हा पर नियन्त्रण यदि स्वाद पर है तो शरीर स्वस्थ रहता है तथा बोलने पर नियन्त्रण है तो सम्बन्ध स्वस्थ रहते हैं | आँखें मन का दर्पण हैं जिनकी चंचलता से इन्सान के काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे विकार स्पष्ट झलकते हैं इसलिए आँखों की चंचलता पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है | गाने या चुटकुले सुनने की धुन में समय बर्बाद करना मूर्खों का कार्य है क्योंकि यह छोटी-छोटी त्रुटियाँ असफलताओं का कारण बन जाती हैं |

अपनों किस्मत को दोष देने वाला इन्सान कभी अपनी मानसिकता पर ध्यान देना भी आवश्यक नहीं समझता | दूसरों की आलोचनाएँ करने या सुनने में समय व्यतीत करना, बहस करना, कटाक्ष करना, तानाकशी करना, व्यंग करना कुछ ऐसी अनियंत्रित मानसिकताएं हैं जो इन्सान के समय एवं सम्बन्धों को प्रभावित अवश्य करती हैं | समय की बर्बादी पर इन्सान का नियन्त्रण ना हो तो समय के कारण ही इन्सान बर्बाद हो जाता है क्योंकि जो इन्सान समय का सम्मान नहीं करता समय भी उसका सम्मान कायम नहीं रख पाता | वाहन नियन्त्रण में ना हो तो दुर्घटना ग्रस्त हो जाता है इसी प्रकार जीवन नियन्त्रण में ना होने से समस्या ग्रस्त हो जाता है | जीवन में जिस भी वस्तु, विषय, तंत्र, प्राणी, कोई अन्य इन्सान अथवा अपनी शारीरिक या मानसिक शक्ति से कार्य लेना हो सर्वप्रथम उसे नियन्त्रण में लेना आवश्यक है क्योंकि नियन्त्रण में होने से ही वह कार्य कर सकती है अन्यथा उसका लाभ अन्य इन्सान उठा लेते हैं |

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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