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विवाह

May 31, 2014 By Amit Leave a Comment

आदिकाल से इन्सान ने समाज स्थापना के समय इंसानों के आपसी सम्बन्ध भी निर्धारित किए तथा स्त्री पुरुष द्वारा ग्रहस्थी बसा कर परिवार संचालन करने के लिए विवाह प्रथा का निर्माण किया जिसमे दो अपरिचित स्त्री पुरुष को जीवन भर साथ रहने के लिए नियम निर्धारित किए गए । संसार में वर्तमान में भी विवाह प्रथा द्वारा ही अपरिचित स्त्री पुरुष को ग्रहस्थ जीवन के लिए एक सूत्र में बाँधा जाता है तथा विवाह पश्चात विवाहित स्त्री पुरुष अपना सम्पूर्ण जीवन एक दूसरे के संग व्यतीत करते हैं । अपरिचित होने के कारण स्त्री पुरुष में अनेकों प्रकार की विभिन्नताएं होती हैं जिसके कारण उनमे मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं तथा उनके परिवार भी आपसी मतभेद के कारण टकराव की स्थिति तक पहुंच जाते हैं । विवाह पूर्व यदि आवश्यक विषयों का ध्यान रखकर विवाह सम्पन्न किया जाए तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से बचा जा सकता है एंव विवाहित जीवन सुख व शांति पूर्वक निर्वाह होता है ।

vivah

विवाह से पूर्व स्त्री तथा पुरुष दोनों के परिवार उत्साह तथा हर्ष की लहर में अनेकों विषयों पर ध्यान देना आवश्यक नहीं समझते तथा कुछ त्रुटियों को जानबूझकर अनदेखा कर देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि विवाह के पश्चात आपस में समझोता हो जाएगा । स्त्री पुरुष भी शरीरिक आकर्षण एंव कामवासना तथा परिवार के दबाव के कारण कोई विद्रोह नहीं करते परन्तु विवाह का ज्वार भाटा शांत होने पर अनेकों त्रुटियों का ध्यान करके आपस में मतभेद उत्पन्न कर लेते हैं । एक संतुलित विवाहित ग्रहस्थ जीवन निर्वाह करने के लिए सभी प्रकार के संतुलित विषयों पर विचार करना आवश्यक है जिसमे सर्व प्रथम कोई भी कार्य झूट बोल कर करना व्यर्थ होता है क्योंकि विवाह पश्चात झूट प्रत्यक्ष होने पर आक्रोश उत्पन्न होना तथा शर्मिंदगी होना स्वभाविक है एंव झूट की बुनियाद पर बसाई गई ग्रहस्थी सदैव अस्थिर रहती है तथा परिणाम भयंकर निकलते हैं ।

विवाह के लिए जन्म पत्री मिलाप के समय स्त्री पुरुष की आपसी समानताओं का मिलान भी आवश्यक होता है क्योंकि समानता से संतुलन होता है तथा जितनी अधिक समानता होगी उतनी ही संतुलित ग्रहस्थी बसती है । सर्व प्रथम स्त्री पुरुष में बौद्धिक समानता होनी सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि बुद्धि से जीवन संचालित होता है तथा बुद्धि की असमानता हीनभावना एंव घृणा उत्पन्न करती है जिससे स्त्री पुरुष की बुद्धि व सोच की असमानता के कारण आपसी मतभेद उत्पन्न होकर टकराव की स्थिति बन जाती है । ग्रहस्थ में स्वभाविक समानता भी महत्वपूर्ण होती है अन्यथा तनाव की स्थिति अवश्य बनती है क्रोधी अथवा शंकालु स्वभाव व खर्चीली या कंजूस प्रवृति तथा टोकाटाकी, तानाकशी, कटाक्ष करना ऐसा स्वभाव है जिसमे आपस में तकरार उत्पन्न अवश्य होती है ।

शरीरक समानता भी विवाह के लिए अत्यंत आवश्यक होती है कद, सेहत व रंगरूप भी समान या लगभग एक समान हों तो कुंठा उत्पन्न नहीं होती । लोक कहावत है कि सूरत नहीं सीरत देखकर विवाह करना चाहिए इसलिए आचरण तथा व्यहवार की समानता अनिवार्य होती है क्योंकि इन्सान अपने आचरण व व्यहवार द्वारा ही समाज में सम्मान प्राप्त करता है तथा इन्सान का आचरण व व्यहवार उसकी पहचान होते हैं इनमे विभिन्नता होने से ग्रहस्थ जीवन नर्क समान हो जाता है । परिवारिक समानता का ध्यान रखना भी आवश्यक होता है क्योंकि छोटे परिवार का सदस्य अधिक सदस्यों वाले परिवार में खुद को असहज अनुभव करता है जिससे ग्रहस्थी में कलह उत्पन्न होती है । आधुनिक तथा रुढ़िवादी विचारों की असमानता भी ग्रहस्थी में विवाद उत्पन्न करती है इसलिए इसका भी ध्यान रखना आवश्यक होता है ।

इस प्रकार की साधारण सी समानताओं पर विचार करके किया हुआ निर्णय ग्रहस्थ जीवन को सुख व शांतिपूर्ण निर्वाह प्रदान करता है परन्तु विवाह की रुढ़िवादी प्रथाएँ वर्तमान में कुप्रथाएँ बनकर रह गई हैं जिनके कारण ग्रहस्थ जैसा प्रगाढ़ रिश्ता परेशानी का कारण बन जाता है । सर्व प्रथम दहेज प्रथा जैसी कुप्रथा जो समाज का सबसे बड़ा कलंक बनकर रह गई है जिसमे जीवन साथी का मूल्य आंकना या उसके परिवार से आर्थिक सौदेबाजी करना जो भविष्य में दोनों पक्षों में कलह उत्पन्न करता है तथा असम्मान का कारण बनता है तथा जीवन साथी के मन में सदा के लिए कटुता उत्पन्न हो जाती है । विवाह के लिए अत्याधिक आडम्बर करके दोनों पक्षों द्वारा धन का सर्वनाश करना जिसका किसी भी प्रकार का किसी भी पक्ष को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता तथा नवदम्पत्ति को भी किसी प्रकार का कोई लाभ प्राप्त नहीं होता ऐसी कुप्रथाओं से मुक्ति पाने पर ही समाज संतुलित तथा खुशहाल हो सकता है ।

विवाह जैसे महत्वपूर्ण सम्बन्ध के लिए कुप्रथाओं को त्यागने में ही लाभ है क्योंकि प्रथाएँ इंसानों द्वारा निर्धारित करी हुई हैं जिनमे समय के अनुसार संशोधन की आवश्यकता होती है परन्तु संशोधन ना होने के कारण प्रथाएँ समाज का कलंक तथा कुप्रथाएँ बन जाती हैं । इस आधुनिक तथा रफ्तार भरी जिन्दगी में सदियों पुरानी प्रथाओं के पीछे भागने से उचित है कि विवेक का प्रयोग करके अपने ग्रहस्थ जीवन को संवारना तथा जीवन साथी की भावनाओं का ध्यान रखना तथा ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना जिससे ग्रहस्थ जीवन में तनाव उत्पन हो जाए ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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