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अकाल जन्म

June 1, 2014 By Amit Leave a Comment

akaal janm

इन्सान इक्कीसवीं सदी में जहाँ चाँद व मंगल पर बसने की सोच रहा है तथा आधुनिक तकनीक की सहायता से हजारों मील दूर बैठे इन्सान से पलभर में प्रत्यक्ष वार्तालाप कर रहा है । आसमान की सैर इन्सान के अधिकार में है । इंटरनेट की सहायता से संसार की किसी भी जानकारी को प्राप्त करना चुटकी बजाने जैसा कार्य रह गया है । इन्सान ने कुछ समय से एक नई तकनीक के चश्मे का अविष्कार किया है जिसकी सहायता से सुनहरे भविष्य के स्वप्न देखे जा सकते हैं अर्थात अंधविश्वास का चश्मा । इस अंधविश्वास के चश्मे को लगा कर संतान को डाक्टर , इंजीनियर , आविष्कारक , प्रशासक , न्यायाधीश , कलाकार , राजनीतीज्ञ जो चाहे बना हुआ देख सकते हैं । कुछ नक्षत्र ज्ञानियों ने कुछ समय पूर्व से अपने लाभ तथा अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए समाज में यह अफवाह फैलाई कि संतान की पैदाइश का नक्षत्रों की परस्थिति के अनुसार समय निर्धारित करके जन्म कराया जाए तो वह नक्षत्र बली होंगे तथा उनकी पसंद के अनुसार शिक्षा प्राप्त कर पदासीन होंगे और जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकेंगे । इस झांसे में फंसकर बहुत से इन्सान यहाँ तक कि हमारा शिक्षित वर्ग भी नक्षत्र समय अनुसार प्राकर्तिक समय से पूर्व शल्य चिकित्सा द्वारा संतान उत्पन्न करवा रहे हैं अर्थात (अकाल जन्म)

नक्षत्रों की उर्जा के बल को अस्वीकार नहीं किया जा सकता तथा ज्योतिष ज्ञान की भी अनदेखी नहीं की जा सकती परन्तु कुछ तथ्य महत्व पूर्ण हैं जैसे ज्योतिषी भविष्य के बारे में अवश्य भविष्यवाणी कर सकता है कि ऐसी घटना हो सकती है परन्तु यह नहीं कह सकता कि ऐसा ही घटित होगा । यदि कोई ज्योतिषी बखान करता है कि उसके कहे अनुसार ही भविष्य घटित होगा तो वह नादान स्वंय को ईश्वर समझने की भूल कर रहा है क्योंकि आगे भविष्य में क्या होना है क्या नहीं होना यह भविष्य के गर्भ में सुरक्षित है जिसे इन्सान कभी नहीं जान सकता । यदि इन्सान इतना बड़ा ज्ञानी होता तो सर्वप्रथम अपनी मृत्यु का समय व कारण ज्ञात करके अपना जीवन सुरक्षित करता ।

अत्यंत महत्व पूर्ण सच्चाई यह है कि गर्भ धारण करने से जन्म होने तक जो पोषण शिशु को प्राप्त होता है यदि उसमे क्षीणता होगी तो वह पूर्ण पोषक व सशक्त नहीं होगा । गर्भ धारण प्रकृति का उपहार है जो अपने समय पर ही होता है । इन्सान की कोशिश से अगर गर्भ धारण हो सकता तो बहुत से इन्सान पूर्ण स्वस्थ होने पर भी गर्भ धारण से वंचित रह जाते हैं उन्हें विज्ञान तथा ज्योतिषी गर्भ धारण नहीं करवा सकते । प्राकृति पूर्ण पोषण के उपरांत ही जन्म देती है तथा गर्भ धारण से जन्म तक सभी उर्जाओं से पोषित करती है । अकाल जन्म से पूर्ण पोषण ना होने से उसके जीवन में कुछ क्षीणता अवश्य आएगी । उचित प्राकृतिक समय ज्ञात ना होने के कारण ज्योतिषी उल्टी सीधी भविष्यवाणी कर जीवन भर लूटते रहते हैं । अल्प पोषण प्राप्त फल कच्चा होता है तथा पोषण पूर्ण होने पर शाख से अलग ना किया जाए तो वह सड़ने लगता है ।

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जुड़वां बच्चे भी एक समान जीवन व्यतीत नहीं कर पाते तथा समान समय पर होने वाले बच्चे भी समान बुद्धिमान व समान व्यहवार वाले नहीं होते । जीवन में जन्म समय नहीं परवरिश महत्वपूर्ण होती है । परवरिश में तीन प्रभाव मुख्य हैं पहला प्रभाव माँ बाप की कार्य शैली व व्यहवार जो सन्तान को सबसे अधिक प्रभावित करता है । बच्चा अपने माँ बाप की प्रत्येक हरकत व वार्तालाप को ध्यान पूर्वक देखता व ग्रहण करता है । बच्चों के सामने अपने कार्यों , व्यहवार व वार्तालाप का विशेष ध्यान रखना आवश्यक होता है क्योंकि वार्तालाप के आधार पर हो उनका दृष्टिकोण निर्भर करता है । दूसरा मुख्य प्रभाव वातावरण का होता है । परिवार में होने वाली शरारतें , हुडदंग व मनोरंजन और परिवार के सभी सदस्यों का सीधा प्रभाव बच्चों पर होता है । तीसरा मुख्य प्रभाव बच्चों को मिलने वाली बाहरी सोहबत। जिसमे जैसे मित्र होंगे तथा जिनके साथ खेलकूद व पढ़ाई करेंगे व जिनसे उनका प्रतिदिन सम्बन्ध रहेगा उनका व्यहवार तथा वार्तालाप का प्रभाव भी अत्याधिक असर कारक होता है इसलिए संतान की सोहबत पर पैनी दृष्टि रखना आवश्यक है ।

संतान को बुंलदियों पर देखना हो तो अंधविश्वास के चश्में से नहीं अक्ल की दृष्टि से देखना अधिक उचित होता है । बुलंदी वह इन्सान प्राप्त करते हैं जिनमें लक्ष्य प्राप्त करने का उत्साह व लगन हो । उन्हें ना तो नक्षत्र बल की आवयश्कता होती है और ना किसी ज्योतिषी द्वारा करी गई भविष्यवाणी की । बहुत से महापुरुषों ने आर्थिक तंगी के होते हुए भी जीवन में बहुत से महान कार्य किए हैं तथा जीवन में बुलंदियों को प्राप्त किया है । इसलिए माँ बाप को नक्षत्रों का पीछा त्याग कर संतान के लक्ष्य निर्धारित करके उसे प्राप्त करने की लगन व उत्साह वृद्धि करनी आवश्यक है । अकाल जन्म शातिर इंसानों द्वारा साधारण इंसानों को मूर्ख बनाने की पद्धति मात्र है जिसके जाल में फंसकर बहुत से इन्सान शल्यचिकित्सा द्वारा सन्तान उत्पन्न करवाने में लग जाते हैं उन्हें इस सच्चाई को समझना होगा की यह मूर्खता के सिवाय कुछ नहीं है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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