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संस्कार – sanskar

April 30, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

इन्सान का व्यवहार एवं आचरण तथा उसके कर्म मिलकर उसकी जैसी छवि समाज में प्रस्तुत करते हैं | वह उसके संस्कार (sanskar) कहलाते हैं । संस्कार (sanskar) इन्सान की अपनी तथा परिवारिक पहचान सहित उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा का आधार भी होते हैं । संस्कारों से इन्सान अपनी तथा अपने परिवार की श्रेष्ठता का स्तर प्रमाणित करता है ।

इन्सान के जैसे संस्कार (manners) होते हैं उसे समाज द्वारा उसी स्तर के सम्मान की प्रतिकिर्या प्राप्त होती है । संस्कार (sanskar) समाज में मौलिक पहचान के साथ इन्सान के मूल्य का आधार भी होते हैं क्योंकि किसी भी प्रकार की आवश्यकता होने पर संस्कारों के आधार पर ही समाज से सहायता प्राप्त होती है । संस्कारों के द्वारा इन्सान परिवार एवं समाज में अपना कितना भी ऊँचा स्थान प्राप्त कर सकता है ।

संस्कारों में सर्वप्रथम स्थान इन्सान के व्यवहार का होता है | क्योंकि अव्यवहारिक इन्सान समाज में कभी संस्कारी नहीं माना जाता । व्यवहार इन्सान की वाणी में मधुरता एवं शब्दों की श्रेष्ठता तथा विचारों की महत्वता से प्रमाणित होता है । वाणी की मधुरता व्यवहार का स्तर प्रमाणित करती है | तथा शब्दों का चयन भी व्यवहार का पैमाना होता है | क्योंकि श्रेष्ठ शब्दों से श्रेष्ठता एवं ओछे शब्दों से इन्सान का ओछापन प्रमाणित होता है ।

इन्सान का कथन जितना स्पष्ट होता है उसके विचार भी उतने ही स्पष्ट होते हैं यह स्पष्टता इन्सान को स्पष्टवादी प्रमाणित करते हैं क्योंकि अस्पष्ट कथन से इन्सान फरेबी एवं धोखेबाज समझा जाता है । तानाकशी, बहस या आलोचना करना इन्सान को अव्यवहारिक बना देता है । व्यवहार का मुख्य आधार परिवार माना जाता है इसलिए तुच्छ व्यवहार परिवार को भी तुच्छ घोषित करवा देता है । अपने श्रेष्ठ व्यवहार के द्वारा ही इन्सान समाज में खुद को तथा अपने परिवार को सम्मानित करवा सकता है ।

आचरण इन्सान के चरित्र से सम्बन्धित विषय है | इसलिए संस्कारों में आचरण को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होता है । आचरण इन्सान के चरित्र का दर्पण भी कहलाते हैं जो उसकी मानसिकता को स्पष्ट करते हैं । अच्छा चरित्र उत्तम मानसिकता की निशानी होती है तथा अय्याशी एवं आवारागर्दी इन्सान के ओछे चरित्र को दर्शाते हैं जिसके कारण उसके आचरण घ्रणित समझे जाते हैं । जुआ, सट्टा खेलना, नशा करना, बकवास करना, अफवाह फैलाना, दूसरों की बुराई करना, आपस में फूट डालना इन्सान को तुच्छ मानसिकता की श्रेणी में पहुँचा देते हैं । आचरण इन्सान में परिवार तथा सोहबत से पनपते हैं जिसमे उत्तम आचरण परिवार द्वारा तथा ओछे आचरण सोहबत द्वारा बनते हैं परन्तु ओछे आचरणों की बदनामी का परिणाम फिर भी परिवार को ही भुगतना पड़ता है । आचरणों के विषय में इन्सान का मानना है कि यह उसके निजी हैं जिसका समाज से कोई सम्बन्ध नहीं है परन्तु आचरण ओछे या अनुचित होने पर समाज उन्हें सामाजिक गंदगी मानता है ।

कर्म इन्सान के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण विषय है जिसके द्वारा उसका तथा उसके परिवार का निर्वाह होता है । कर्म इन्सान के निजी अवश्य होते हैं परन्तु अनुचित या दुष्कर्मों का प्रभाव सम्पूर्ण समाज पर पड़ता है । साधारण इन्सान व्यापार अथवा नौकरी द्वारा कर्म करके अपना जीवन निर्वाह करते हैं । जो असाधारण प्रतिभा के इन्सान होते हैं वह कोई श्रेष्ठ कार्य अथवा किसी प्रकार का अविष्कार करके समाज के विकास तथा सम्मान वृद्धि में सहायक होते हैं । जो इन्सान दुष्कर्म या अपराध करते हैं वह समाज में गंदगी फ़ैलाने तथा सामाजिक पतन का कारण बन जाते हैं । चोरी, धोखेबाजी, लूट, भ्रष्टाचार, बलात्कार, हत्या आदि जैसे घ्रणित कर्म करने वाले ऐसे इन्सान होते हैं जिन्हें संस्कारों का अर्थ भी शायद मालूम नहीं होता तथा इन जैसे इंसानों को सम्मान या नैतिकता से किसी प्रकार का मतलब नहीं हो सकता । समाज का विकास जिन कर्मों से होता है वह ही अच्छे संस्कारों की श्रेणी में आते हैं ।

संस्कारों का निर्माण कर्ता इन्सान स्वयं होता है जो अपनी इच्छानुसार अच्छे या बुरे संस्कार अपना सकता है | परन्तु यह समझना भी आवश्यक है कि इंसानों के संस्कार मिलकर ही किसी संस्कृति का निर्माण होता है । इन्सान को अपना सामाजिक मूल्य निर्धारित करने एवं समाज में अपनी पहचान स्थापित करने के लिए अपने संस्कारों का सहारा लेना ही पड़ता है । संस्कार इन्सान की सामाजिक कसौटी है जिससे परखकर इन्सान के व्यवहार, आचरण एवं कर्मों की पहचान होती है । सम्मान की इच्छा रखने वाले को संस्कारों का मूल्य ज्ञात करना आवश्यक है | क्योंकि समाज में संस्कारी इन्सान को ईमानदार एवं सहृदय इन्सान माना जाता है । संस्कारों के विषय में यह समझना सबसे आवश्यक है कि संस्कारों से इन्सान के परिवार का सम्मान एवं परिवार की मर्यादा जुडी होती है | इसलिए अपने परिवार की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखकर ही संस्कारों के विरुद्ध कार्य करना चाहिए ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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