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रिश्ते

May 22, 2014 By Amit Leave a Comment

rishte

आदिकाल से इन्सान द्वारा सभ्यता अपनाने के समय ही समाज की स्थापना हुई तथा समाज ने इंसानों को आपस में जोड़े रखने के लिए जिससे सभी समय असमय एक दूसरे का साथ निभाएं तथा आपस में भरसक सहायता प्रदान करते हुए विकास कर सकें इसलिए आपसी सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाए रखने के नियम निर्धारित किए गए तथा इंसानों के आपसी सम्बन्धों को रिश्ते का नाम दिया गया । रिश्ते का अर्थ है कि आवश्यकता के समय एक दूसरे के कार्यों में अपने सामर्थ्य अनुसार सहायता प्रदान करना । रिश्ता पद्धति के कारण ही इन्सान संसार में अकेलापन महसूस नहीं करता तथा रिश्ते जैसे समाजिक बंधन उसकी मानसिकता को बल प्रदान कर उसे जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का सामर्थ्य प्रदान करते हैं । इस सम्बन्ध अथवा रिश्ता प्रथा के द्वारा आपसी प्रेम तथा सदभावना के कारण ही भारतीय संस्कृति को संसार में महान संस्कृति होने का गौरव प्राप्त हुआ है ।

रिश्ते अनेकों प्रकार के तथा विभिन्न प्रभावशाली प्रकिर्या से सम्बन्धित होते हैं जैसे जन्म के साथ विरासत में उपलब्ध परिवारिक तथा परिवार के सदस्यों से सम्बन्धित एवं समय – समय पर समाजिक नियमों द्वारा इच्छानुसार बनाए जाने वाले । इन्सान अपनी प्रवृति के अनुसार रिश्तों में भी अपनी भूमिका सकारात्मक अथवा नकारात्मक अपनी मानसिकता के आधार पर ही सम्पन्न करता है तथा कुछ इन्सान संकोची स्वभाव के कारण रिश्तों के प्रति सदैव उदासीन रहते हैं । रिश्तों के प्रति उदासीनता प्रकट करने वाले इन्सान अपने प्रति किए गए व्यहवार के अनुसार ही अपना व्यहवार प्रदर्शित करते हैं ।

naya rishta

सकारात्मक मानसिकता के इन्सान अपने स्वभाव के अनुरूप भलाई के कार्य करना, अच्छी सलाह देना, उचित मार्ग दर्शन करना, आवश्यकता के समय तन, मन, धन से सहायता करना तथा जीवन की कठिनाइयों के प्रति आत्मविश्वास में वृद्धि करना वगैरह से रिश्ते को पोषित करते हैं । नकारात्मक मानसिकता का इन्सान रिश्तों में भी सदैव किसी की नादानी या कमजोरी का लाभ उठाने तथा अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए दूसरों को मूर्ख बनाने अथवा उनकी भावनाओं का प्रयोग करने से नहीं चूकते । नकारात्मक मानसिकता के इन्सान को दूसरों की त्रुटियों पर कटाक्ष करने या व्यंग करने और समाज में बुराई करने तथा अफवाह फ़ैलाने जैसे कार्यों को अंजाम देते समय किसी भी सम्बन्ध का ध्यान नहीं होता तथा आवश्यकता के समय इन्हें बहाना बना कर छुटकारा पाने तथा गायब होने की कला में प्रवीणता हासिल होती है ।

जिन रिश्तों को इन्सान अपनी पसंद से स्थापित करता है उनमें अधिकांश वह सकारात्मक भूमिका ही अदा करता है क्योंकि निर्मित रिश्ते के टूटने का भय उसे त्रुटियाँ करने से रोकता है । निर्मित रिश्ते में नकारात्मकता उत्पन्न हो जाए तो सभी रिश्ते के प्रति उदासीनता अपनाना अधिक उचित समझते हैं । जो रिश्ते जन्म से सम्बन्धित विरासत में प्राप्त होते हैं वें सकारात्मक होते हैं तो पूर्णतया सफल होते हैं जिसमे दोनों तरफ के इन्सान जीवन भर एक दूसरे की भरसक सहायता करके समाज में सम्मान तथा जीवन में विकास प्राप्त करते हैं । परन्तु विरासत के रिश्तों में नकारात्मक मानसिकता होने पर उनका शीघ्र पतन हो जाता है क्योंकि विरासत के रिश्ते में उदासीन स्थिति अत्यंत अल्प होती है ।

family relationships

विरासत के रिश्ते में सबसे कठिन परिस्थिति वहां उत्पन्न होती है जहाँ एक तरफ सकारात्मक मानसिकता होती है तथा दूसरी तरफ नकारात्मक मानसिकता उसका स्वागत करती है । नकारात्मक प्रवृति का इन्सान ऐसे हालात का भरपूर नाजायज लाभ उठाकर अपना स्वार्थ साधने में लग जाता है और सकारात्मक स्वभाव की कोमल भावनाओं से पूर्ण खिलवाड़ करता है । अपनी सकारात्मक सोच के कारण जो इन्सान नकारात्मक स्वभाव के इन्सान को उचित मार्ग पर लाने का भरसक प्रयास करता है उसे कभी कभी जब सच्चाई समझ आती है वह पूर्णतया बर्बाद हो चुका होता है अथवा बर्बादी के कगार पर खड़ा होता है । किसी के द्वारा रिश्तों का दिखावा करके व भावुकता के भंवर में फंसाकर नाजायज लाभ प्राप्त करने की कोशिश करी जा रही हो तो सावधानी पूर्वक पीछा छुटाना आवश्यक हो जाता है क्योंकि जब खून के रिश्ते खून चूसना आरम्भ कर देते हैं उनका त्याग करना ही बुद्धिमानी का कार्य होता है ।

अपने मन को वश में करना तथा अपनी मानसिकता में परिवर्तन करना संसार का सबसे कठिन कार्य है फिर किसी को समझाकर उसकी मानसिकता परिवर्तन करने की कोशिश करने में सिर्फ अपने समय का नाश करना उचित नहीं होता समझाने के साथ धन का नाश करने से अपना सर्वनाश हो जाता है । भलाई करना तथा सहायता करना इंसानियत का कर्तव्य है परन्तु अपने लिए कठिनाई उत्पन्न करके किसी की सहायता मूर्खता का कार्य है । समय सबको सुधार देता है तथा सबकी मानसिकता परिवर्तित कर देता है इसलिए प्रकृति का कार्य प्रकृति पर छोड़ना ही उचित होता है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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