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unnati – उन्नति

May 31, 2019 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

किसी भी प्रकार के कार्य, विषय, वस्तु, सबंध, सम्मान अथवा इन्सान की आमदनी में वृद्धि होना उसकी उन्नति (unnati) कहलाता है | उन्नति इन्सान के लिए सबसे मनमोहक विषय है | उन्नति (unnati) किसी भी प्रकार की हो वृद्धि ही होती है | वह उत्पाद में हो या आमदनी में हो अथवा पद में हो उन्नति (unnati) का परिणाम सदैव वृद्धि  ही होता है |

संसार में कोई भी इन्सान ऐसा नहीं है जिसे उन्नति (unnati) की अभिलाषा ना हो | उन्नति (unnati) करने की अभिलाषा सिर्फ अभिलाषा हो तो उन्नति करना कठिन होता है | इन्सान जब अभिलाषा के साथ प्रयास भी करता है तथा उन्नत कार्य करता है तो उन्नति (unnati) करना संभव हो जाता है | उन्नति (unnati) करने की अभिलाषा यदि इन्सान का लक्ष्य बन जाए तो उन्नति (unnati) होना निश्चित हो जाता है |

इन्सान जब किसी प्रकार का कार्य करते हुए उसे पूर्णयता स्वीकार कर जीवन से समझौता कर लेता है तथा वह उन्नति की अभिलाषा रखते हुए भी प्रयास करना बंद कर देता है तब उसकी उन्नति सामान्य रूप से समय अनुसार ही होती है |

जो इन्सान उन्नति की अभिलाषा करने के साथ-साथ प्रयास भी करते रहते हैं एवं संघर्ष भी करते हैं उनके लिए उन्नति करना सरल हो जाता है | कुछ इन्सान अपनी उन्नति को लेकर अति संवेदनशील होते हैं उनके लिए उनकी उन्नति जूनून की तरह होती है वह वास्तव में शीघ्र उन्नति भी कर लेते हैं |

जिन इंसानों को प्रयास करने के पश्चात भी उन्नति प्राप्त नहीं हुई उन्हें कुछ आवश्यक कारणों पर ध्यान देने, समीक्षा करने एवं समाधान करने की आवश्यकता है | ताकि उनके परिश्रम अनुसार उन्हें उचित उन्नति प्राप्त हो सके | उन्नति ना प्राप्त होने में इन्सान से स्वयं भी अनेकों प्रकार की त्रुटियाँ होती हैं | जिनका उसे स्वयं भी अहसास तक नहीं होता जिनका समाधान करने से उन्नति का मार्ग सरल हो जाता है | सर्वप्रथम इन्सान को खुद को समझना एवं समझाना आवश्यक है यह इन्सान के लिए सबसे सरल कार्य के साथ सबसे कठिन कार्य भी है |

इन्सान के कर्म कितने भी उच्च कोटि के हों परन्तु उसका व्यवहार एवं स्वभाव समाज की दृष्टि में उत्तम ना हो तो उसके समीप का वातावरण उसके विरुद्ध हो जाता है | जिसके कारण उसकी उन्नति में अवरोध उत्पन्न हो जाते हैं | व्यापार, नौकरी, खेल, अभिनय, अविष्कार या अन्य किसी भी प्रकार का कार्य सभी स्थान पर सबंध सदैव एक दूसरे के काम आते हैं जो इन्सान की उन्नति को भी प्रभावित करते हैं |

दूसरों से कटु वचन बोलना उनका परिहास करना या उनपर आक्रोशित होना इन्सान की अव्यवहारिकता होती है | जिसके प्रभाव से दिखावटी संबध कितने भी अच्छे हों | परन्तु अंदर से विषैले होते हैं | व्यवहार ना करना भी इन्सान के लिए अव्यवहारिकता ही है | क्योंकि जहाँ पर व्यवहार नहीं होता वहाँ सबंधों में खोखलापन होता है |

इन्सान को अपना स्वभाव सबसे अच्छा लगता है | परन्तु उसके स्वभाव में गलत विकार कब शामिल हो गए उसे अहसास तक नहीं होता | बात-बात पर बहस करना, छोटी-छोटी बातों की आलोचना करना, तानाकशी या व्यंग करना इन्सान का ऐसा स्वभाव है जिस पर वह कभी संदेह तक नहीं करता |

बहस, आलोचना, तानाकशी या व्यंग ऐसी ही कोई गलती कब हमारे सबंधों को प्रभावित कर दे | और हमारी उन्नति में अवरोध उत्पन्न कर दे इन गलतियों की तरफ से सावधान रहना आवश्यक है | अपने स्वभाव एवं व्यवहार को सामाजिक रूप से उत्तम बनाने से समाज का साथ एवं उन्नति प्राप्त करना सरल हो जाता है |

पुरानी तकनीक, संसाधनों, सामान, अभिनय, अविष्कार में उलझे रहना इन्सान के पिछड़ेपन की निशानी है तथा पिछड़ कर कभी उन्नति नहीं होती | कोई भी नया एवं उन्नत कार्य, वस्तु, अविष्कार, सामान, फैशन जो भी समाज में नया हो इन्सान को आश्चर्यजनक उन्नति (unnati) प्रदान करता है |

इसको हम चीन जैसे देश से सीख सकते हैं जिसने चंद समय में अद्भुत उन्नति करी है | भारत की जनता के घरेलू सामान से लेकर उनके खेल के सामान, त्यौहार, पूजा सामग्री, दैनिक कार्यों में काम आने वाली वस्तुएं, नई तकनीक के संसाधन एवं सामान उपलब्ध करवाकर भरपूर धन कमा रहा है|

खुद को बुद्धिमान एवं परिश्रमी समझने वाले भारतवासी चुपचाप तमाशा देख रहे हैं | परन्तु कभी चीन की तरह खुद प्रयास नहीं करते क्योंकि भारतवासियों की दृष्टि में उन्नति का अर्थ सिर्फ धनवान बनना है | उन्नति का अर्थ वास्तव में कार्यों को उन्नत बनाकर उनमें वृद्धि करना है वह वृद्धि सिर्फ धन की नहीं होती सम्मान में भी वृद्धि होना आवश्यक है तब इन्सान की वास्तविक उन्नति होती है | धन के साथ सम्मान में वृद्धि तब होती है जब वह कुछ नया करता है |

जो इन्सान वास्तव में उन्नति करना चाहता है उसे सबसे पूर्व अपने परिवार के साथ समाज, व देश की उन्नति के विषय में भी सोचना पड़ेगा | क्योंकि जब तक देश व समाज उन्नति नहीं करता इन्सान की अपनी उन्नति अधूरी होती है | उन्नति का अर्थ सिर्फ धन कमाना नहीं है | क्योंकि धन अधिक हो जाए तो लुटेरे पीछे लग जाते हैं उन्नति का अर्थ खुद को उन्नत बनाना है | अर्थात बुलंदियां छूना है और जब इन्सान बुलंदियां छू लेता है तो वह उन्नत होकर उन्नति (unnati) कर ही लेता है |

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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