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शगुन अपशगुन

June 28, 2014 By Amit Leave a Comment

shagun apshagun

किसी कार्य हेतू जाने व उस कार्य के सफल अथवा असफल होने का कारण ज्ञात न करके यह हिसाब लगाया जाना कि किसका चेहरा देख कर कार्य पर निकल पड़े थे या किस चेहरे को देख कर कार्य की शुरुआत की थी जो यह कार्य सफल या असफल हुआ । यह सदियों पुरानी भारतीय परम्परा है जो हमेशा इन्सान को शगुन अपशगुन से जोडती है । भारत में शगुन-अपशगुन की इस रुढ़िवादी प्रथा को आधुनिक युग में भी खास स्थान प्राप्त है जो किसी भी कार्य की शुरुआत से लेकर समाप्ति तक मान्य होता है । घर से प्रस्थान करते समय किसी कार्य की विशेषता को ध्यान में रखकर उसके शुभ फल प्राप्ति के लिए दही व चीनी का चम्मच खाना यह समझा जाता है जैसे युद्ध में प्रलयकारी तोप दाग दी गई हो तथा अब इस कार्य को सफल होने में कोई शक्ति अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकती यह तय माना जाता है ।

किसी इन्सान को प्रस्थान करते समय उसके पीठ पीछे से की गई पुकार अर्थात टोकना बहुत अशुभ समझा जाता है क्योंकि यह मान्यता है कि टोकने से कार्य सफल नहीं होते । व्यापारी अक्सर अपने व्यापार की सलामती के लिए तथा अपना व्यापार बुरी दृष्टि से बचाने के लिए अपनी दुकान अथवा कार्यालय के द्वार पर नींबू और मिर्ची धागे में बांध कर लटका देते हैं जिसमे उनकी यह मान्यता है कि इससे उनका व्यापार सुचारू रूप से संचालित रहेगा । इस नादानी वाली प्रथा से व्यापार चाहे चले अथवा ना चले परन्तु नींबू व मिर्ची के भाव अवश्य बढ़ जाते हैं तथा उनकी आपूर्ति में बाधा अवश्य उत्पन्न होती है क्योंकि प्रत्येक सप्ताह लाखों की तादाद में नींबू मिर्च सूखने के लिए द्वार पर लटका दिए जाते हैं जो किसी कार्य में नहीं आते ।

रास्ते में जाते समय यदि बिल्ली सामने से गुजर जाए तो उसे बिल्ली द्वारा रास्ता काटना माना जाता है एवं यह मान्यता है कि बिल्ली के द्वारा रास्ता काटने से कार्य तो असफल होंगे ही साथ में किसी दुर्घटना होने की आशंका भी प्रकट करी जाती है । इसलिए बहुत से इन्सान इसे अपशगुन मान कर रूक जाते हैं तथा किसी दूसरे इन्सान के वहां से गुजरने का इंतजार करते हैं जिससे उनपर आने वाली मुसीबत दूसरे पर टल जाए । भारतीय मान्यता के अनुसार दीपावली की रात्री में बिल्ली द्वारा गृह प्रवेश बहुत शुभ माना जाता है क्योंकि मान्यता है कि लक्ष्मी बिल्ली के रूप में गृह प्रवेश करती है । क्या यह सोच मूर्खता पूर्ण है या बिल्ली के रास्ता काटने की सोच मूर्खता है ? दीपावली को शुभ होने वाली बिल्ली बाकि दिनों में मनहूस क्यों समझी जाती है ?

किसी इन्सान के द्वारा छींक मारने से दूसरे इन्सान का कार्य कैसे असफल हो जाता है यह रुढ़िवादी परम्परा को मानने वाले खुद भी नहीं जानते । किसी व्यापार के सफल ना होने व किसी बिमारी को अपशगुन वाली दृष्टि अर्थात बुरी नजर लगना माना जाता है एवं ख़ास तोर पर बच्चों के बीमार होने को किसी की बुरी नजर लगना समझ कर उसकी नजर उतारने के लिए विभिन्न प्रकार के टोटके आजमाए जाते हैं । अधिकतर बुरी नजर के लिए साबुत लाल मिर्च को बीमार के उपर से घुमा कर जलाया जाता है और मिर्च के जलने से होने वाली खांसी के हिसाब से नजर का प्रभाव हटने का हिसाब लगाया जाता है । तेल या घी में तड़का लगाने से मिर्च का खांसी करना असल में वसा के कणों का वातावरण में फैलने से खांसी होना है परन्तु सूखी मिर्च जलकर खांसी ना होने से ,नजर लगना, की सोच नादानी है।

ऐसे कितने ही प्रकार के शगुन अपशगुन के चक्करों से इन्सान घनचक्कर बन कर रह जाता है । यदि किसी इन्सान व उसके व्यापार अथवा कार्यों को बुरा देखने, सोचने, कहने से नुकसान पहुंचाया जा सकता तो राज नेता तो हस्पताल में ही बीमार पड़े रहते या उनकी श्मशान यात्रा निकल जाती क्योंकि प्रतिदिन लांखों जनता उन्हें व उनके बारे में बुरा बोलती, सोचती व देखती है । किसी का चेहरा देखकर कार्य असफल होना तथा उसे मनहूस समझना महा मूर्खता है क्योंकि उसका चेहरा मनहूस होता तो उसका परिवार कब का बर्बाद हो जाता । शगुन-अपशगुन के चक्कर में पड कर समय और धन का नाश करना नादानी है क्योंकि किसी के छींकने या टोकने व बुरी दृष्टि तथा बिल्ली से किसी कार्य की असफलता जुडी होती तो सभी इन्सान दुश्मनी निकालने के लिए बिल्ली पालते और छींकने, टोकने एवं घूरने की शिक्षा ग्रहण करते तथा दुश्मनों पर आजमाते ।

सफलता इन्सान की सकारात्मक सोच का परिणाम है तथा सफल होने के लिए आत्म विश्वास और दृढ इच्छा शक्ति का होना अनिवार्य है । शगुन अपशगुन को मानने वाले इंसानों की इच्छा शक्ति कमजोर व आत्म विश्वास सदा डगमगाता रहता है जिससे उनके विचारों में नकारात्मकता की अधिकता होती है । सफलता प्राप्त करने के लिए अपने मस्तिक को शांत व संतुलित करके नकारात्मक सोच को त्याग कर विचारों को दृढ बनाना तथा शगुन अपशगुन से पीछा छुड़ाना ही बुद्धिमानी है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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