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वादा – vada

October 20, 2018 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

किसी भी कार्य अथवा कर्तव्य को समय पर पूर्ण निष्ठा एवं ईमानदारी से सम्पूर्ण करने का प्रस्ताव प्रस्तुत करना इन्सान के द्वारा किया हुआ वादा (vada) कहलाता है । वादा – vada करना बहुत ही संवेदनशील एवं महत्वपूर्ण विषय है क्योंकि यह इन्सान के विश्वास एवं आशा का प्रतीक होता है । जब कोई भी इन्सान किसी से कोई भी वादा करता है तो जिससे वादा (vada) किया जाए | वह उस पर विश्वास होने के कारण वादा (vada) स्वीकार करता है | तथा वादा (vada) समय पर सम्पूर्ण होने की आशा भी करता है । जब भी कोई वादा गलत निकलता है तो इन्सान की आशा एवं विश्वास पर आघात लगता है | जिसके कारण उसके सबंध प्रभावित होते हैं ।

वादा

इन्सान को जब किसी भी प्रकार की आवश्यकता होती है जिसे वह प्राप्त करने में असमर्थ होता है तो किसी से वादा करके सहायता को उधार के रूप में प्राप्त कर सकता है । वादे दो प्रकार के होते हैं । एक = किसी की निश्चित समय पर सहायता करने का वादा एवं दूसरा = ली गई सहायता को समय पर वापस करने का वादा । किसी की सहायता करने का वादा (vada) यदि सम्पूर्ण ना किया जाए तो सामाजिक दृष्टि में वादा करने वाले का नैतिक मूल्य समाप्त हो जाता है अर्थात वादा करने वाला एक ओछा एवं झूटा इन्सान माना जाता है । किसी से प्राप्त सहायता अर्थात उधार को समय पर वापस ना करने से वादा करने वाले इन्सान को धूर्त एवं बेईमान समझा जाता है जो झूटा वादा करके दूसरों को मूर्ख बनाने का कार्य करता है ।

इन्सान के वादे का नैतिक एवं सामाजिक दो प्रकार से मूल्य निर्धारित होता है । एक = इन्सान की समृद्धि एवं प्रतिष्ठा के अनुसार उसके वादे पर विश्वास करना । दूसरा = इन्सान की सत्यवादिता एवं ईमानदारी को देखते हुए उसके वादे पर विश्वास करना । समृद्धि के आधार पर उधार मिलने की सीमा निश्चित होती है परन्तु इन्सान की ईमानदारी के आधार पर उधार मिलने की कोई सीमा निश्चित नहीं होती । समृद्धि इन्सान का सामाजिक मूल्य है एवं ईमानदारी इन्सान का नैतिक मूल्य होता है नैतिक मूल्य सदैव सामाजिक मूल्य से श्रेष्ठ समझा जाता है क्योंकि ईमानदार इन्सान अपना वादा (vada) अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय समझता है जबकि समृद्ध इन्सान लोभ में अँधा होकर बेईमान भी बन जाता है । वादा एक प्रकार से इन्सान की जबान का मूल्य समझा जाता है ।

वादा (vada) इन्सान के लिए संजीवनी की भांति होता है क्योंकि जब भी इन्सान किसी भी प्रकार से अभावग्रस्त हो वह वादा करके अपनी आवश्यकता पूर्ति कर सकता है । इन्सान वास्तव में अभावग्रस्त तब होता है जब उसका सामाजिक एवं नैतिक मूल्य समाप्त हो जाता है जिसके प्रभाव से समाज में उसके वादे पर कोई भी विश्वास नहीं करता । इन्सान को जीवन में किसी ना किसी प्रकार की ऐसी आवश्यकता अवश्य होती है जिसे वह सम्पूर्ण करने में असमर्थ होता है । इसके लिए उसे दूसरों की सहायता की आवश्यकता होती है जिसे वह अपने वादे के आधार पर प्राप्त करके सफल हो जाता है इसलिए वादा इन्सान के लिए अनमोल पद्धति है ।

समाज में अपने वादे का नैतिक मूल्य बनाए रखने के लिए इन्सान को वादे की नीति को समझना भी आवश्यक है । वादे को समय पर सम्पूर्ण करने पर वादा करने वाले को ईमानदार एवं निष्ठावान समझा जाता है जिसके प्रभाव से उसके वादे का नैतिक मूल्य अटल रहता है । वादे को समय से पूर्व सम्पूर्ण करने से इन्सान को वादे के प्रति जागरूक माना जाता है इससे वादा करने वाले के नैतिक मूल्य में वृद्धि होती है । वादा (promise) सम्पूर्ण करने में कुछ देरी होने पर इन्सान को लापरवाह समझा जाता है जिसके कारण इन्सान के नैतिक मूल्य में कमी आती है । वादा सम्पूर्ण करने में अधिक देरी अथवा बार-बार वापसी की मांग पर सम्पूर्ण करना इन्सान का नैतिक मूल्य समाप्त कर देता है ।

कभी-कभी इन्सान मजबूरी के कारण समय पर वादा (promise) निभाने में असमर्थ होता है जिसके कारण उसे लापरवाह अथवा बेईमान समझ लिया जाता है । मजबूरी की अवस्था में इन्सान को नीति का उपयोग करना आवश्यक है जिससे उसका नैतिक मूल्य सुरक्षित रहता है । जब वादा (vada) सम्पूर्ण करने में किसी प्रकार की रुकावट हो तो ऐसी स्थिति में वादे के समय से पूर्व ही सूचित करके समय बढ़ाने की मांग करना उत्तम होता है । समय से पूर्व समय बढ़ाने की मांग करने पर कुछ आक्रोश अवश्य होता है परन्तु इन्सान को वादे के प्रति जागरूक माना जाता है तथा उसकी मजबूरी को समझ कर उसे बेईमान नहीं समझा जाता जिससे उसका नैतिक मूल्य स्थिर रहता है । यदि इन्सान वादे के समय के पश्चात उधार वापस मांगे जाने पर समय की मांग करता है तो लापरवाह एवं बेईमानों की श्रेणी में समझा जाता है जिससे उसका नैतिक मूल्य गिर जाता है ।

वादा (vada) इन्सान को सदैव सोच समझ कर ही करना उत्तम होता है ताकि वह समय पर वादा सम्पूर्ण करके अपना नैतिक मूल्य सुरक्षित रख सके । जो इन्सान सुख के समय वादे का महत्व नहीं समझता तथा वादों के प्रति लापरवाह होता है उसका भविष्य सदैव असुरक्षित रहता है । सुख में भी वादे के प्रति जागरूक इन्सान का भविष्य सदैव उज्ज्वल होता है क्योंकि ऐसे इंसानों को समय पर सभी प्रकार की सहायता सरलता से उपलब्ध हो जाती है । अपने वादों के प्रति जागरूक रहने वाले इन्सान अपने नैतिक मूल्यों में वृद्धि कर करके इतने अधिक मूल्यवान बन जाते हैं कि वह अल्प समृद्ध होकर भी दूसरों की सहायता से धीरे-धीरे अपने जीवन को पूर्ण समृद्ध बना लेते हैं । जो इन्सान अपने वादे का उचित मूल्य समझ जाता है एवं उसका उचित उपयोग भी करता है वह सदैव जीवन में बुलंदियां सरलता से प्राप्त कर लेता है ।

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

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