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विकास

October 21, 2017 By प्रस्तुत करता - पवन कुमार Leave a Comment

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किसी वस्तु, विषय, धन या कार्य की सकारात्मक प्रगति एवं वृद्धि उसका विकास कहलाती है । विकास करना सभी इंसानों की प्रथम एवं उत्कृष्ट अभिलाषा होती है । अपनी बुद्धि, धन, शारीरिक बल, संसाधनों, विरासत, जायदाद एवं वस्तुओं का विकास तथा अपने सम्मान का विकास करना इन्सान की प्रथम एवं उत्कृष्ट अभिलाषाएं होती हैं । इन्सान द्वारा विकास करने की अभिलाषाओं के कारण ही समस्त संसार के इंसानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार के अविष्कार किए तथा इस संसार को पाषाण युग से इस आधुनिक काल में परिवर्तित किया । कोई इन्सान अपने जीवन में विकास करने की अभिलाषा नहीं रखता तो वह मूर्ख, पागल अथवा आलसी इन्सान होता है या उसे जीवन के प्रति मोह नहीं होता । साधारण, असक्षम या अपाहिज इन्सान भी विकास करने की अभिलाषा अवश्य रखता है ।

इन्सान के जीवन में मुख्य चार प्रकार के विकास अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं । प्रथम महत्वपूर्ण विकास बौद्धिक विकास है जिसके अंतर्गत इन्सान अपनी बुद्धि, विवेक एवं अन्य मानसिक किर्याओं का विकास करके अपने जीवन निर्वाह के लायक खुद को सक्षम बनाता है । दूसरा महत्वपूर्ण विकास शारीरिक विकास है इसमें इन्सान स्वस्थ शरीर एवं परिश्रम करने की क्षमता एवं सक्षमता प्राप्त करने की अभिलाषा रखता है । तीसरा महत्वपूर्ण विकास आर्थिक विकास है जिसमें इन्सान कम से कम इतना धन अवश्य एकत्रित करने की अभिलाषा रखता है जिससे वह अपने परिवार का पालन-पोषण एवं अपने भविष्य को सुरक्षित कर सके । चौथा महत्वपूर्ण विकास सामाजिक प्रतिष्ठा का विकास है जिसमें समाज में अपनी स्थिति सुदृढ़ बनाकर अपना सम्मान स्थापित करना है ताकि आवश्यकता या मुसीबत के समय समाज सहायक की भूमिका अदा कर सके । यह चारों विकास इन्सान के जीवन को सफल एवं खुशहाल बनाते हैं । इन्सान को विकास करने के लिए उचित एवं महत्वपूर्ण तथ्यों को समझना भी आवश्यक है ।

बौद्धिक विकास इन्सान के जीवन की प्राथमिकता है तथा जीवन निर्वाह के लिए अत्यंत आवश्यक भी है । एकमात्र बुद्धि ही इन्सान की सच्ची हितैषी होती है जिसके बल पर वह संसार का कोई भी कार्य तथा अपने जीवन की सुरक्षा कर सकता है । बौद्धिक विकास का मूल आधार एकाग्रता है इन्सान यदि एकाग्रचित होकर अपने विषय की शिक्षा प्राप्त करे तथा अपने विवेक द्वारा मंथन करे तो वह अवश्य सफल होता है । एकाग्रता के बगैर बौद्धिक विकास असंभव है क्योंकि भटकती अथवा भ्रमित बुद्धि कभी पूर्ण विकास नहीं कर सकती जो भी विकास होगा वह अवश्य अधूरा रहेगा । बौद्धिक विकास के लिए उत्तम विचार एवं अनुभव मार्गदर्शन करते हैं जो पुस्तकों के अतिरिक्त किसी इन्सान से भी प्राप्त हो सकते हैं । श्रेष्ठ विचारों एवं अनुभव का जाति, धर्म या आयु से कोई सबंध नहीं होता इसके लिए दूसरे इंसानों को भेदभाव की दृष्टि से देखना नादानी होती है इसलिए भेदभाव त्यागकर जिस भी इन्सान से श्रेष्ठ विचार अथवा अनुभव प्राप्त हों शीघ्र ग्रहण करना ही बुद्धिमानी होती है । मनोरंजन मानसिक शांति के लिए आवश्यक है परन्तु अधिक मनोरंजन बुद्धि भ्रष्ट करता है जिसका त्याग ही उचित होता है । कोई घनिष्ट इन्सान बुद्धि भ्रमित करे या बौद्धिक विकास में बाधा उत्प्न्न करे उसका त्याग करना ही उचित होता है क्योंकि वह मित्र होकर भी कार्य शत्रु का ही करता है ।

शारीरिक विकास इन्सान के जीवन की दूसरी महत्वपूर्ण आवश्यकता है क्योंकि परिश्रम के लिए सक्षम एवं स्वस्थ शरीर ही इन्सान के जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है । शरीर परिश्रम के लिए सक्षम ना हो या पूर्ण स्वस्थ ना हो अथवा इन्सान स्वभाविक रूप से आलसी हो तो वह जीवन में पूर्ण विकास नहीं कर सकता । स्वस्थ शरीर के लिए पौष्टिक आहार के साथ संतुलित मात्रा का ध्यान रखना भी आवश्यक है क्योंकि अधिक मात्रा में किया हुआ भोजन आलसी बनाता है तथा वजन बढ़ाकर शारीरिक चुस्ती-फुर्ती को बधित करता है । स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए स्वाद पर नियन्त्रण करना आवश्यक है क्योंकि अधिकतर बिमारियों का कारण एवं शारीर के लिए हानिकारक होने का श्रेय स्वाद को ही प्राप्त है जिसके चक्कर में इन्सान अपनी सुधबुध खोकर अंजाम की परवाह किए बगैर भोजन पर टूट पड़ता है । नशीले पदार्थों का सेवन करने वाला इन्सान भी अपने जीवन में पूर्ण विकास नहीं कर सकता क्योंकि नशा शरीर एवं बुद्धि दोनों को भ्रष्ट अवश्य करता है ।

आर्थिक विकास सुखी जीवन का आधार है क्योंकि समय के साथ बढती महंगाई में आर्थिक विकास ना करने से भविष्य अभावग्रस्त हो जाता है । आर्थिक विकास के लिए परिश्रम के अतिरिक्त अपने विषय या कार्य की नवीनतम तकनीक एवं जानकारी का उपयोग करना आवश्यक है । आधुनिक वर्तमान समय में जो इन्सान पुरानी तकनीक या वस्तुओं एवं कार्यों तक सीमित रहता है उसका आर्थिक विकास होना लगभग असंभव है । आमदनी में वृद्धि ना कर सकने पर खर्च पर नियन्त्रण करके भी धीरे-धीरे विकास हो सकता है । आर्थिक तंगी का मुख्य कारण दिखावा है जिसके लिए बहुमूल्य उपकरणों, संसाधनों एवं वाहनों का उपयोग करके खुद को समाज में सम्मानित समझना मूर्खता है । दिखावे से सिर्फ दूसरों के मन में ईर्षा एवं चोरों में मन में आकर्षण उत्पन्न होता है ।

समाज में अपनी प्रतिष्ठा का विकास करने का कारण सम्मान प्राप्त करना है जिसका लाभ मुसीबत में होता है । मुसीबत के समय प्रतिष्ठित एवं सम्मानित इन्सान को समाज द्वारा पूर्ण सहयोग प्राप्त होता है । असफल, नाकारा या आलसी इन्सान को समाज से कभी सहयोग प्राप्त नहीं होता अथवा अल्प मात्रा में सहायता प्राप्त होती है । समाज के साथ सहयोग करने एवं सामाजिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से समाज में इन्सान की स्थिति सरलता से स्थापित हो जाती है । समाज में सम्मान इन्सान के श्रेष्ठ विचारों एवं संस्कारों का होता है जिसके लिए किसी प्रकार का धन खर्च करने की आवश्यकता नहीं होती । नैतिक आचरण, व्यवहार कुशलता, मधुर भाषा एवं शांत स्वभाव इन्सान को श्रेष्ठ बनाने के साथ सफलता, सम्मान एवं समृद्धि प्राप्त करने में भी सहायक होते हैं ।

जीवन में विकास करने की अभिलाषा हो तो सर्वप्रथम अपने विचारों का विकास करना आवश्यक है । रुढ़िवादी प्रथाओं एवं संकीर्ण मानसिकता इन्सान को कभी पूर्ण विकास नहीं करने देती । विकास करने के लिए समय का सम्मान करना बहुत आवश्यक है क्योंकि समय बर्बाद करके कोई भी इन्सान कभी सफल नहीं होता । विकास करने के लिए अपने एवं सबंधित इंसानों को परखना भी आवश्यक है जो विकास में विघ्न उत्पन्न करे उसका शीघ्र त्याग करना श्रेष्ठ होता है । अपनी आदतों एवं मन की चंचलता को वश में करके ही इन्सान विकास कर सकता है क्योंकि जो इन्सान अपनी आदतों एवं मन को वश में नहीं कर सकता वह दूसरों को प्रभावित कैसे कर सकता है । चंचल मन एवं बुरी आदतें इन्सान के विनाश का कारण भी बन जाती हैं ।

 

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इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है।

प्रस्तुत कर्ता - पवन कुमार

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