उत्तम कार्यों, प्रतिभा एवं महत्त्व का सकारात्मक अलंकृत वर्णन करना प्रशंसा कहलाती है । प्रशंसा श्रेष्ठता एवं प्रसन्नता का प्रतिक होती है क्योंकि प्रशंसा जिसके भी विषय में हो उसे श्रेष्ठ प्रमाणित करती है तथा उसको प्रसन्न करने का कार्य भी करती है । प्रशंसा वार्तालाप के वातावरण को खुशनुमा एवं सम्बन्धित इंसानों को खुशियाँ प्रदान करने का सबसे सरल साधन होता है । प्रशंसा करने के कई प्रकार होते हैं जैसे सामान्य प्रशंसा, अधिक प्रशंसा, वास्तविक प्रशंसा, झूटी प्रशंसा वगैरह । प्रशंसा का विशेष रूप भी होता है जिसे चापलूसी कहा जाता है ।
सामान्य प्रशंसा किसी के भी उत्तम कार्यों से प्रभावित होकर स्वयं इन्सान के मुँह से निकलने वाले प्रभावित मानसिकता के शब्द होते हैं । सामान्य प्रशंसा दैनिक जीवन की दिनचर्या का महत्वपूर्ण अंग है । धन्यवाद, वाह-वाह, बहुत अच्छे, अति सुंदर जैसे शब्द सामान्य प्रशंसा के सूचक होते हैं । अपने समीप के इंसानों एवं अपनों तथा मित्रों को प्रोत्साहित करने के लिए सामान्य प्रशंसा अत्यंत आवश्यक कार्य है इससे अच्छे कार्यों के प्रति उत्साह में वृद्धि होती है । इन्सान अपने उत्तम कार्यों की प्रशंसा सुनकर और अधिक उत्तम कार्य करने के लिए प्रेरित होता है । सामान्य प्रशंसा करना इन्सान के व्यवहार की श्रेष्ठता को भी प्रमाणित करती है क्योंकि अव्यवहारिक इन्सान कभी किसी की प्रशंसा नहीं करते ।
अधिक प्रशंसा उत्तम कार्यों एवं प्रतिभा तथा महत्व को अलंकृत करने का विषय है । अलंकृत अर्थात किसी भी वस्तु या विषय का श्रंगार करके अर्थात उसकी व्याख्या बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना होता है । अधिक प्रशंसा किसी को प्रसन्न करने के लिए करी जाती है ताकि उससे किसी प्रकार का कार्य सिद्ध करवाया जा सके अथवा उसे अपने पक्ष में किया जा सके । अधिक प्रशंसा प्रसन्न करके कार्य सिद्ध करने अर्थात स्वार्थ पूर्ति का सबसे सरल साधन होता है इसलिए अधिक प्रशंसा पर सचेत होकर समझ लेना आवश्यक होता है कि प्रशंसक किसी प्रकार का स्वार्थ सिद्ध करने का इच्छुक है ।
कार्य सम्पन्न होने के पश्चात ही वास्तविक होते हैं क्योंकि उनका परिणाम निर्धारित होता है जिसमे किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता । जिनका परिणाम निश्चित ना हो अथवा उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन किया जा सके उसे वास्तविक की श्रेणी में रखना नादानी होती है । वास्तविक प्रशंसा अर्थात किए हुए सराहनीय कार्यों की प्रशंसा करना। परीक्षा में उत्तीर्ण होना, प्रतियोगिता में विजय प्राप्त करना, कोई महत्वपूर्ण कार्य करना, कोई सामाजिक कार्य करना, किसी की भलाई या सेवा करना वगैरह वास्तविक प्रशंसा के कार्य होते हैं । जो भी कार्य वास्तविक हो उसकी प्रशंसा करना वास्तविक प्रशंसा होती है । इन्सान के विचारों में सदैव परिवर्तन होता रहता है परन्तु श्रेष्ठ विचारों की प्रशंसा वास्तविक प्रशंसा ही होती है क्योंकि विचारों की श्रेष्ठता सत्य होती है जो कभी समाप्त नहीं होती चाहे विचार व्यक्त करने वाला इन्सान स्वयं भी उन विचारों पर किर्याशील ना हो ।
जिसका परिणाम अनिश्चित हो अथवा उसके परिणाम में किसी प्रकार का परिवर्तन किया जा सकता हो वह भ्रमित श्रेणी के विषय होते हैं । भ्रमित श्रेणी के विषय पर निर्णय लेकर विचार व्यक्त करना भ्रम या अफवाह फ़ैलाने अथवा झूट बोलने के समान होता है । अनिश्चित या भ्रमित विषय पर प्रशंसा करना झूटी प्रशंसा होती है तथा प्रशंसक सदैव झूटा कहलाता है । परीक्षा परिणाम घोषित होने से पूर्व परीक्षार्थी की प्रशंसा करना, प्रतियोगिता में विजय से पूर्व प्रतियोगी की प्रशंसा करना, भविष्य में होने वाले कार्यों प्रशंसा करना जैसी प्रशंसा झूटी प्रशंसा की श्रेणी में आती है । किसी के स्वभाव, व्यवहार, कार्यों, आचरण वगैरह की प्रशंसा करना भी झूटी प्रशंसा प्रमाणित हो सकती है क्योंकि इनमे सदैव परिवर्तन होता रहता है ।
प्रशंसा सदैव समय पर तथा आवश्यकता अनुसार करी जाती है जिसका कोई ना कोई कारण अवश्य होता है । किसी की अकारण या असमय बहुत अधिक तथा वास्तविक हो या झूटी प्रशंसा निरंतर करी जाती है वह चापलूसी कहलाती है । चापलूसी करने का कारण कभी स्पष्ट दिखाई नहीं देता परन्तु वास्तव में चापलूसी मूर्ख बनाकर कोई बड़ा स्वार्थ सिद्ध करने अथवा धोखा देने का प्रयास होता है । अपनी प्रशंसा सुनना सभी इंसानों को पसंद होता है परन्तु जो चापलूसों को पसंद करते हैं वह जीवन में धोखा अवश्य खाते हैं क्योंकि चापलूस की प्रशंसा से उनका विवेक कार्य करना बंद कर देता है जिसके कारण उनका अच्छाई-बुराई को समझने का ज्ञान प्रभावित हो जाता है ।
प्रशंसा सुनना एवं करना जीवन की आवश्यक किर्या है परन्तु कुछ तथ्यों को समझना आवश्यक है । सामान्य प्रशंसा इन्सान में उत्साह वृद्धि करने का कार्य करती है एवं महत्वपूर्ण कार्यों तथा प्रतिभा का विकास करने के लिए प्रेरित करती है । अपनों एवं मित्रों को प्रोत्साहित करने के लिए सामान्य प्रशंसा समय-समय पर करना आवश्यक है । अधिक प्रशंसा करने वाले का कार्य सिद्ध करवाने में सहायक होती है परन्तु सुनने वाले के लिए हानिकारक हो सकती है । प्रशंसा वास्तविक होने से प्रेरणादायक होती है एवं झूटी प्रशंसा मन को प्रसन्न अवश्य करती है परन्तु इन्सान को भ्रमित करके उसकी बुद्धि को प्रभावित करती है । चापलूसी करना शातिरों का प्रिय अस्त्र है जिसके प्रहार से इन्सान की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । प्रशंसा करने वाले से सुनने वाले को समझना अधिक आवश्यक है कि इस प्रशंसा का कारण क्या है क्योंकि प्रशंसा का प्रभाव करने वाले से अधिक सुनने वाले पर होता है । प्रशंसा सकारात्मक होने से लाभदायक तथा नकारात्मक होने से हानिकारक होती है ।
इन्सान सदैव दूसरों की प्रशंसा करता है जैसे धर्म के विषय में, साधू-संतों के विषय में, नेताओं, फ़िल्मी सितारों, खिलाडियों, प्रवक्ताओं, मित्रों एवं अनेक अन्य इंसानों के विषय में परन्तु अपने परिवार के सदस्यों से उनकी प्रशंसा करने में संकोच करता है । पति-पत्नी एक दूसरे की, सन्तान माँ बाप की, माँ बाप सन्तान की, भाई बहनें आपस में एक दूसरे की प्रशंसा करने से प्रेम एवं सेवा भाव में वृद्धि होती है तथा अच्छे कार्य करने के लिए प्रोत्साहन मिलता है इसलिए आपसी ताल-मेल बनाए रखने के लिए आपस में प्रशंसा करना आवश्यक होता है ।