
जीवन जीने की निर्धारित शैली के नियमों को धर्म कहा जाता है तथा नियमों की विभिन्नता एवं संशोधन से बनाए गए धर्म के अनुयाईयों के समूह को समुदाय (samuday) कहा जाता है । संसार में इन्सान ने सामाजिक जीवन अपनाने के साथ जीवन निर्वाह करने के लिए नियम निर्धारित किए तथा उन नियमों को धर्म का नाम दिया गया । समय के साथ धर्म के नियमों पर समाज में आपसी मतभेद उत्पन्न होने लगे जिसके कारण समाज वर्गों में विभाजित होने लगा । जो वर्ग विभाजित होता वह वर्तमान धर्म के नियमों में संशोधन करके अपना अलग समाज बना लेता जिसे समुदाय (samuday) के नाम से पुकारा जाता है । संसार में विभिन्न प्रकार के धर्म उपलब्ध हैं तथा सभी धर्मों में आपसी मतभेद हैं जिनके कारण सभी धर्मों के समाज अलग-अलग समुदायों (community) में विभाजित हैं ।
इन्सान संसार में जब जंगली से सामाजिक प्राणी बना तो उसमें अपने बुद्धि कौशल एवं सभ्यता के कारण सर्वप्रथम जिस समाज ने धर्म का निर्माण किया उसे उन्होंने सनातन धर्म का नाम प्रदान किया । सनातन धर्म अर्थात पुराना धर्म । सनातन धर्म संसार का हजारों वर्ष पूर्व निर्मित सबसे पुराना धर्म है जिसके सबसे अधिक विभाजन भी हुए हैं । सनातन धर्म सर्वप्रथम शैव धर्म एवं वैष्णव धर्म में विभाजित हुआ । इसके अतिरिक्त समय-समय पर होने वाले अनेकों विभाजन हुए हैं । जैन धर्म, बौध धर्म, सिख धर्म, आर्य समाज जैसे अनेकों समुदाय सनातन धर्म के विभाजित समुदाय हैं ।
संसार में सनातन धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मों का भी समय-समय पर निर्माण हुआ तथा समय अनुसार विभिन्न समुदायों में विभाजन भी होता रहा । ईसाई धर्म, इस्लाम धर्म, यहूदी धर्म जैसे अलग-अलग धर्म संसार में उपलब्ध हैं । सनातन धर्म की तरह अन्य धर्मों का भी विभाजन हुआ तथा सभी के पृथक समुदाय भी निर्मित हैं । ईसाई धर्म के विभाजित समुदाय (samuday) कैथेलिक एवं बैप्टिस्ट इसके उदाहरण हैं । इस्लाम धर्म मुख्य दो भागों में विभाजित है सुन्नी एवं शिया | जिनके अपने अनेकों छोटे-छोटे सह समुदाय उपलब्ध हैं जैसे वहाबी, पारसी, कुर्द, देवबंदी, बरेलवी, रोहिंग्या वगैरह ।
संसार में जितने भी धर्म हैं उन सभी के समुदायों के भी सह समुदाय (samuday) विभाजित हैं जैसे जैन धर्म के दिगम्बर एवं श्वेताम्बर । बौध धर्म का विभाजन हीनयान एवं महायान है । सिख धर्म के विभाजित समुदाय हैं अकाली एवं निरंकारी । समुदायों के विभाजित इन सह समुदायों में भी अपने धर्म के निर्धारित नियमों में कुछ न कुछ भिन्नता अवश्य होती है जिसके कारण इनका विभाजन निश्चित होता है । इन छोटे-छोटे विभाजनों का कारण आपस में नियमों पर सहमति ना होने अथवा कट्टरवाद तथा उदारवाद के कारण होता है ।
इन्सान को सामाजिक बनाने तथा समाज से जोड़े रखने की महत्वाकांक्षा के कारण नियम निर्धारित करके धर्म का निर्माण संभव हो सका । समय के साथ धर्म के नियमों में आवश्यकता अनुसार संशोधन की आवश्यकता आरम्भ हुई जिसके कारण समाज विभाजित होने लगा । जो वर्ग नियमों में संशोधन के विरुद्ध होता था वह बिना परिवर्तन अपने धर्म पर अडिग रहा परन्तु दूसरा वर्ग नियमों में संशोधन करके अपने धर्म का अलग समुदाय बना लेता । परिवर्तित नियमों से बनते धर्म जो पुराने धर्म के सहयोगी कहलाए उनके अनुयायी अपने धर्म के समुदायी बनकर भी पुराने धर्म से जुड़े अवश्य होते हैं ।
कुछ उदाहरण धर्म के विभाजन एवं समुदाय (samuday) निर्माण को स्पष्ट करते हैं । जैन धर्म का मुख्य निर्माण अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, सत्य वचन जैसे नियमों पर आधारित है। अहिंसा अर्थात हिंसा ना करना, अस्तेय अर्थात चोरी ना करना, अपरिग्रह अर्थात जमाखोरी ना करना, सत्य वचन अर्थात झूट ना बोलना जैसे नियम उस समय की परिस्थिति को स्पष्ट करते हैं । जैन धर्म के उदय से स्पष्ट होता है उस समय हिंसा, चोरी, झूट, जमाखोरी जैसे बुरे कार्य चरम पर थे जिनसे परेशान होकर जैन धर्म जैसे समुदाय का निर्माण संभव हुआ । आर्य समाज नामक हिन्दू समुदाय का निर्माण उस समय के मूर्ति पूजन पर बढ़ते अन्धविश्वास के विरोध में संभव हुआ ।
बौध धर्म भी जैन धर्म की तरह हिंसा, चोरी, झूट, जमाखोरी के साथ मधपान के विरोध में निर्मित होने वाला समुदाय है । बौध धर्म की अच्छाइयों से प्रेरित होकर इसका विस्तार उत्तर पूर्व के अनेक देशों में संभव हो सका । चीन, जापान, हांगकांग, थाईलैंड, बैंकाक, उत्तरी कोरिया, दक्षिणी कोरिया, म्यांमार, सिंगापुर, तिब्बत जैसे अनेक देशों ने बौध धर्म को अपनाया । इन देशों में बौध धर्म का विस्तार होना प्रमाणित करता है कि यह सभी देश हिंसा एवं अपराध की पीड़ा से जूझ रहे थे जिसके कारण इन्होने बौध धर्म अपनाया ।
विभिन्न समुदायों के निर्माण से प्रमाणित होता है कि इन्सान जब भी धर्म एवं समाज के नियमों से पीड़ित होता है वह नव निर्माण में जुट जाता है तब विभाजन होना निश्चित होता है । संसार में जब भी इंसानियत के विरुद्ध कोई कार्य होता है उससे पीड़ित होकर ऐसे समुदाय निर्मित हो जाते हैं तथा होते रहेंगे । विभाजन एवं समुदाय निर्माण वास्तव में उन इंसानों की हठधर्मी का परिणाम होता है जो आवश्यकता होने पर भी धर्म के नियमों में संशोधन अथवा परिवर्तन नहीं होने देते । संसार में इस विभाजन के जिम्मेदार सदैव कट्टरपंथी रहे हैं और रहेंगे ।