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समस्या – samasya

October 17, 2015 By Amit Leave a Comment

कोई भी ऐसा कार्य या विषय जिससे सामान्य जीवन में गतिरोध उत्पन्न हो एंव मानसिकता तनावग्रस्त होने लगे वह समस्या (samasya) कहलाती है । समस्याओं के मुख्य प्रकार हैं प्राकृतिक समस्याएँ, अन्य इंसानों से उत्पन्न समस्याएँ व स्वयं निर्मित समस्याएँ । इन्सान के जन्म से मृत्यु तक के सफर में समस्याओं के अम्बार लगे रहते हैं जिनसे संघर्ष करते हुए इन्सान का जीवन व्यतीत हो जाता है परन्तु समस्याएँ (samasya) समाप्त नहीं होती ।

शिक्षा प्राप्ति हो या आजीविका उपार्जन अथवा गृहस्थ जीवन या सन्तान की परवरिश यह ऐसी दैनिक जीवन की समस्याएँ हैं जो जीवन निर्वाह के कारण हैं इनको समस्या (samasya) ना कहकर कर्म का नाम दिया जाता है । इनसे पृथक समय समय पर जीवन में उत्पन्न होने वाले गतिरोध वास्तविक समस्याएँ हैं जो साधारण तथा असाधारण रूप में जीवन को प्रभावित करती हैं जिनके कारण भुक्तभोगी शारीरिक एंव मानसिक पीड़ा से गुजरता है । समस्याएँ तनावग्रस्त अवश्य करती हैं परन्तु संघर्ष करना भी सिखाती हैं ।

प्राकृतिक समस्याएँ कभी कभी जन्म के साथ उत्पन्न होती हैं जैसे अधिक सदस्यों के परिवार या दरिद्र परिवार में जन्म होना जिससे जीवन अभावग्रस्त एंव संघर्षशील होता है एंव शारीरिक या बौधिक क्षमता में कमी होना ऐसी समस्याएँ हैं जिनका निवारण समय के साथ व परिस्थिति अनुकूल होने पर ही होता है । जीवन में समय समय पर होने वाली प्राकृतिक समस्याएँ अधिक कष्ट दायक होती हैं जैसे परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु या किसी प्रकार की छोटी या बड़ी बीमारी होना ।

बीमारी जैसी समस्या प्राकृतिक होने के साथ इन्सान द्वारा स्वयं भी निर्मित होती है जिनको इन्सान ने गंदगी फैलाकर या हानिकारक पदार्थों का सेवन करके उत्पन्न किया है । जिन बिमारियों की वृद्धि इन्सान ने स्वयं की है उनपर नियन्त्रण खान पान पर ध्यान देकर व सफाई द्वारा करी जा सकती है । अन्यथा प्राकृतिक बिमारियों के आगे इन्सान सदैव विवश ही रहा है ।

जो समस्याएँ दूसरों के कारण उत्पन्न होती हैं उनके कुछ जिम्मेदार हम स्वयं भी होते हैं । दूसरे इन्सान अपने स्वार्थ व लोभ के कारण समस्याएँ उत्पन्न कर देते हैं वह परिवार के सदस्य हों या सम्बन्धी अथवा मित्रगण या पृथक इन्सान यदि हमसे किसी प्रकार का विश्वासघात करते हैं तो यह हमारे द्वारा किए गए अंधविश्वास का परिणाम होता है । विश्वास करना जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक है परन्तु अंधविश्वास सदैव धोखे का कारण ही बनता है ।

किसी के स्वार्थ पूर्ति का साधन बनने का कारण हमारा दिखावा करने का स्वभाव होता है क्योंकि वर्तमान में समाज अधिक से अधिक अपनी समृद्धि एंव अपने संसाधनों का दिखावा करना पसंद करता है जिससे चोर व स्वार्थी इन्सान आकर्षित होकर लूटने को तत्पर रहते हैं । किसी के स्वार्थ एवं अत्याचार से बचने के लिए सर्वोतम उपाय है समस्या को सार्वजनिक करना क्योंकि सार्वजनिक होने से स्वार्थी व अत्याचारी इन्सान का हौसला पस्त होता है तथा सार्वजनिक होने से सहानभूति हेतु दूसरों का साथ प्राप्त होने से हमारे हौसले एवं साहस में वृद्धि होती है ।

जीवन में समस्याओं का सर्वाधिक निर्माता इन्सान स्वयं होता है क्योंकि जब इन्सान खुद को बुद्धिमान समझने लगता है तब अपने स्वभाव की त्रुटियाँ दिखाई देना समाप्त हो जाती हैं तथा अपना स्वभाव सर्वाधिक उत्तम लगने लगता है । अपनी बुद्धिमता के कारण बहस करने, तानाकशी करने एवं आलोचना करने जैसी गलत आदतें दैनिक स्वभाव में मिश्रित हो जाती हैं जिनके कारण अनेकों समस्याएँ आरम्भ हो जाती हैं ।

बहस करना अर्थात दूसरों का कथन मानने से इंकार करना व अपने कथन को मनवाकर खुद को बुद्धिमान प्रमाणित करने का प्रयास होता है जिसके कारण सम्बन्धों में कटुता उत्पन्न हो जाती है क्योंकि बहस दूसरों के अहंकार को चोट पहुँचाना है । समाज, धर्म, राजनीती, फ़िल्में, खेल जैसे विषय चर्चा एंव बहस का कारण बन जाते हैं तथा हम अपने सम्बन्धों को ताक पर रखकर बहस करते रहते हैं जो सिर्फ मनमुटाव का कारण बन जाते हैं । ऐसे विषयों पर बहस करके हम वास्तव में समस्याओं को न्यौता देते हैं ।

किसी की आलोचना करना या तानाकशी करना अपने लिए समस्याओं में वृद्धि करना है क्योंकि आलोचना या तानाकशी के बदले सदैव शत्रुता ही प्राप्त होती है । सम्बन्ध परिवार का हो या बाहरी किसी की भावनाओं पर आघात उसके मन में शत्रुता उत्पन्न करता है जो मौका मिलते ही बदला लेने का प्रयास अवश्य करता है । जीवन में ऐसी अनेकों समस्याएँ उत्पन्न होकर इन्सान को तनावग्रस्त रखती हैं इनके लिए सर्वप्रथम अपने स्वभाव की समीक्षा करना आवश्यक है तथा त्रुटिपूर्ण आदतों का त्याग करना भी आवश्यक है । हम यदि अपने भूतकाल की तुलना वर्तमान से करते हैं या बीती बातों पर लड़ाई करते हैं तो यह महामूर्खता होती है क्योंकि जो बीत गया वह वापस नहीं आता फिर उसपर वर्तमान का विनाश करना क्या उचित है ?

समस्या छोटी हो या बड़ी समस्या का समाधान समस्या के कारण में होता है इसलिए सर्वप्रथम समस्या की समीक्षा करनी आवश्यक है तथा कारण ज्ञात करके उसका निवारण आवश्यक है कारण का समाधान होने से ही समस्या स्वयं समाप्त हो जाती है । किसी भी समस्या को यदि आरम्भ में ही समाप्त ना किया जाए तो समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है इसलिए समस्या की अनदेखी करना नादानी है एवं आरम्भ होते ही समाधान करना बुद्धिमानी का कार्य है । समस्या पर सलाह बुद्धिमान के साथ सदाचारी इन्सान से लेना उत्तम होता है क्योंकि दुष्ट इन्सान कितना भी बुद्धिमान हो सदैव हानिकारक ही होता है ।

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जीवन सत्यार्थ

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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