किसी भी विकट परिस्थिति से निपटने के लिए जब इन्सान अपनी मानसिकता पर नियन्त्रण रखते हुए शांत होकर एवं विचार करके समाधान करने का प्रयास करता है तो वह उसका संयम (sanyam) होता है | संयम (sanyam) इन्सान की सबसे श्रेष्ठ मानसिक उपलब्धी होती है | जिसे उसका विशेष गुण भी कहा जा सकता है | किसी भी विषम परिस्थिति में इन्सान भयभीत हो जाता है या वह क्रोधित होता है | भय मानसिक कष्ट प्रदान करता है तो क्रोध से मानसिक क्षति होती है | समस्या का संयम से निवारण करना सबसे श्रेष्ठ है | क्योंकि इससे इन्सान की मानसिकता, सबंध, सम्मान सभी सुरक्षित रहते हैं | संयम (control) की पूर्ण कार्य शैली एवं प्रणाली को समझने से इसका लाभ प्रप्त करके जीवन को सरल एवं श्रेष्ठ बनाया जा सकता है |
लोभ सभी इंसानों की मानसिक अभिलाषा में होता है परन्तु जब तक प्रकट नहीं होता उसके सबंध सुरक्षित रहते हैं | किसी इन्सान की अपने प्रति लोभ की अभिलाषा प्रकट होते ही आपसी सबंध कटुता पूर्ण बन जाते हैं | अहंकार सबंध नाशक है परन्तु जब तक किसी का अहंकार स्पष्ट नहीं होता सबंध सुरक्षित रहते हैं | जब किसी का अहंकार स्पष्ट होता है एवं प्रकट होने से पता चलता है कि वह इन्सान खुद को श्रेष्ठ एवं हमें तुच्छ समझता है तो सबंध समाप्त होना स्वाभाविक है |
ईर्षा. घृणा, द्वेष, शक, शत्रुता जैसी विकृत मानसिकता जब तक गुप्त रहती हैं इन्सान का सबंध एवं सम्मान भी सुरक्षित रहता है | किसी भी प्रकार की विकार पूर्ण मानसिकता की स्पष्टता इन्सान के लिए बहुत हानिकारक होती है | किसी भी मानसिकता का प्रकट होने का मुख्य कारण उत्तेजित होकर बोलना है वह इन्सान सदैव आक्रोश, क्रोध अथवा जल्दबाजी में स्पष्ट करता है | संयम से विचार करके बोलने वाले इन्सान की मानसिकता का अनुमान लगाना भी लगभग असंभव होता है कि वह हमारे विषय में किस प्रकार के विचार अपनी मानसिकता में रखता है |
किसी से वार्तालाप करते समय इन्सान उत्साह में बकवास आरम्भ कर देता है अथवा बहस करना आरम्भ कर देता है तो उसकी बकवास या बहस उसके सबंधों को खोखला कर देती है | किसी की आलोचना करने पर अन्य इंसानों के मध्य भी इन्सान की छवि धूमिल होती है एवं उसका व्यक्तित्व आलोचक के रूप में स्पष्ट होता है | अधिक कटाक्ष या तानाकशी करना इन्सान की ईर्षालू एवं झगड़ालू प्रवृति की छवि प्रस्तुत करते हैं | बहस, बकवास, आलोचना, तानाकशी हो या अधिक हास्य सभी इन्सान के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं इसीलिए लाभ सदैव संयम रखने में ही होता है |
इन्सान वार्तालाप करते समय खुद को जितना अधिक संयमित रखता है वह उतना ही अधिक श्रेष्ठ समझा जाता है क्योंकि संयम से वार्तालाप करने में इन्सान किसी प्रकार की गलती नहीं करता जिसके कारण उसे श्रेष्ठता प्राप्त होती है | संयम समाप्त होते ही इन्सान की मानसिकता में उत्तेजना उत्पन्न होने लगती है जिसके परिणाम स्वरूप वह किसी ना किसी प्रकार की गलती अवश्य करता है जो उसके लिए हानिकारक भी अवश्य बनती है | इन्सान जितना अधिक उत्तेजित होता है वह उतना ही शीघ्र अपनी मानसिकता स्पष्ट कर देता है |
क्रोध अग्नि की तरह नाशक है जैसे अग्नि की ज्वाला में सब कुछ जल कर भष्म हो जाता है इसी प्रकार क्रोध की ज्वाला दूसरों के साथ अपना व्यक्तित्व भी जला कर राख कर देती है | अग्नि कितनी भी बलवान हो जल उसे शांत कर देता है इसी प्रकार क्रोध को भी संयम से ही शांत किया जा सकता है | क्रोध, आक्रोश या उत्तेजना में बोलते समय इन्सान का विवेक कार्य करना बंद कर देता है जिसके कारण वह अनेक प्रकार की गलतियाँ कर देता है | संयम द्वारा कार्य लेते समय इन्सान का विवेक पूर्ण सक्रिय होता है जिसके कारण वह किसी भी समस्या का सरलता से समाधान कर सकता है |
संयम (sanyam) द्वारा कार्य लेने से इन्सान की मानसिकता प्रबल रहती है तथा उसके सबंध भी सुरक्षित रहते हैं | संयम से कार्य करने वाले इन्सान का सम्मान भी सुरक्षित रहता है जिसके कारण उसे अपने सबंधों से सहायता एवं सहयोग सरलता से प्राप्त हो जाता है | संयम रखने वाले इन्सान के साथ सभी इन्सान उससे सबंध रखना एवं उसके साथ कार्य करना पसंद करते हैं इसीलिए उन्नति सदैव उसके आस-पास रहती है | संयम द्वारा सफलता भी सरलता से प्राप्त हो जाती है इसलिए क्रोध करके खुद को हानि पंहुचाना मूर्खता का कार्य है |