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पति पत्नी

May 22, 2014 By Amit Leave a Comment

pati patni

आदिकाल में जब इन्सान द्वारा सभ्यता अपनाई गई तथा समाज का निर्माण किया गया तब सर्वप्रथम स्त्री पुरुष के सम्बन्ध स्थापित करने के लिए नियम निर्धारित किए गए तथा विवाह प्रथा का निर्माण किया गया एवं स्त्री पुरुष की ग्रहस्थी बसाई गई जिसमे स्त्री को पत्नी तथा पुरुष को पति का दर्जा प्राप्त हुआ । पति पत्नी के सम्बन्ध या रिश्ते को समाज में विशेष स्थान प्राप्त है और इस रिश्ते को बहुत महत्व दिया जाता है । दो अपरिचित इंसानों को सम्पूर्ण जीवन एक दूसरे का साथ निभाने के लिए समाज तथा दोनों के परिवारों द्वारा एक सूत्र में बांध दिया जाता है । जीवन में सभी परिवारिक रिश्ते समय समय पर साथ छोड़ जाते हैं माँ, बाप, भाई, बहन यहाँ तक कि अपनी सन्तान भी साथ छोड़ कर चली जाती है परन्तु पति पत्नी जब तक दोनों जीवित होते हैं साथ निभाते हैं । इस ग्रहस्थ रिश्ते का अंत दोनों में से किसी एक या दोनों की मृत्यु के पश्चात होता है इसलिए इन्हें जीवन साथी पुकारा जाता है ।

ग्रहस्थ जीवन का सम्बन्ध जितना प्रगाढ़ होता है उतना ही समस्या पूर्ण, जटिल तथा नाजुक भी होता है क्योंकि इस रिश्ते में परिवार के सदस्य ही दरार डालने तथा कलह करवाने का कार्य करते हैं । अधिकांश पुरुष पक्ष के कपटी सदस्य अपनी चालाकी तथा शरारतों से इस रिश्ते में कलह के बीज बो कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश को अंजाम देने में लगे रहते हैं । कभी कभी स्त्री पक्ष के सदस्य भी ग्रहस्थ रिश्ते को अपने किसी स्वार्थ की पूर्ति हेतु खराब करने की कोशिश करते हैं । दो अपरिचित इंसानों के मध्य प्रेम तथा विश्वास की बुनियाद पर स्थापित किया गया यह रिश्ता आपसी मनमुटाव के कारण कभी कभी अलगाव की स्थिति तक पहुंच जाता है जिसमे अधिकतर पुरुष की नासमझ बुद्धि तथा उसका अहंकार रिश्ते के अंत का कारण बन जाता है ।

पति पत्नी के रिश्ते के अतिरिक्त किसी अन्य रिश्ते को स्थापित करने के लिए किसी को मित्र बनाने के समान कार्य होता है किसी से माँ, बाप, भाई, बहन, पुत्र, पुत्री या अन्य कोई रिश्ता स्थापित करना हो तो सिर्फ कह देने तथा मान लेने से कार्य सम्पन्न हो जाता है । परन्तु स्त्री पुरुष के मध्य ग्रहस्थ सम्बन्ध स्थापित करने के लिए धर्म, समाज एंव क़ानूनी प्रकिर्या के नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है इससे प्रमाणित होता है कि यह कितना महत्वपूर्ण सम्बन्ध है । ऐसे महत्वपूर्ण सम्बन्ध को किसी के द्वारा हस्तक्षेप करने अथवा किसी प्रकार की अफवाह के कारण हानि पहुँचाने से पूर्व सभी पहलुओं का आकलन करना तथा वार्तालाप द्वारा सम्पूर्ण सत्यता की समीक्षा करना अत्यंत आवश्यक होता है । शरारती अथवा कपटी इंसानों के कथन से अपने ग्रहस्थ जीवन को दांव पर लगाना मूर्खता का कार्य होता है ।

अधिकतर पुरुष परिवार के सदस्य अपनी महत्वता प्रमाणित करने तथा भविष्य में खुद को महत्वपूर्ण बनाए रखने के लिए वधु को प्रताड़ित करना अपना अधिकार समझते हैं जिसके लिए प्रत्येक छोटी से छोटी त्रुटी या नादानी को माध्यम बनाया जाता है । ग्रहस्थ जीवन में हस्तक्षेप करने तथा कटुता उत्पन्न करने वाले के लिए अपनी ग्रहस्थी की ओर ध्यान देना भी आवश्यक होता है जिसमे किसी के द्वारा विघ्न उत्पन्न करने से होने वाली पीड़ा का अहसास मार्गदर्शन कर सकता है । सम्मानित सदस्यों द्वारा प्रताड़ित करने से उत्पन्न होने वाली दूरियां समय के साथ उनके लिए हानिप्रद हो जाती हैं इसके लिए सन्तान की ग्रहस्थी को प्रताड़ित करने के स्थान पर संवारने की कोशिश करने पर ही उचित सम्मान प्राप्त होता है ।

भारतीय परिवारों में पुत्री का स्तर पुत्रवधू से उच्च माना जाता है तथा पुत्री द्वारा पुत्रवधू का शोषण करने पर भी परिवार पुत्री का ही साथ देता है जिसके फलस्वरूप परिवार में कटुता उत्पन्न होने लगती है । पुत्री जिस परिवार में पुत्रवधू होगी वहां उसका शोषण होने से उत्पन्न होने वाली पीड़ा भी परिवार को समझाने में असफल रहती है जिसका परिणाम सदैव खराब ही निकलता है । झूट व फरेब की बुनियाद पर ग्रहस्थ सम्बन्ध अधिक समय तक सफल नहीं रहते तथा धन के कारण अथवा स्वार्थ वश रिश्तों का शोषण करना जीवन नर्क समान बना देता है । पति पत्नी के रिश्ते को काम वासना की दृष्टि से देखना अथवा आचरण पर शक करना व एक दूसरे पर व्यंग करना या कटाक्ष करना तथा एक दूसरे के परिवार के सदस्यों पर कटाक्ष करना तथा उनके लिए अनुपयुक्त शब्दों का प्रयोग करना ग्रहस्थ सम्बन्धों को खोखला करना है ।

ग्रहस्थी में पुरुष से अधिक स्त्री की महत्वता है क्योंकि परिवार को एक सूत्र में बांध कर रखना तथा आस पास के रिश्तों को संवारना स्त्री के कारण ही संभव होता है तथा सन्तान पिता की अपेक्षा माँ को अधिक प्यार तथा सम्मान देती है । जब सन्तान युवा हो जाती है तो माँ का साथ देती है और पिता द्वारा करी गई हिंसा के लिए उसे प्रताड़ित करती है ऐसी अवस्था में पुरुष को अपनी त्रुटियों का अहसास होने तथा पश्चाताप करने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं रहता । अच्छा व्यहवार ही सुखी ग्रहस्थ जीवन प्रदान करता है इसलिए जीवन में संतुलन बनाने के लिए एक दूसरे का आदर करना और आपस में भावनाओं का ध्यान रखकर कार्य करना अत्यंत आवश्यक होता है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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