
भारतीय समाज में एकत्रित तथा सम्मिलित परिवार सम्मान का विषय है तथा सम्मिलित परिवार भारतीय सभ्यता एंव संस्कृति की पहचान रहे हैं । सम्मिलित परिवार में माँ बाप व भाई बहन के अतिरिक्त पिता के भाई और उनकी संतानें तथा दादा दादी सभी एक साथ व एक ही घर में बसने से उसे सम्मानित परिवार माना जाता है क्योंकि अधिक सदस्यों के परिवार की एकता उनके आचरण तथा सदभावना को प्रदर्शित करती है । परिवार के सदस्यों की आपसी प्रेम भावना तथा सदभावना ही उन्हें एक सूत्र में बांधे रख सकती है । परन्तु वर्तमान समय में परिवार टूट कर बिखर रहे हैं परिवार के युवा सदस्य एकांत प्रिय होते जा रहे हैं और स्वयं पर किसी प्रकार का अंकुश बर्दाश्त नहीं करते हैं । परिवार के बुजुर्ग सदस्यों के प्रति युवा वर्ग द्वारा सम्मान में सिर्फ दिखावा करने से अधिक कुछ नहीं हैं ।
जो युवा वर्ग बुजुर्गों के सम्मान में उनके इशारे पर कार्य करने के लिए तत्पर रहता था वह अब उनसे बचकर निकल जाता है । परिवार के सदस्य बुजुर्गों के आशीर्वाद पाने के लिए उनके चरणों में स्थान ग्रहण करते थे परन्तु वर्तमान में सामने पधार कर तानाकशी करते हैं । परिवार के सदस्यों की आज्ञा मानने के स्थान पर उनके जीवन के कार्यों तथा सफलताओं पर प्रश्न करना एंव व्यंग द्वारा उनको प्रताड़ित करना युवा वर्ग का स्वभाविक कार्य होता जा रहा है । प्रत्येक वार्ता में झगड़ना, बदजुबानी, आरोप प्रत्यारोप व कटाक्ष करने से तंग आकर आक्रोश वश परिवार से सरलता पूर्वक अलगाव प्राप्त करना युवा वर्ग की बुद्धिमानी की कहानी है ।
परिवार से अलग ग्रहस्थी बसाने से होने वाली हानि तथा समस्याओं की समीक्षा न करने के कारण जीवन संघर्ष पूर्ण हो जाता है तथा कभी कभी अत्यधिक भयंकर परिणाम सामने आते हैं । सम्मिलित परिवार में कम आमदनी होने अथवा कभी बेरोजगारी की समस्या आने पर भी जीवन सरलता पूर्वक निर्वाह हो जाता है जो अलग रहने पर मुमकिन नहीं है । बेरोजगारी अथवा अल्प आमदनी के समय परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा सरलता पूर्वक सहायता प्राप्त हो जाती है जो अन्य किसी इन्सान से प्राप्त नहीं हो सकती । किसी बीमारी के समय परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा तीमारदारी बहुत अधिक राहत का कार्य करती है जिसे अलग बसने पर प्राप्त नहीं किया जा सकता ।
परिवार से अलग रहने पर बच्चों को बुजुर्गों का दुलार तथा संस्कार प्राप्त नहीं होते तथा किसी का साथ ना मिलने के कारण उनका समय टी वी तथा कम्प्यूटर के साथ व्यतीत होता है जिससे बच्चों में आक्रोश तथा खुदगर्जी की भावना उत्पन्न होती है । अलग रहने वाले परिवार में पति पत्नी यदि दोनों कार्यरत हों तो बच्चे नौकरों अथवा आया के सहारे पलते हैं जो बच्चों को किस प्रकार का पोषण देते हैं यह देखने वाला कोई नहीं होता । नौकर के लिए बच्चे को नहलाना या कपड़े अथवा बर्तन साफ करना एक समान है तथा बच्चों को भोजन किस प्रकार का व किस मात्रा में उपलब्ध है यह देखना भी असम्भव है ।
बच्चों का नौकरों द्वारा योन शोषण स्वभाविक किर्या है जिससे बच्चों के कोमल मन को कितना कष्ट पहुंचता है इसका अनुमान लगाना कठिन है । बच्चों के साथ नौकरों द्वारा योन शोषण जैसी घटनाओं से उनमे कुंठा व घृणा की भावना उत्पन्न होना स्वभाविक है जिससे उनके मन में जीवन के प्रति नफरत की भावना जन्म लेती है । मनचाही सफलता प्राप्त करने तथा अधिक धन एकत्रित करने की कोशिश में अपनी सन्तान के शोषण पर ध्यान ना देने का अंजाम कितना भयंकर हो सकता है यह घटित होने के पश्चात ही जान पड़ता है । माँ बाप व परिवार के प्यार को तरसते बच्चों से प्यार एंव सम्मान की कामना करना सिर्फ मूर्खता का प्रश्न रह जाता है ।
एकाकी जीवन निर्वाह जानवर का प्राकृतिक स्वभाव है उसे सिर्फ भरपेट भोजन की आवश्यकता होती है परन्तु इन्सान समाजिक प्राणी है एकांत इन्सान को आक्रोशि तथा खुदगर्ज बना देता है । अलग रहने वालों में आक्रोश तथा खुदगर्जी की भावना धीरे धीरे इतनी अधिक हो जाती है जिसके कारण वें किसी की भावनाओं का सम्मान करना आवश्यक नहीं समझते । एकाकी ग्रहस्थी में किसी कारण कलह उत्पन्न हो जाए तो उसका निवारण कराने वाला उपलब्ध नहीं होता परिणाम स्वरूप ग्रहस्थी टूटने के कगार पर पहुंच जाती या टूट जाती है । भारतीय संस्कृति में तलाक जैसे शब्द घृणित माने जाते थे परन्तु वर्तमान में तलाक का प्रचलन बढ़ रहा है जिसका कारण परिवार का साथ ना होना है क्योंकि परिवार त्रुटियाँ होने से रोकता है तथा होने पर सुलह करवा देता है जिससे परिणाम तलाक तक ना पहुंचे ।
एकाकी जीवन में परिवार की मर्यादा तथा समाज की सद्भावना सभी का अंत निश्चित है तथा इन्सान सिर्फ धन तथा धन से प्राप्त होने वाली वस्तुओं का भोग कर सकता है । किसी की प्रेम भावना तथा आदर सम्मान व संस्कृति एंव संस्कार सम्मिलित परिवार में ही प्राप्त हो सकते हैं अलगाव से प्राप्त होती है सिर्फ खुदगर्जी । परिवार इन्सान के लिए संसार में सबसे सुरक्षित तथा सबसे विश्वसनीय शरण स्थली है एंव परिवार के सदस्यों से जो प्रेम व सहानभूति प्राप्त हो सकती है वह अन्य किसी से प्राप्त होना कठिन है यह समझने पर ही इन्सान को परिवार की महत्वता का उचित अनुमान हो सकता है । किसी भी विपदा के समय सिर्फ परिवार ही रक्षक बनकर उपलब्ध होता है इसे समझना भी आवश्यक है ।