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सम्मान

July 17, 2014 By Amit Leave a Comment

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इन्सान द्वारा किये गए कार्यों एवं व्यवहार से ही उनकी महत्वता प्रकट होती है अर्थात कार्य की महत्वता के अनुसार ही इन्सान को महत्वपूर्ण माना जाता है । इन्सान के कार्य एवं व्यवहार की महत्वता का मूल्यांकन करके उसके प्रति होने वाले मनोभाव व समाजिक विचारों को उसका सम्मान कहा जाता है । संसार में अधिकांश इंसानों का ध्येय अधिक से अधिक सम्मान प्राप्त करना है जिसके वशीभूत ही उनकी सोच एंव उनका कार्य होता है । इन्सान के द्वारा आदिकाल से वर्तमान आधुनिक काल तक का सफर करने में होने वाला सहयोग ही इन्सान की महानता का प्रतीक है । जिस प्रकार कार्यों की महत्वता कार्य के अनुसार अलग अलग प्रकार की होती है उसी प्रकार सम्मान प्राप्ति के भी अनेकों रूप हैं ।

सर्व प्रथम सबसे उच्च कोटि का सम्मान उसे प्राप्त होता है जिसने संसार के निर्माण में अपना पूर्ण सहयोग प्रदान किया हो । मानवता की प्रगति में लगे हुए इंसानों ने समय समय पर अपने नये नये आविष्कारों द्वारा इस संसार को गति प्रदान करी तथा नित नये संसार का निर्माण किया जिससे उनके द्वारा आविष्कार कृत वस्तुओं का उपयोग करके संसार वर्तमान स्थिति में पहुंचा है । आविष्कार छोटा हो या बड़ा सबका महत्व अपने स्थान पर महान होता है क्योंकि लघु रूप में होने के बाद भी सुई का कार्य महान है जिसने इन्सान के शरीर को उसके पसंदीदा आकार के वस्त्रों से अलंकृत किया है । अविष्कार करने वाले इंसानों को तथा उनके द्वारा किये गए अविष्कार को उनकी महानता के अनुसार संसार सदा सम्मान करता रहेगा ।

संसार में जिन इंसानों ने मार्ग दर्शक का कार्य किया उन्हें भी उच्च कोटि का सम्मान प्राप्त हुआ है वह चाहे महान दार्शनिक हों या धर्म संस्थापक अथवा सामाजिक मार्ग दर्शक । संसार में कोई अविष्कार न करने पर भी दार्शनिकों, धर्मगुरुओं व सामाजिक मार्ग दर्शकों का सम्मान प्राप्ति का कारण उनके द्वारा प्राप्त मार्ग दर्शन से समाज ने सुगमता पूर्वक अपनी राहें तय करी तथा अपनी मंजिल को प्राप्त किया क्योंकि संसार में अच्छा तथा सच्चा मार्ग दर्शक मिलना सरल कार्य नहीं है एवं मार्ग दर्शक के बगैर इन्सान सदा भटकता रहता है ।

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जिन इंसानों ने समाज सुधारक का कार्य किया तथा निस्वार्थ समाज सेवा करी एवं अपना जीवन मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया समाज में उनकी महानता को सदा सम्मान मिलता रहेगा और उनके द्वारा किए गए कार्यों की सदा प्रशंसा होती रहेगी क्योंकि स्वार्थी संसार में निस्वार्थ सेवा महान इन्सान ही कर सकते हैं । जो साधारण समाज सेवी स्वयं या किसी गैर सरकारी संस्था (n,g,o,) के द्वारा समाज की सेवा करने के लिए कार्यरत हैं उन्हें भी समाज में पूर्ण सम्मान की प्राप्ति होती है । असहाय व मजबूर की सहायता करना वह चाहे किसी भी प्रकार की गई हो समाज में सदा सराहनीय रहेगी तथा समाज मददगारों को सदा सम्मान प्रदान करेगा ।

संसार में अलग अलग प्रकार के इन्सान हैं जिनमे कुछ इंसानों का ध्येय धन प्राप्त करके सुख पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करना होता है वें इन्सान साधारण वर्ग के होते हैं । कुछ इन्सान जीवन में धन के साथ साथ सम्मान प्राप्त करना भी चाहते हैं ऐसे इन्सान मध्यम वर्ग में आते हैं । जो इन्सान अपना जीवन सम्मान प्राप्ति करने में समर्पित करते हैं वें उच्च कोटि के कहलाते हैं क्योंकि सम्मान प्राप्ति की इच्छा उन्हें अच्छे और महान कार्यों के लिए प्रेरित करती है तथा ऐसे इन्सान सम्मान प्राप्ति की चाह में संसार में कोई भी महान कार्य करके मानवता के प्रति अपना कर्तव्य पूर्ण करते हैं ।

जो इन्सान समाज व इंसानियत के लिए कोई अच्छा कार्य करने की जगह सिर्फ दिखावा करके खुद को सम्मानित करवाना चाहते हैं वें भ्रमित बुद्धि के भटके हुए इन्सान होते हैं । जो इन्सान समाज में अपने साजो सामान एंव संसाधनों एवं अपनी जायदाद, मकान, वाहन वगैरह का दिखावा करके तथा स्वयं को धनाढ्य घोषित कर समाज में सम्मान प्राप्ति चाहते हैं या जो इन्सान अपने शरीरिक बल को प्रदर्शित करके अपनी दबंगई से समाज में महत्वपूर्ण साबित होकर सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं उनके सामने भय वश कोई उन्हें झूटा सम्मान प्रदान कर सकता है परन्तु पीठ पीछे उन्हें घृणा की दृष्टि से ही देखा जाता है ।

सम्मान पाने की इच्छा करने वाले को सर्व प्रथम अपना सम्मान स्वयं करना सीखना चाहिए जिसके लिए उसे अपने अंत:करण में झांकना पड़ेगा तथा यदि वह कोई कपटी, धोखेबाज, बेईमान या झूटा इन्सान है तो वह कैसे अपना सम्मान करेगा क्योंकि इन्सान संसार से झूट बोल सकता है परन्तु अपने मन से झूट बोलना असंभव है । जब इन्सान दोषी होता है तथा अपना सम्मान भी नहीं कर सकता तो समाज एवं संसार से सम्मान प्राप्ति की कामना करना मूर्खता होती है । सम्मान इन्सान के व्यवहार, आचरण व कर्म से प्राप्त होने वाला विषय है इसलिए सम्मान प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम अपने व्यवहार एवं कर्मों की समीक्षा करके उनमें सुधार लाना आवश्यक होता है पहले खुद को बदलो तभी संसार बदलेगा ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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