इन्सान की जीवन शैली दो प्रकार की होती है | 1. नियमित 2. अनियमित । वह इन्सान जो समय एवं मौके के अनुसार जीवन में परिवर्तन करते रहते हैं वह मौका परस्त अर्थात अनियमित होते हैं । जो इन्सान अपने जीवन के कार्य नियम अनुसार करते हैं तथा नियमों को जीवन के लिए आवश्यक मानते हैं | वह नियमित जीवन निर्वाह करते हैं । नियमित जीवन में कुछ इन्सान ऐसे नियम निर्धारित करते हैं | जो उत्कर्ष्ठ एवं श्रेष्ठ नियम होते हैं तथा जिनसे इन्सान समाज में अपनी अलग पहचान स्थापित करता है | वह नियम सिद्धांत (siddanth) कहलाते हैं । सिद्धांत (siddanth) के नियमों का पूर्ण निष्ठा से पालन करने वाला इन्सान सिद्धांतवादी कहलाता है । सिद्धांत (siddanth) के नियम कठोर अवश्य होते हैं परन्तु सदैव लाभदायक एवं भविष्य के निर्माण कर्ता भी होते हैं ।
सिद्धांत (siddanth) के नियम साधारण जीवन से आरम्भ होकर विशेष कार्यों एवं कर्मों के लिए निर्धारित होते हैं । सिद्धांत के मुख्य नियम हैं समय पर कार्य करना, सदैव कार्य सम्पूर्ण करना, उचित कार्य ही करना, अनुशासन पालन करना इत्यादि । समय की बर्बादी, अधूरे कार्य, अनुचित कार्य, अनुशासन हीनता इन्सान को साधारण अथवा तुच्छ बना देते हैं । सिद्धांत इन्सान की दिनचर्या से ही आरम्भ हो जाते हैं क्योंकि सिद्धांतवादी इन्सान अपनी दिनचर्या भी सिद्धांतों के अनुसार ही व्यतीत करता है । सिद्धांत के अनुसार सोने जागने के नियम भी प्राकृति के अनुसार निर्धारित होते हैं जिस प्रकार संसार के अन्य जीव प्राकृति के नियमों का पालन करके स्वस्थ रहते हैं उसी प्रकार पालन करने से इन्सान स्वस्थ एवं सुखी रह सकता है । सिद्धांत अनुसार भोजन जिव्हा का स्वाद देखकर नहीं स्वास्थ्य के लिए लाभकारी एवं पौष्टिक होना आवश्यक है । वस्त्र वगैरह भी फैशन त्यागकर शारीरिक स्वास्थ्य के अनुसार ग्रहण करना ही सिद्धांतवादी बनाता है । जो इन्सान निजी जीवन में सिद्धांतों का पालन नहीं कर सकते वह अन्य सिद्धांत अपनाकर भी ढोंगी ही कहलाता है ।
कर्म एवं जीवन निर्वाह के कार्यों में सिद्धांत इन्सान को पृथक पहचान दिलाते हैं । व्यापार हो अथवा नौकरी सर्वप्रथम समय का पालन करना आवश्यक है । समय पर कार्य पर पहुँचना तथा अपने सभी कार्य समय पर सम्पूर्ण करना एवं सदैव उचित कार्य ही करना इन्सान को ईमानदार इन्सान की श्रेणी में पहुँचा देता है । अनुशासित होने से संगी साथी एवं सम्बन्धित इन्सान सदैव सम्मान प्रदान करते हैं । सिद्धांतवादी इन्सान को किसी कार्य के लिए यदि सहायता की आवश्यकता अथवा किसी प्रकार के कर्ज की आवश्यकता होने से सरलता से प्राप्त हो जाता है । सिद्धांतवादी इन्सान को सरलता से सहायता एवं कर्ज प्राप्त होने का मुख्य कारण उसके किए हुए वादे पर विश्वास होना है तथा मान्यता होती है कि सिद्धांतवादी इन्सान ईमानदार होते हैं जो झूटे वादे कभी नहीं करते ।
झूट एवं फरेब का सिद्धांतवाद में कोई स्थान नहीं होता क्योंकि सिद्धांतवाद में समझौते करने का कोई स्थान नहीं होता । समझौता करना अनुचित कार्य का आरम्भ होता है वह चाहे नियमों के सन्दर्भ में किया गया हो अथवा किसी अन्य विषय में हो क्योंकि समझौता सदैव अनुचित एवं उचित के मध्य होता है । समझौते में उचित आधा अनुचित हो जाता है तथा अनुचित को आधा उचित होने का श्रेय प्राप्त हो जाता है । सिद्धांत अर्थात उसूल इन्सान को समाज तथा संसार में सम्मान प्रदान करवाते हैं क्योंकि सिद्धांत का अर्थ है अडिग एवं चट्टान की तरह मजबूत इन्सान । सिद्धांतवादी इन्सान की इच्छाशक्ति सदैव प्रबल एवं दृढ होती है । संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं सभी सिद्धांतवादी अवश्य हुए हैं । कोई भी इन्सान जब तक अपने जीवन में सिद्धांतों को नहीं अपनाता वह समाज में अपनी पृथक पहचान स्थापित नहीं कर सकता । सिद्धांत इन्सान को पृथक पहचान एवं सम्मान इसलिए दिलवाते हैं क्योंकि सिद्धांत दृढ मानसिकता एवं श्रेष्ठ चरित्र का प्रमाण् पत्र होते हैं ।